धर्म कर्म; निजधामवासी बाबा जयगुरुदेव जी के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी, जिनके रूप में ही अब स्वामी जी महाराज सब जीवों की संभाल हर तरह से कर रहे हैं, सबके कर्मों को धो रहे हैं, जिस रूप से ही अब जीवों के आत्म कल्याण का काम किया जा रहा है, ऐसे इस समय के पूरे समरथ सन्त सतगुरु, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में अपना निजी अनुभव बताया कि उस समय पर सुनने में आता था कि बाबा जयगुरुदेव जाति के धोबी हैं। तो मैं जब नामदान लेकर आया तो मेरे ही कुल खानदान के लोग बोले कि भ्रष्ट हो गया, कोई ब्राह्मण नहीं मिला जो धोबी का चेला बन गया। फिर बोले कि इनसे-उनसे कान फूंकवा लो, इधर-उधर चलो। और मुझे तो समझ में आ गया था कि कान फूंकने वाले, कंठी बांधने वाले, छाप लगाने वाले गुरु से कोई काम नहीं बनना है, गुरु करना तो पूरा करना। जब ये बात में समझ गया कि गुरु महाराज हमारे पूरे हैं। गुरु महाराज का जब इस तरह का प्रचार हुआ, प्रेमियो ने बताया कि आपको तो लोग बदनाम कर रहे हैं। ब्राह्मण, क्षत्रिय आदि जाति के लोग तो कह रहे हैं कि हम धोबी के चेला नहीं बनेंगे। तब गुरु महाराज ने ही कहा था, मैं कपड़ा धोने वाला जाति का धोबी नहीं बल्कि मन, चित, बुद्धि, अंतःकरण को धोने वाला धोबी हूँ, मैं अंदर की सफाई करता हूं। तब जब ऐसे धोबी मिल जाते हैं तब अंतरात्मा की सफाई होती है, तब हुजरा साफ होता है। हुजरा यानी? दिल का हुजरा साफ कर जाना के आने के लिए, ख्याल गैरों का हटा, उसको बिठाने के लिए।

फकीरों में भी अच्छे-अच्छे पूरे फकीर हुए हैं। तो हुजरा (स्थान) गुरु साफ करते हैं। कैसे साफ़ करते हैं? जैसे आप शरीर, कपड़ा साफ करते हो, वैसे नहीं। देखो बच्चे को नहाने के लिए सिखाते हैं कि ऐसा मलो, इस तरह करो, ऐसे पानी डालो, सफाई करो। जब बच्चा सीख नहीं पाता तब उसकी सफाई कौन करता है? जो बाप, बड़ा, गार्जियन, अभिभावक तो वो सफाई करना पहले उसी से सिखाता है। ऐसे ही प्रेमियो! गुरु सृजनहार हैं। गुरु तो यहां इस दुनिया में भी मददगार है और शरीर छूटने के बाद भी मददगार होते हैं। गुरु महाराज ने चैलेंज से कहा जयगुरुदेव नाम मैंने तुम्हारे लिए जगा करके छोड़ दिया है। मरते समय तुम जयगुरुदेव नाम बोलोगे तो मैं तुमको मिलूंगा। अब भी मिलते हैं। शरीर छोड़कर तो चले गए लेकिन अब भी मिलते हैं वो। उसी रूप में मिलते हैं, जिस रूप में शरीर में थे। उस रूप में अगर न मिले तो पहचान ही न कोई कर पावे। तो बराबर ऊपर के लोकों में भी उसी तरह से मिलते हुए, मदद करते हुए, जीवात्मा को खींच कर के ले जाते हैं। कहा है खींचे सुरत, गुरु बलवान। जो बलवान गुरु होते हैं, निकाल कर के ले जाते हैं। मालिक की गोद में बिठा देते, प्रभु के पास पहुंचा देते हैं। तो गुरु महाराज बहुत से लोगों की अंतरात्मा को धोए और धो कर के उनको निज घर प्रभु के पास पहुंचा दिया।

भक्तों का हमेशा विरोध हुआ है

यह सब कलयुग का असर है। कलयुग किसी न किसी रूप में आता है और परमार्थ के काम में बाधा डालता है तो होशियार रहने की जरूरत है। कहा गया है- पलटू नाहक भूंकता, साध देकर स्वान, जगत भगत सो वैर है, चारों युग प्रमाण। चारों युगों में यह प्रमाण रहा है कि भक्तों का हमेशा विरोध हुआ है। देखो लोगों ने गुरु महाराज का बहुत विरोध किया, उनके गुरु भाइयों ने भी बहुत विरोध किया। तरह-तरह की अफवाह फैलाई, तरह-तरह से गुरु महाराज को नीचा दिखाने की कोशिश किया। और देखो प्रेमियो! गुरु महाराज के जाने के बाद आप प्रेमियों के साथ, जो गुरु भक्त थे, उनके साथ कितना हुआ, अपने लोगों के साथ, इस मिशन के साथ। लोगों का मन अब भी खराब है। बहुत से लोग जो जयगुरुदेव नाम का उपयोग करते हैं, समझो गुरु महाराज के नाम पर रोटी खाते हैं, सम्मान पाते हैं, उनको भी यह समझ में नहीं आ रहा है कि गुरु महाराज का नाम और काम अपने लोग कैसे इतना बढ़ा रहे हैं। अपने लोगों के लिए वो लोग एक तरह से यही सोच रहे हैं कि यह न करे, न कर पावे तो ठीक है। उनको गुरु से मतलब नहीं है, गुरु के मिशन को आगे बढ़ाने, गुरु के नाम को आगे करने, गुरु भक्ति भरने का मतलब नहीं है। गोस्वामी जी महाराज ने कहा है- देखि न सकहिं पराई विभूति। दूसरे के बढ़ते हुए देख नहीं पा रहे। देखो इतनी ज्यादा भीड़ है। तो प्रेमियो! आप जयगुरुदेव बोलते रहो, गुरु का नाम-काम बढ़ाने में लगे रहो।

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