धर्म-कर्म: इस समय के त्रिकालदर्शी, पूरे समरथ सन्त सतगुरु दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने बताया कि, शरीर को स्वस्थ रखने के लिए ध्यान रखना, परहेज करना पड़ता है। ऐसी चीजों का सेवन नहीं करना है जिससे शरीर की अग्नि कमजोर हो जाए, शरीर का सिस्टम बिगड़ जाय, शरीर काम का न रह जाय, खानपान का ध्यान रखो। दूसरी चीज यह कि बुद्धि खराब न हो जाए, इस शरीर से गलत काम न होने लग जाए। अति का भला न बोलना, अति का भला न चुप, अति का भला न बरसना, अति का भला न धूप। ज्यादा बोलना अच्छा नहीं होता है। बरसात जब ज्यादा होती है, बादल फट गया तब तबाही होती है। सावन, भादो दो महीना अगर मेघराज नाराज हो जाए, कहे कि एक बूंद नीचे नहीं गिराएंगे तो? अभी 2-4-5 साल सूखा अगर पड़ जाए तो कितना भी स्टाक है, पूरी दुनिया के लोग मिलकर एक देश को चला पाना मुश्किल हो जाएगा। क्योंकि उसी अन्न पर सबका हमला होगा। किसका हमला होगा? आदमी का, दूसरे देश वालों का हमला होगा।
अन्न को बर्बाद मत करो इसकी इज्जत करो:-
अभी खाने की दिक्कत नहीं है तब तो अकड़ा रहे हैं, तीर-तलवार बना रहे, जमीन-जायदाद के लिए लड़ने के लिए तैयार है। लेकिन जब अनाज नहीं मिलेगा तब तीर-तलवार किसके लिए चलाएंगे? कि इनको खत्म करो और इनका अन्न (लूट कर) ले आओ, खुद जियो। अन्न तो प्रमुख चीज है इसलिए अन्न को देवता कहा गया है। इसलिए कहा जाता है कि अन्न को बर्बाद मत करो, इसकी इज्जत करो।
शादी, ब्याह, फंक्शन में जितना लोग खाने से ज्यादा फेंक देते हैं:-
पैसे वाले लोगों के पास पैसे की गर्मी रहती है। कहते हैं कोई बात नहीं, हमारे पास बहुत पैसा है। शादी ब्याह फंक्शन में जितना लोग खाते नहीं, उससे ज्यादा फेंक देते हैं। बढ़िया-बढ़िया चीज बनवाते हैं, पैसे की कमी नहीं है लेकिन यह नहीं मालूम है कि दुरुपयोग होने पर लक्ष्मी नाराज होकर खिसक जाएंगी। इस चीज का उनको ज्ञान नही है। कारण क्या है? सतसंग नहीं मिलता, महात्माओं जानकारों के पास नहीं जाते, इसलिए ऐसा होता है। अति कोई चीज का अच्छा नहीं होता है। अति हर चीज की बुरी होती है। प्रेमियो! इसलिए बुद्धि न खराब हो जाए उसके लिए खानपान का ध्यान रखना चाहिए और शरीर को बराबर चलाते रहना चाहिए।
बुद्धि खराब कब होती है?
जब ऐसी चीजें पेट के अंदर चली जाती है जो मनुष्य का आहार नहीं है। मनुष्य का भोजन यही जड़ वस्तु है जैसे धान गेहूं चना ज्वार मक्का बाजरा, पेड़-पौधे पर लगे फल आदि। और यह पशु-पक्षी एक-दूसरे का आहार बनाये गए है। अन्न को मनुष्य से जोड़ दिया गया है। पशु-पक्षी एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं।