धर्म कर्म: जीवन में किये ख़राब कर्मों की वजह से यमदूतों द्वारा अंत समय पर दी जाने वाली भारी पीड़ा से बचने का रास्ता नामदान देने वाले, इसी जन्म में भवसागर पार कराने वाले, इस समय के पूरे समर्थ सन्त सतगुरु, मुर्शिद पूर, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि यह मनुष्य शरीर देव दुर्लभ कहा गया है। यह भगवान की, मुक्ति-मोक्ष की प्राप्ति के लिए, दुबारा इस दु:ख के संसार में दु:ख झेलने के लिए आना न पड़े, इसके लिए मिला है। अब अगर रास्ता मालूम हो जाए तो इसको आप गृहस्थ आश्रम में भी प्राप्त कर सकते हो। इसी मनुष्य शरीर में आप देवी-देवताओं का दर्शन कर सकते हो। इसी (शरीर) में उसका प्रकाश, नूर है। कहा गया है- इसी में खुदा का नूर है, जहां खुदा का नूर है, वही हाजिर हुजूर है, मगर देखा वही जो मुर्शिद पूर है। मुर्शिद पूर किसको कहते हैं? जिसको आप पूरा गुरु, समर्थ गुरु, सन्त सतगुरु कहते हो, उसी को उन्होंने कामिल मुर्शिद यानी पूरा फकीर कहा है। तो वो उसको देखा है। इसी में उसका प्रकाश (रोशनी) आ रही है। उसी शब्द से ही यह जीवात्मा जुड़ी हुई है और उससे यह शरीर चल रहा है। जो कुछ हो सकता है, इस शरीर के रहते-रहते ही हो सकता है। शरीर छूटने के बाद न तो भगवान मिल सकते हैं और न दुनिया की कोई चीज फिर आपको मिल सकती है। और अगर (आपके) कर्म खराब हो गए, तो कहीं भी छाया यानी आराम, प्यास में कहीं पानी नहीं मिलेगा। और अगर पाप कर्म ज्यादा हो गया तो फिर इस आत्मा को निकाल कर के यमराज के दूत मारते-काटते-घसीटते हुए, कांटों पर से खींचेंगे, भाले जैसे कटे हुए नुकीले पत्थर पर से खींचते हुए, ऊपर से गर्म राख बरसती रहती, नीचे अंगारे बिछे रहते हैं, उस पर से खींचते हुए ले जाएंगे और यमराज के सामने पेश करेंगे। फिर यमराज कर्मों का हिसाब देखेगा और उसी हिसाब से सजा दे देगा। तो करोड़ों वर्षों तक तो नरकों में पड़ा रहना पड़ेगा। उसके बाद वहां से जब छुटकारा होगा तब (जीवात्मा को) कीड़ा-मकोड़ा, सांप, गोजर, बिच्छू, आसमान में उड़ने वाले पक्षी, धरती पर चलने वाले जानवर आदि योनियों में बंद किए जाओगे। उसके बाद गाय-बैल की योनि फिर उसके बाद नौ महीने मां के पेट में (उलटे) लटकने के बाद मनुष्य शरीर मिलेगा। बहुत दिक्कत होगी। जन्मने-मरने दोनों की पीड़ा असह्य होती है, बर्दाश्त से बाहर होती है, वो झेलनी पड़ेगी। इसलिए अपना (आत्म कल्याण का) काम इसी जन्म में पूरा कर लो। मैं आपको रास्ता गुरु के आदेश से, गुरु की दया से बतलाऊंगा, गुरु की दया आपको दिलाऊंगा।
इसी जीवन में पार होना है- यह आपके ऊपर निर्भर करता है
आदमी योजना बनाता रह जाता है, और रह जाता है। और जो बढ़ जाता है, आगे चल देता है, उसके पीछे चलने वाले लोग तैयार हो जाते हैं। और जो सोचते रहते हैं कि भाई कब चलोगे, कब चलोगे, तो वो बस इसी में ऐसे ही बैठे रह जाते हैं। जो डूबने के डर से बैठे रह जाते हैं, वो पार नहीं हो पाते हैं। जो पार होने का तरीका अपना लेते हैं, वो किसी न किसी तरीके से पार हो जाते हैं। इसी भवसागर में हमको डूबना-उतराना है या इसी जीवन में पार होना है, यह आपके ऊपर निर्भर करता है। आप पर ही हमने छोड़ दिया है। अब आप जैसा चाहो। देखो, एक जगह योजना बनाने से पूरे देश-विदेश में वह योजना सफल नहीं हो सकती है। इसलिए आप लोग अपने-अपने हिसाब से समय निकालो। कुछ तो करो। अभी तक तो आप बिल्कुल एकदम से दिन में खाए, दिन भर दौड़े और शाम को खाए और पैर फैला करके सो गए। बस एक दिन, एक रात निकल गई, जीवन की 21,600 स्वांसों की पूंजी खत्म हो गई। यह 21,600 श्वांस साधारण तौर से (रोज) खर्च होते हैं। अगर भोग में जीवन बिता दिया तो समझो वही (खर्चा) बढ़ कर के चार गुना हो जाता है। इसलिए ये आपके ऊपर है, जो आप चाहो, वैसा करो। मैं तो आपको खाली बता सकता हूं, हाथ पकड़ करके करा नहीं सकता हूं और न आप करोगे। जो थोड़ी बहुत भक्ति और प्रेम है, वो भी खत्म हो जाएगी क्योंकि मनमुखता आ जाती है। यहां (आश्रम/सतसंग स्थल पर) तो आप सोच रहे हो (कि यहां से घर जाकर खूब भजन करेंगे) और जैसे वहां (दुनिया में) जाओगे, साथ पड़ेगा दुनियादारों का और खाना-पीना, उठाना-बैठना भी उनके साथ जैसे ही होगा, जैसे नौकरी दुकान दफ्तर का काम दिखाई पड़ने लगेगा तैसे ही मन के हिसाब से करने लगोगे। मन मुखता आ जाएगी, गुरु भूल जाएंगे, गुरु मुखता भूल जाएगी। तो मैं जबरदस्ती क्यों करूं? लेकिन यह जरूर कहूंगा कि विचार करो, सोचो और समझो। आप संकल्प बनाओ कि हमको इसी जीवन में पार होना है, अब इस दु:ख के संसार में हमको जन्मने-मरने की पीड़ा झेलने के लिए नहीं आना है, इस 84 लाख योनियों में हमको चक्कर नहीं लगाना है। यह आप संकल्प बनाओ और इसके हिसाब से अपनी-अपनी योजना बनाओ।