धर्म-कर्म: घर-परिवार में सुख शांति बरकत दिलाने के आसान उपाय बताने वाले, प्रेत बाधा से बचने के भी उपाय बताने वाले, इस समय के पूरे समरथ सन्त सतगुरु दुःखहर्ता, उज्जैन के बाबा उमाकान्त जी महाराज ने बताया कि, गृहस्थ का यह धर्म बनता है कि वह अपने कमाई में से असहाय गरीबों को भोजन कराने में, वस्त्र देने में, अन्य कामों में मदद में, कुछ न कुछ लगाता रहे। तो कहा साधु सेव जा घर नहीं, सतगुरु पूजा नाही, सो घर मरघट सारिखा, भूत बसेता माही। यानी जिस घर में साधु-महात्माओं का सम्मान न हो, उनको भोजन, स्थान न दिया जाए, उनके निमित्त कुछ न निकाला जाए और सतगुरु पूजा नाही यानी जब सतगुर समरथ गुरु बना लिया, सतगुरु को अपना हाथ पकड़ा दिया तो कहा गया गुरु ब्रह्मा गुरु विष्णु गुरु देव महेश्वरा, गुरु ही सब कुछ होते हैं, तो उनको याद न किया जाए, उनकी पूजा न की जाए, तो वो घर मरघट (श्मशान) के समान हैं, जहां मुर्दा जलाया जाता है तो वहां भूत रहते हैं।
आदमी का एक्सीडेंट दुर्घटना हो गई, प्राण, जीवात्मा निकल गई तो जीवात्मा निकली नहीं, जबरदस्ती निकाली गई क्योंकि शरीर बेकार हो गया। शरीर के अंदर यह जीवात्मा रहती है। तो जब शरीर चलने लायक नहीं रहा तो वो अचानक निकली, जब प्राण निकले तो वो जीवात्मा जो अकाल मृत्य में गई, प्रेत योनि में चली जाती है। भूत बनने के बाद उस शरीर में जिसमें रहती थी, उसी के अगल-बगल चक्कर लगाती रहती है और इसी इंतजार में मरघट तक जाती है कि इसी (शरीर) में हमको फिर स्थान मिल जाए। क्योंकि अब हम जाए तो कहां जाए? हमारे लिए कोई जगह नहीं है। तो मुर्दा को जब लोग जला देते हैं तो जलाने वाले को भी वो आत्माएं परेशान करती है। तो उसका उपाय करते हैं, भूतों को खिलाते हैं। बारहवीं, तेरहवीं आदि तमाम संस्कार करते हैं तो वो भूत वहीं श्मशान घाट पर रह जाते हैं। वहां से उनको कोई हटाता नहीं है, कौन हटाने जाएगा वहां? तो वहां भूत रहने लग जाते हैं। तो कहते हैं कि वो घर जहां पर साध की सेवा, सतगुरु की पूजा नहीं होती हो, जहां पर ऐसे लोग रहते हो जिनमें प्रभु के प्रति प्रेम न हो वो मरघट जैसा होता है।
मानव धर्म और आत्मा का धर्म अलग-अलग होता है:-
मानव धर्म यानी सत्य बोलना, हिंसा-हत्या नहीं करना, सेवा भाव रखना, सेवा करना, एक-दूसरे की मदद करना आदि। और आत्म धर्म अलग होता है। आत्मा किसको कहते हैं? परमात्मा की अंश जीवात्मा है आत्मा। यही इस शरीर को चलाती है। इन दोनों आंखों के बीच में बैठी हुई है। आत्मा का धर्म यह होता है कि इसको अपने वतन, अपने मालिक के पास पहुंचाओ। और अगर मनुष्य शरीर पा करके भी आप इसको वहां नहीं पहुंचा पाओगे तो इसी मृत्यु लोक में बार-बार जन्मना और मरना पड़ेगा। जन्मते समय भी देखो बड़ी तकलीफ होती है, बच्चा रोता हुआ पैदा होता है, और मरते समय भी बड़ी तकलीफ होती है। तो जन्मना और मरना पड़ेगा। और इसी शरीर से अगर बुरे कर्म ज्यादा बन गए तो नरकों में जाना पड़ेगा। जब यह शरीर छूटेगा तब इस जीवात्मा को (मनुष्य शरीर जैसे) पिशाच के शरीर में बंद करके नरकों में डाल देंगे और आदमी जैसा-जैसा कर्म किया रहेगा, उसी हिसाब से उन नरकों में सजा मिलेगी। नरकों में बहुत तकलीफ, बड़ी मार पड़ती है। सौ-सौ कोस तक चिल्लाने की आवाज जाती है, कोई बचाने वाला नहीं मिलता है। वो सजा पूरी होने पर कीड़ा-मकोड़ा, सांप, गोजर, बिच्छू, जमीन पर चलने, जमीन के नीचे रहने वाले, आसमान में उड़ने वाले पक्षियों, पानी के अंदर रहने वाले जीवों के शरीरों योनियों में बंद किए जाओगे। जब वहां से छुटकारा मिलेगा तब गाय और बैल की योनि के बाद फिर नौ महीने मां के पेट में उलटे लटकने के बाद यह मनुष्य शरीर मिलेगा।
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बाबा जी ने कहा कि, यह मनुष्य शरीर आपको पाप करने के लिए नहीं मिला है। यह सुख भोगने के लिए मिला है, कहां पर? इस धरती पर रहो, सुखी रहो। सुखी कौन रह सकता है? जिसके कर्म अच्छे होते हैं। कहते हैं कि भाई उनको बहुत सुख है, खाने रहने पहनने की कोई कमी नहीं है, गाड़ी घोड़ा भी है। तो यह कैसे मिलता है? मेहनत से मिलता है। छोटे-छोटे लोग देखो, दिन-रात मेहनत करते हैं, तरक्की कर जाते हैं। और जो लोग मेहनत ईमानदारी से कमाई करते है, उनको कम कमाई में भी बरकत हो जाती है। तो यह कर्म है। कर्म से यह शरीर सुखी रहता है। यदि आप कहोगे कि भाई वो फलाना व्यक्ति तो बिना मेहनत के, धोखा दे कर, इधर-उधर से ले आया और बहुत जल्दी अरबपति बन गया, वो मेहनत ईमानदारी से इतना इकट्ठा नहीं कर सकता था। तो ऐसे को शांति नहीं मिलती है, शरीर से सुख नहीं मिलता है। कभी सिर, कभी पेट, कभी पैर में दर्द, कभी दिल धड़कने लगता है तो कभी लीवर खराब, कभी किडनी खराब। जब दर्द होता है तब नींद नहीं आती है। रात को हाथ-पाँव दबाने वाले भी थक जाते हैं लेकिन बदन का दर्द नहीं जाता है। तो वो सुख नहीं है। सुखी वो है जो जितना खाए उसी में संतुष्ट हो जाए, मन भर जाए और जहां सोए, आराम से नींद आ जाए, वो सुखी है, उसके शरीर को सुख उस तरह से है।