धर्म कर्म: वक़्त गुरु दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि नित्य और निमित्त दोनों अलग-अलग हैं। नित्य यानी रोज, जैसे कोई रोज भोजन बनाते हो वह नित्य क्रिया में आता है और कोई भोजन बना करके (केवल) परोसने के लिए कह दे तो वह निमित्त क्रिया में आता है। ऐसे ही नित्य और निमित्त अवतार होता है। निमित्त अवतार किसका होता है? जब जरूरत पड़ती है तब ऊपर की शक्तियों को भेजा जाता है। मनुष्य शरीर में उस शक्ति को भरा जाता है फिर वो उनसे काम लेता है। जहां भी जिस लोक की शक्ति आती है, वह उससे काम लेती है। वह निमित्त अवतार कहलाता है। उसी काम के लिए भेजा जाता है। उनमें कई लोग ऐसे रहे हैं जैसे श्रीराम, श्रीकृष्ण, हजरत मोहम्मद साहब, ईसा मूसा, महावीर, बुद्ध आदि यह लोग निमित्त अवतार में थे।
नित्य अवतार
सन्तों के बारे में बताया गया है कि वह हमेशा इस धरती पर रहते हैं। तभी तो कहा गया है- घिरी बदरिया पाप की, बरस रहे अंगार। सन्त न होते जगत में, तो जल मरता संसार।। सन्त एक जगह बैठ करके संभाल करते रहते हैं, उपदेश करते और करवाते भी हैं। जब जरूरत (जब पाप अत्याचार ज्यादा बढ़ता है) पड़ती है तब दूसरे को उधर से शक्ति मिल जाती है, तब वो घूम करके संभाल करते हैं, लोगों को बताते हैं।
निमित्त अवतार का काम दिखावे में आता है, जबकि नित्य अवतार का काम हमेशा स्थिर रहता है
ऐसे लोग जो काम को करते हैं, चाहे नित्य या निमित्त अवतार वाले हो, जिनका काम दिखावे में आ जाता है उनके बारे में लोगों को मालूम हो जाता है। जिनका संपर्क (ज्यादा) लोगों से नहीं हो पाता है, उनके बारे में (लोगों को) नहीं मालूम रहता है। कुल मिलाकर के समझो, भारत देश में ही ज्यादातर शक्तियां रही हैं। यहीं से पूरे विश्व दुनिया की बहुत कुछ संभाल हुई है। जैसे ऐसी व्यवस्था बनी हुई है कि राजधानी दिल्ली से इस देश में कोई कहीं भी हो, उसकी संभाल होती है, न्याय, सुरक्षा, खाने, रहने आदि की व्यवस्था होती है। ऐसे ही संभाल होती रहती है। नित्य और निमित्त जैसे अवतार होता है। जब कोई काम होने को होता है तब उसका कोई कारण बनता है जैसे जब-जब परिवर्तन होने को हुआ तो कारण बना। जैसे जब भूरा बादल नीचे से ऊपर चढ़ता है तब बारिश होती है, इसी तरह से इस मृत्यु लोक में हम जब निमित्त बनेंगे कि हमको जो यह मनुष्य शरीर मिला है इससे निमित्त बन करके हम अपनी आत्मा का कल्याण कर लें और नित्य करें। और जब नित्य और निमित्त को एक जगह जोड़ इकट्ठा कर दिया जाए तो फिर दोबारा इस दु:ख के संसार में आना नहीं पड़ेगा, नहीं तो लौट-लौट चौरासी में आना पड़ेगा।
निमित्त अवतार से नहीं, आत्मा का कल्याण करने के लिए गुरु महाराज जैसे सन्त की आवश्यकता होती है
उसके लिए आपको गुरु महाराज (बाबा जयगुरुदेव जी) जैसे जो नित्य सन्त मिल गए, उन्होंने रास्ता (नामदान) बता दिया कि इससे तुम्हारी आत्मा का कल्याण हो सकता है। और यह ऐसा नाम है, नित्य करने वाला नाम है, हमेशा रहा है। निमित्त नाम मुंह से लिया जाता है। जब निमित्त अवतार वाले आए, उन्होंने ऐसा काम किया कि जब (जरुरत के समय) उनके नाम को बोले तो उससे लोगों को फायदा हुआ तो इसका प्रचलन ज्यादा हो गया, उनको ज्यादा लोग जान गए। तो इस समय उन (पिछले) निमित्त नामों को मुंह से लेकर के (भवसागर) पार होना चाहते हैं तो यह बड़ा मुश्किल है क्योंकि-
निमित्त नाम समय-समय पर बदलता रहता है
क्योंकि यह नाम बदलता रहता है। कभी राम नाम, कभी कृष्ण, कभी नारायण आदि नाम से लोगों ने उनको पुकारा। जो भी नाम का उनका आदेश हो गया कि इसमें शक्ति रहेगी या उनको अधिकार मिल गया कि कोई भी नाम को तुम जगा लो, तुम्हारे मुंह से जो नाम निकलेगा, उसी से लोगों की भलाई होगी। उस समय लोग बोले और फिर उस नाम का प्रचार हो गया। वही नाम लोग अब भी मान रहे हैं। यही कारण है कि भगवान के बहुत से नाम हो गए और लोगों ने उन्हीं के नाम पर स्थान, मजहब, पंथ बन गया। यह जो मुंह से लेने वाला नाम है, यह निमित्त नाम है। वह जब-जब आए हैं, जिस नाम से लोगों ने पुकारा है और पिछले दिनों में लोगों को फायदा हुआ है, जो बीत गया, यह जो मुंह से लेने वाला नाम है यह निमित्त नाम है। समय-समय पर नाम में ताकत रही है। समय जब-जब बदलता गया, दूसरा-तीसरा नाम आ गया, तब वो नाम हट गया और लोग दूसरे नाम की आजमाइश करने लगे। तो यह मुंह से लेने वाला निमित्त नाम बदलता रहता है। लेकिन गुरु महाराज ने जो पांच नाम दिया, गुरु जो जानकार होते हैं, जिनको इसी काम के लिए भेजा जाता है, वह नित्य नाम है, रोज हो रहा है, हमेशा रहा है।