धर्म कर्म: इस समय के पूरे समरथ सन्त वक़्त गुरु दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि जब लोग यह बात समझ गए की महाराज जी ऐसा काम कर रहे हैं जो गंगा, वृक्ष काम करता है, वह कोई अपने लिए नहीं होता है। वृक्ष-नदी अपना फल-जल स्वयं नहीं खाता-पीता है। जल कोई भी पिए, जानवर, आदमी, हिंदू मुसलमान सिख इसाई, कोई भी पिए, इसलिए गंगा को निर्मल माना गया। वृक्ष की पूजा लोग करते हैं। गऊ को माता माना जाता है। गऊ चाहे काली, गोरी हो, चाहे महाराष्ट्र ,आंध्र, तमिलनाडु कहीं की भी हो, दूध हमेशा सफेद ही रहता है। सींग चाहे लम्बे हो, छोटे हो, कोई भी गाय को पाल ले, सबको बराबर दूध देती है। अब यह तो अज्ञानता भूल है कि हमारा मजहब धर्म सबसे ऊंचा है, हम सबसे ऊंचे हैं। ऊंचे-ऊंचे वाले ही नीचे चले जाते हैं। जाति और मजहब के आधार पर भेदभाव करना अज्ञानता है। देखो इसी में कितने लोगों की जान चली जा रही है। मजहब के चक्कर में, धर्म के नाम पर जान चली जा रही है। उनको इस बात की जानकारी नहीं है कि मजहब, धर्म क्या होता है। धर्म एक ही है- मानव धर्म, सत्य, अहिंसा, परोपकार, सेवा यह मानव धर्म है। जो इन चारों से अलग हो जाता है, चाहे जिस जाति-मजहब का मानने वाला हो, वही अज्ञानता में आ जाता है।
मानव हत्या का पाप तो कभी क्षमा होता ही नहीं है
देखो वही लोग जुबान के स्वाद के लिए गाय को मार-मार करके खा जा रहे हैं। जिसको माता कहते हैं, पूजा करते हैं, पैर छूते हैं, पूछ पकड़ करके कहते हैं- बैतरणी पार करा देगी, उसी को मार करके खा जाते हैं, कितना बड़ा पाप करते हैं। जीव ह्त्या बहुत बड़ा पाप है। इससे बचना।
किसी भी जीव या पशु-पक्षी की जान बचाने वाला भगवान के तुल्य होता है
इस चीज को याद रखना। आपके द्वारा मानव हत्या न होने पावे। आपके द्वारा ऐसी कोई योजना न होने पावे, जिसमें किसी आदमी की जान चली जाए। चाहे जिस भी जगह पर आप हो, चाहे अधिकारी, कर्मचारी, व्यापारी, राजनेता, किसान, गृहस्थ कोई भी हो, कोशिश करो कि आपकी वजह से किसी की जान न जाए। जान जा रही हो तो आप बचा लो तो आप बिल्कुल देवतुल्य हो जाओगे। जो जान लेते हैं, वह हैवान होते हैं। जो उनको समझाते हैं, वह इंसान होते हैं और जो जान बचा लेते हैं, वह भगवान तुल्य हो जाते हैं। प्रेमियो! किसी भी मानव की, किसी भी पशु-पक्षी की हत्या मत करना।
हमारे यहां सिर्फ मानव धर्म सिखाया जाता है
जैसे पेड़-पौधे सबके लिए होते हैं, ऐसे ही नामदान देने का काम सबके लिए है। इसलिए यहां सतसंग में यह नहीं पूछा जाता है कि आप ब्राह्मण क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र, हिंदू मुसलमान सिख इसाई यहूदी कौन जाति-धर्म के हो। यहाँ कोई नहीं पूछता। जाति-पाति पूछे नहीं कोई। हरि का भजै सो हरि का होई।। यहां तो हर किसी को भजन कराया जाता है और किया जाता है। भजनांनदी इस चक्कर में नहीं पड़ते हैं।