धर्म कर्म: निजधामवासी बाबा जयगुरुदेव जी के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी, चौरासी लाख के चक्कर, जन्मने-मरने की भयंकर पीड़ा, और इस दुनिया के तमाम दुखों से बचाने वाले, नामदान देने के लिए धरती पर एकमात्र अधिकृत अथॉरिटी, इस समय के पूरे समरथ सन्त सतगुरु दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि पराए देश, घर, जगह पर दु:ख मिलता है, जो आज इंसान भोग रहा है। इंसान, जो दु:ख से परेशान है। लोगों में बेचैनी बहुत है। खाने, पहनने की दिक्कत नहीं है, घर-मकान भी अच्छा है, ऊंचा औहदा भी मिला हुआ है लेकिन शांति सकून नहीं है, बेचैनी है। नींद जल्दी नहीं आती, नींद की गोलियां खानी पड़ती है। कारण यही है कि यहां (इस दुनिया) की चीजों को अपना समझ बैठे और यह नाशवान क्षण भंगुर शरीर, जिसका पता नहीं है कि कब यह छूट जाए, यह मिट्टी का खिलौना मिट्टी में मिल जाए, इस पर अहंकार घमंड कर लेते हैं। मनुष्य शरीर पाने का मतलब नहीं समझ पाते हैं तो कहा से शांति मिलेगी? जो धन, वैभव, सम्मान, विद्या पाने में सुख खोजेगा तो उसको सुख तो मिलेगा ही नहीं क्योंकि सुख तो इससे परे की चीज है। सुख कब मिलता है? खाने में, सोने में सुख मिलता है, कोई सलाम प्रणाम करता है तो उसमें सुख मिलता है आदमी को कि हमको बड़ा समझ कर के प्रणाम सलाम कर रहे हैं, हमारा पैर छू रहे हैं। लेकिन वह सुख स्थिर नहीं रहता है, भूल जाता है।

क्योंकि भूल और भ्रम का यह देश है और थोड़ी देर के लिए ही सम्मान रहता है। जैसे जब नेता को माला पहनाते हैं तो लोग वाह-वाह, जिंदाबाद बोलते हैं। लेकिन आगे चलकर के जब विरोधी लोग मिल जाते हैं तो मुर्दाबाद बोलने लग जाते हैं, काला झंडा दिखाने लग जाते हैं तो अब कहां रह गया वो सम्मान? तो यहां दुनिया की जितनी भी चीज है, इसमे सुख नहीं है। आदमी जिसमें सुख चाहता है, वही दु:ख में बदल जाता है। जैसे सुख के लिए भीड़ इकठा किया और दिखाया कि हमारे साथ इतने आदमी हैं। अब सब को हाथ उठवाया, जिंदाबाद बुलवाया, लेकिन उसके जीवन के काले कारनामे का बखान करने वाले जब आगे मिल गए तो आदमी को दु:ख होगा। तो सुख दु:ख से होए न्यारा, सुख दुख से जब तक न्यारा नहीं होगे, जब तक इस दुनिया से ऊपर की दुनिया में आने-जाने नहीं लगोगे तब तक यह दु:ख बना रहेगा। आप जो लोग नामदानी हो, नामदान का रास्ता आपको मिल गया है, उस रास्ते पर चलोगे, नाम की कमाई करोगे, सुमरिन, ध्यान, भजन करोगे तो सुख-दु:ख से न्यारे हो जाओगे। गुरु की दया लेनी पड़ती है।

नाम की कमाई जिन्होंने किया वही जन्म-मरण से छुटकारा पाया

वो (ध्वनयात्मक) नाम आपको दिया जायेगा, जिसके लिए मीरा ने कहा- पायो जी मैंने नाम रतन धन पायो। नाम जो हमेशा रहा है और नाम की ही महिमा रही है और नाम की कमाई जिन्होंने किया, सुरत को नाम से जिसने शब्द से जोड़ा, वही महान हुआ, उसी का उद्धार कल्याण हुआ, वही जन्म-मरण से छुटकारा पाया। तो नाम आपको बताता हूं। एक होता है मुंह से लेने वाला नाम, जिसको महापुरुष जब आते हैं तो अपनी मौज से लोगों की रक्षा के लिए और अपना काम पूरा करने के लिए एक नाम जगाते हैं। हमेशा वर्णात्मक नाम एक रहा है। और (दुसरा) ध्वनयात्मक नाम यही चले आ रहे हैं। यह आये हुए महापुरुष की मौज पर रहा है कि वो जिस (वर्णात्मक) नाम को जगाना चाहते हैं, उसको उन्होंने जगाया है। तो दो नाम हमेशा रहा है। और दो तरह के गुरु रहे हैं। एक विद्या गुरु और एक आध्यात्मिक गुरु। वक्त गुरु जिसको कहते हैं वह हमेशा रहे। वक्त के गुरु, वक्त के मास्टर, वक्त के डॉक्टर हमेशा रहते हैं और इन्हीं से काम होता है। समझो जो डॉक्टर मास्टर इस दुनिया संसार से चले गए, मृत्यु हो गई, कहो कि हम उससे इलाज करा लेंगे, बच्चों को पढ़ा लेंगे तो कैसे ठीक हो पाओगे, कैसे पढोगे? तो वक्त के डॉक्टर, मास्टर के पास जाना पड़ता है। तो वक्त के मास्टर रहते हैं। इसी तरह से वक्त के गुरु हमेशा इस धरती पर रहते हैं। वक्त के गुरु के पास जाना रहता है।

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