बांग्लादेश : बांग्लादेश में  सरकारी नौकरियों में आरक्षण न देने को लेकर छात्रों ने खूब विरोध प्रदर्शन किया। जिसके चलते बांग्लादेश की स्थिति बद से बत्तर हो गई, हर तरफ हिंसा ही हिंसा नजर आने लगी। वहीं विरोध प्रदर्शन कर रहे  प्रदर्शनकारियों का गुस्सा बांग्लादेश की पीएम के खिलाफ इस कदर फूटा कि सभी प्रदर्शनकारियों ने शेख हसीना से पीएम पद से इस्तीफा देने की मांग तक कर दी थी। जिसके चलते शेख हसीना ने अपने प्रधानमंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया और बांग्लादेश छोड़ कर भाग निकली।

आज भंग होने वाली है बांग्लादेशी संसद

आरक्षण जैसी मांग के लिए बांग्लादेश में हो रहा बवाल थमने के बजाय और भी बढ़ता ही जा रहा है। हजारों की संख्या में छात्रों ने सारी रुकावटों को पार करते हुए राजधानी ढाका पर कब्जा करते हुए जमकर तोड़फोड़ औऱ आगजनी जैसी घटना को अंजाम दिया है। इस सभी के बीच खबरों के मुताबिक, बांग्लादेशी संसद आज भंग होने वाली है। बता दें बांग्लादेश के राष्ट्रपति मोहम्मद शहाबुद्दीन ने सैन्य समर्थित कार्यवाहक सरकार के गठन पर चर्चा के लिए एक महत्वपूर्ण बैठक की अध्यक्षता की है।

आपको बता दें कि बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना का इस तरह से सेना के दबाव में देश को छोड़कर जाना ये कोई पहला बार नहीं हुआ है, बल्कि ऐसा आजादी मिलने के बाद देश के कई नेताओं को मजबूरन अपना देश छोड़ कर भागना पड़ा। तो चलिए आज हम आपको बांग्लादेश के अशांत इतिहास के बारे में बताते हैं। जिससे ये पता चल जाएगा कि कब क्या हुआ।

हत्याएं और तख्तापलट की भरमार

बताया जा रहा है कि पहले पूर्वी पाकिस्तान, बांग्लादेश 1971 में भारत के साथ एक क्रूर युद्ध के बाद एक नए राष्ट्र के रूप में उभरा था। वहीं स्वतंत्रता के नायक शेख मुजीबुर रहमान देश के पहले प्रधानमंत्री बने, जिसके बाद उन्होंने एक-दलीय प्रणाली जैसी प्रक्रिया की शुरूआत की और जनवरी 1975 में जाकर राष्ट्रपति पद के रूप में अपना पदभार संभाल लिया।

वही एक साल  बीता नहीं कि उनके साथ कई बड़ी घटनाए घटित हुई थी, बता दें एक साल के अंदर ही 15 अगस्त को सैनिकों के एक समूह ने उनकी पत्नी और तीन बेटों को मौत के घाट उतार दिया था। जिसके बाद से खोंडाकर मुस्ताक अहमद ने देश की सत्ता का कार्यभार खुद संभाल लिया था।

खूनी विद्रोह

सत्ता में छह साल से भी कम समय के बाद, 30 मई, 1981 को विद्रोह के प्रयास के दौरान रहमान की हत्या कर दी गई। उनके उपाध्यक्ष अब्दुस सत्तार ने जनरल हुसैन मुहम्मद इरशाद के समर्थन से अंतरिम राष्ट्रपति के रूप में पदभार संभाला। लेकिन इरशाद ने एक साल के भीतर ही सत्तार के खिलाफ एक बड़ा मोर्चा खोल दिया और 24 मार्च 1982 को रक्तहीन तख्तापलट के जरिए उन्हें सत्ता से बेदखल कर दिया। फिर क्या सत्ता संभालने के कुछ देर बाद ही उन्होंने मार्शल लॉ लागू कर दिया और अहसानुद्दीन चौधरी को राष्ट्रपति बना दिया।

फिर 11 दिसंबर 1983 को इरशाद ने खुद को राष्ट्राध्यक्ष घोषित कर दिया। चौधरी, जिनका पद मानद था, जनरल के प्रति वफ़ादार एक राजनीतिक दल का नेतृत्व करने लगे।

विरोध प्रदर्शनों के बाद इरशाद ने दिया था इस्तीफा

बांग्लादेश में लोकतंत्र की मांग को लेकर विरोध प्रदर्शनों की लहर के बाद, इरशाद ने 6 दिसंबर, 1990 को राष्ट्रपति पद से इस्तीफा दे दिया, इसके बाद उन्हें 12 दिसंबर को गिरफ्तार कर लिया गया और भ्रष्टाचार के आरोप में दोषी ठहराए जाने के बाद जेल भेज दिया गया। न्याय मंत्री शहाबुद्दीन अहमद ने अगले साल चुनाव होने तक अंतरिम नेता के रूप में कार्यभार संभाला। इरशाद को अंततः जनवरी 1997 में रिहा कर दिया गया।

पहला स्वतंत्र चुनाव

देश में पहला स्वतंत्र चुनाव 1991 की शुरुआत में हुआ, जिसमें बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) स्पष्ट विजेता रही। जनरल जियाउर रहमान की विधवा खालिदा जिया बांग्लादेश की पहली महिला प्रधानमंत्री बनीं।

1996 में हसीना की अवामी लीग ने बीएनपी को हराकर उनकी जगह उनकी कट्टर प्रतिद्वंद्वी शेख हसीना को प्रधानमंत्री बनाया। वह देश के संस्थापक पिता मुजीबुर रहमान की बेटी हैं।

बीएनपी 2001 में सत्ता में लौटी और जिया एक बार फिर प्रधानमंत्री बनीं तथा अक्टूबर 2006 में अपना कार्यकाल पूरा किया।

भ्रष्टाचार विरोधी अभियान

2007 में, सेना के समर्थन से, राष्ट्रपति इयाजुद्दीन अहमद ने सरकार विरोधी प्रदर्शनों के बाद आपातकाल की घोषणा की। इसके बाद सैन्य नेतृत्व वाली सरकार ने भ्रष्टाचार विरोधी अभियान शुरू किया और हसीना तथा जिया दोनों को भ्रष्टाचार के आरोपों में जेल में डाल दिया, लेकिन 2008 में उनकी रिहाई हो गई।

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