धर्म-कर्म: मनुष्य करता तो अच्छे के लिए है लेकिन अज्ञानता में करने की वजह से हो जाता है बुरा, फिर उस पाप कर्म की सजा को भोगना पड़ता है इसलिए पूरे जानकार, ज्ञानी समरथ को ही गुरु बनाना चाहिए तो ऐसे ही इस समय के पूरे समरथ सन्त सतगुरु दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने बताया कि हराम का खाने वाले की बुद्धि सही नहीं रहती। जो हलाल की, पसीना बहा करके लाई गयी मेहनत की कमाई खाता है, उसकी बुद्धि सही रहती है। पूर्व जन्मों के कर्मों के अनुसार यह मनुष्य शरीर मिलता है। जब जीव अच्छा कर्म करता है तब स्वर्ग बैकुंठ में जाता है। वहां समय पूरा होने पर- पुण्य क्षीण मृत्यु लोके यानी यहां राजा-महाराजा, मुल्ला, पंडित-पुजारी, सेठ-साहूकार के यहां जन्म ले लेता है। संस्कार बना रहता है। अब अगर उसका साथ ऐसा बना रहता है जिससे (स्वर्ग, बैकुंठ से) आगे (जाने की) जानकारी नहीं हो पाती है, तो खाने-पीने ऐश-आराम में ही (जीवन का) समय निकालने लगता है। मनुष्य शरीर पाने का मतलब नहीं समझ पाता है की ये भजन, भाव-भक्ति के लिए मिला है। तो दूसरों का अन्न खाता है, दिया हुआ वस्त्र पहनता है, दूसरे की मेहनत का कमाई का उपयोग उपभोग करता है तो उसके कर्म आ जाते हैं।
आपके दान के पैसे से कहीं मांस-शराब खा-पी लिया तो आपको भी उस पाप की सजा भोगनी पड़ेगी
जैसे किसी को जानकारी नहीं है कि दान किसको देना चाहिए और दान दे दिया। अगर उसके दान को (लेने वाले ने) कहीं ऐसी जगह लगा दिया जिससे हिंसा हत्या हुई हो, मांस खा लिया, शराब पी लिया, शराब के नशे में कोई अपराध कर डाला तो उसकी सजा (दानदाता को भी) भोगनी पड़ती है। शरीर से अपराध हो गया, दान तो दिया कि हमको देना चाहिए लेकिन जिसको दान दिया, वह अपराध कर बैठा, तो जब यह (दानदाता) मरा, यमराज के सामने गया, यमराज ने कहा तुमको सजा मिलेगी, तुमको नरक जाना पड़ेगा। बोला महाराज, हमने ऐसा कोई गलत काम नहीं किया। हम तो अच्छा ही काम जीवन भर करते रहे। हम नर्क गामी क्यों होने जा रहे हैं? कहा तुमने पुण्य किया लेकिन वह पाप में बदल गया। जिस आदमी को तुमने दान दिया, दीन होकर के उसने तुमसे मांगा, तुमने सोचा कि दान देना पुण्य होता है, वह ले गया, वहां हिंसा-हत्या किया, जानवरों को मारा, काटा, मांस को खाया तो (तुम्हे भी) पाप लग गया। अब तुमको नरक जाना पड़ेगा। कहा गया है- गुरु के जानकारी के बिना, गुरु के बिना दान देता है, गलत जगह पर लग गया तो उसका फल भोगना पड़ता है। इसके आगे गुरु महाराज ने राजा गोपीचंद की बड़ी ही रोचक कहानी सुनाई और समझाया कि वक़्त गुरु की जरुरत सबको होती है।