धर्म कर्म: नरकों से बचने का उपाय नामदान बताने वाले, पूरे समर्थ सन्त सतगुरु दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि जो भजन ध्यान करते, सतसंग सुनते, सतसंगी रहते, अपने कर्तव्य का पालन करते हैं, जिनमें देश प्रेम, समाज प्रेम, परिवार प्रेम, मानव प्रेम होता है, उनके नजदीक यमराज के दूत नहीं आते हैं। और जो बुराइयों में ही लगे रहते हैं, चाहे जानकर या इंद्रियों के भोग के सुख के खातिर या अनजान में, उनका समय पूरा होने पर मकान (मनुष्य शरीर) खाली कराने के लिए तो आते ही आते हैं। सन्तों की बातों को, असली चीज को नहीं समझ-पकड़ पाता लेकिन जब शरीर खाली करने का होता है, यमराज के नुमाइंदों का जोर तब ज्यादा चलता है फिर यमराज के सामने पेश होना पड़ता है।

मृत्यु के बाद का सफर

यमराज के आदेश से उसके नुमाइंदे जिन्हें यमदूत, मलक-उल-मौत कहते हैं, वो आते हैं। वह इस जीवात्मा को पकड़ करके ले जाते हैं। कभी ऐसा भी हुआ कि सन्तों के जीव से बुरे कर्म बन गए, उनको भी पकड़ कर ले जाते हैं लेकिन सन्त की दया हो गई, प्रकट हो गए, सामने आ गए तो उन (यमदूतों) को वापस भेज देते हैं। कभी यमराज ऐसा भी हुकुम देते हैं कि ले जाओ, उनको नरक दिखा दो। जब अच्छे कर्म ज्यादातर होते हैं तो उतनी सजा नहीं मिलती नहीं तो मारते, घसीटते, काटते, जलाते, कटे पत्थरों पर से खींचते हुए ले जाते हैं।

कृष्ण की विदाई और पांडवों को सन्तों की शरण में जाने का संदेश

जब महाभारत खत्म हुआ, कृष्ण ने कहा6 मेरा समय जाने को हो गया, मेरा काम पूरा हो गया। मैं इसी काम के लिए आया था। धर्म की स्थापना और दुराचारियों का संहार हो गया। पांडवों ने कहा हमें भी ले चलिए। तब कहा मैं तुम्हें नहीं ले जा सकता हूं। मेरा काम यह नहीं है। तुमको किसी त्रिकालदर्शी, सन्त सतगुरु की जरूरत है। तुम्हे उनसे उपाय सीख करके, योग साधना करने की आवश्यकता है। उनको खोजो, उनसे रास्ता लेकर के तुम भजन साधना करो तब तुम मेरे धाम पहुंच सकते हो। बहुत रोए, गिडगाए लेकिन कहा की केवल सन्तों में ही पावर होती है। उनकी कदमपोशी करो, उनके पास जाओ। गीता के चौथे स्कंद में 34वें श्लोक में यही लिखा हुआ है। बोले तुम अगर योग साधना नहीं करोगे तो तुमको नरक जाना पड़ेगा। पांडव वैतरणी नदी में कूदे थे और नरकों में कर्मों की सजा मिल रही थी। समझो जो परिवर्तन करने के लिए मनुष्य शरीर में आए थे, जिनमें काल और दयाल दोनों की धार रही, जिन्होंने विनाश भी किया और अच्छे लोगों की मदद भी किया, उनको याद करके, उनका नाम लेकर के, उनकी पूजा करके कैसे पार होया जा सकता है। 24 घंटा साथ में रहने वाले पांडव को दो टूक जवाब दिया। चार भाई तो पहले नरक चले गए।

पांडवों की यमराज के दरबार में यात्रा और नरकों में सजा का वर्णन

यमराज ने यमदूतों को हुक्म दिया की धर्मराज युधिष्ठिर को नरक दिखाओ। उनके कर्म कुछ अच्छे थे। मौत के बाद लिंग शरीर में जैसे आगे बढ़े, दक्षिण की तरफ यमराज का लोक है। यमराज ने वहां पसारा फैला रखा है। इस शरीर से आत्मा के निकलने के बाद कई रास्ते हैं। उधर की तरफ जब बढ़ने लगे तो नरकों की बदबू आने लगी। यमदूतों से पूछा यह बदबू कैसी आ रही है? बोले आगे चलो, पता चल जाएगा। आगे और तेज बदबू आने लगी। बदबू की एक तरह से आंधी बवंडर चल गई। नाक में एकदम बदबू ही बदबू भर गया। सांस लेना मुश्किल हो गया। तब तक वहां पहुंच गए, देख रहे हैं कि पांडवों (भाइयों) को सजा मिल रही है। यमराज के दूत बोले देख लो और वापस चलो। युधिष्ठिर आश्चर्य में पड़ गए, कहे कि इनको भी ले चलो। बोले इनको तो हम नहीं ले जा सकते हैं। हमको तो आपको दिखाने का आदेश था। तो कहे कि हमको छोड़ दो, नीचे पहुंचा दो तो बोले यह भी नहीं कर सकते हैं।

कृष्ण का उपदेश- कर्मों की सजा और नर्क से बचने का मार्ग पूरे सन्त की शरण

कर्मों की सजा आदमी को भोगनी पड़ जाती है। कर्म से, नरकों से बचने के लिए क्या करना चाहिए? जिस काम के लिए मनुष्य शरीर मिला है, वह काम करना चाहिए। किस लिए मिला है- एक-दूसरे का लेना-देना, कर्ज अदा करने के लिए। पिछले जन्म में भी आप कहीं थे। आपको नहीं पता कि आप कीड़ा-मकोड़ा, सांप-बिच्छू, गोजर, आसमान में उड़ने वाले पक्षी, जल के जीव थे या कहीं और जगह पर आप थे। जो भी कर्म इकट्ठा हुए, जो थोड़े कर्म रह गए तो फिर मनुष्य शरीर में आना पड़ा। बीमारियां, लड़ाई-झगड़ा, संकट पर संकट आ रहे हैं। ऐसा क्यों हो रहा है? यह कर्मों की वजह से हो रहा। लेकिन अच्छे कर्म ज्यादा थे इसलिए यह मनुष्य शरीर आपको मिल गया है नहीं तो यही जीवात्मा उन (चौरासी लाख) योनियों में डाल दी गई होती तो बड़ी तकलीफ।

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