धर्म कर्म; पांच नाम का नामदान देने के एकमात्र अधिकारी, इस समय के पूरे समर्थ सन्त, वक़्त गुरु, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि समर्थ गुरु कौन होते हैं? जो शब्द भेदी होते हैं। सतवां गुरु सत शब्द लखावा, जहां का जीव तहां पहुंचावा।। जहां का जीव होता है, उसको वहां पहुंचाने का रास्ता बताते हैं, उसे चलाते हैं और मंजिल तक पहुंचा भी देते हैं। उनको क्या कहते हैं? कंज गुरु ने राह बताई, देह गुरु से कुछ न पाई।। एक देह (शरीर) के गुरु होते और एक शब्द भेदी गुरु होते हैं जो पांच नाम बताते सुमरिन कराते हैं, वो कंज गुरु होते हैं। तो कंज गुरु ने प्रभु को पाने की, अपने घर वतन मालिक के पास जाने की राह बताई तो वह गुरु, समर्थ गुरु कहलाते हैं। ऐसे गुरु को याद करना, उनकी बातों को मानना, उनके बताए रास्ते पर चलना ही गुरु भक्ति होती है। तो जिसके अंदर गुरु भक्ति आ जाती है, उसको शब्द जल्दी पकड़ में आता है। क्योंकि- बिन गुरु भक्ति शब्द में पचते, सो प्राणी तू मूरख जान, शब्द खुलेगा गुरु मेहर से, खींचे सुरत गुरु बलवान।। गुरु ही सुरत को खींचते हैं, वो मदद करते हैं। तो उनकी भक्ति करनी पड़ती है। तो प्रेमियो! भक्ति के लिए गुरु महाराज बता कर गए। और जितने भी सन्त महात्मा पूरे फकीर आये, चाहे दरिया साहब हो या भीखा साहब, शिवदयाल जी महाराज, नानक साहब, घूरे लाल जी महाराज हो और चाहे गुरु महाराज हो, सब लोगों ने यही कहा।

शब्द जल्दी पकड़ने का सिद्धांत

बिना गुरु भक्ति के शब्द में पचना भी बड़ा मुश्किल है क्योंकि जीव तो इस समय पर बिल्कुल अपंग है, उठ-बैठ, चल नहीं सकता। यह तो इंद्रियों के भोग में मस्त है। चित में यही भोग ही भोग है। वासना मन में बसी, मुझसे सतसंग भजन ध्यान कियो न जाए।। तो जब भोग वासना बसी हुई है तो एक म्यान में दो तलवारें नहीं रह सकती है। एक म्यान में एक ही तलवार रहती है। इसलिए भोग की तरफ से हटना पड़ता है, जो इस समय बड़ा मुश्किल है। बगैर गुरु की दया से उधर से कोई हट नहीं सकता है। इसलिए गुरु की दया बराबर लेते रहना चाहिए। जो गुरु कहें, करो तुम सोई, मन के कहे, करो मत कोई।। बराबर अगर सतसंग सुना जाए, गुरु चले भी जाते हैं लेकिन गुरु की बातों को लोग बताते रहते, बात तो वही है, चीज यही है, एक ही चीज है। कोई भी बतावे, समझावे। जितने भी (सन्त महात्मा) आए, सब उन्ही चीजों को समझाए, बताए। यह चीज जो सत्य है, वो कभी ख़त्म नहीं होती है। यह जो पांच नाम है ये आदि नाम है। जो प्रेमियो! हमको-आपको मिला। जो नए लोग आज आये हो, उन्हें आज दिया, बताया जाएगा। इसको कोई खत्म कर ही नहीं सकता है। शुरुआत का यह नाम है। इसी नाम से उद्धार कल्याण होता, नरकों चौरासी में जाने से बचते हैं, इस भव सागर रूपी कूप में पड़े रह जाने से बचते हैं, समूद्र में डूबने से बचते हैं। तो यह पांच नाम है। कोटि नाम संसार में, ताते मुक्ति न होए, आदि नाम जो गुप्त जप, विरला समझे कोय।।

बाहरी आंखों-कानों से आदि गुप्त नामों को देखा-सुना नहीं जा सकता है

यह गुप्त है (जो केवल वक़्त के सन्त ही बताते हैं), इन बाहरी आंखों से नामियों को देखा नहीं जा सकता है और न इन बाहरी कानों से इनके शब्द को सुना जा सकता है। जब तक अंदर का आंख और कान नहीं खुलेगा तब तक इनके दर्शन और उनकी आवाज सुनाई नहीं पड़ेगी। अब आप जो पहली बार आए हो, कहोगे अंदर कौन सी आंख-कान है? बाहर के आंखों के बारे में तो आपको जानकारी है क्योंकि इन बाहरी आंखों से दूसरे (व्यक्ति) के आंख, चेहरे को देखते हो। आप अपनी आंख को तो नहीं देख सकते हो लेकिन दूसरों को देखते हो। और कोई बताता है कि ये आंख है। मां कहती है कि बेटा, पानी लेकर के आंख धो लो। यह जो कीच निकल रही है, यह साफ हो जाएगी। मुंह में पानी लेकर के कुल्ला कर लो। जो गंदगी रात को सोते समय अंदर से निकली है, जो दांतों के ऊपर जमा हो गई है, उसको तुम धो लो, साफ कर लो नहीं तो जब खाओगे तो वही गंदगी अंदर पेट में चली जायेगी, जहर फैल जाएगा और फिर बीमारी आ जाएगी। तो ये बाहरी आंख ही मालूम पड़ती है कि यही आंख है। लेकिन इसकी देखने की सीमा है। थोड़ी दूर के आगे नहीं देख सकते हो। लेकिन वो जो अंदर जीवात्मा में एक आंख है, उसकी सीमा बहुत दूर तक है। इसीलिए उसको दिव्य दृष्टि, दूर दृष्टि, फकीरों ने रुहानी आंख कहा, स्पिरिचुअल मास्टर ने थर्ड आई कहा। तो उससे ऊपरी लोकों की चीजें, वो प्रभु दिखाई पड़ता है। ऐसे ही अंदर में एक कान है तो उससे उसकी आवाज सुनाई पड़ती है।

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