धर्म कर्म; इस कलयुग की सन्त परम्परा में वक़्त गुरु होने के नाते पांच नाम का नामदान देने के एकमात्र अधिकारी, जिनके मुंह से सुनने पर ही नाम असर करेगा, जिनकी दया मेहर से ही अब अंदर में शब्द खुलेगा, दुसरा कोई उपाय नहीं है, ऐसे परम सन्त, वक़्त गुरु दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने कार्तिक पूर्णिमा, नानक जयंती के अवसर अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि आज सन्तमत के दुसरे गुरु नानक देव जी का जन्मदिन आज लोग मना रहे हैं। जो उपदेश वह देकर के गए, उसे आज बताने और सीखने की जरूरत है। जितने भी सन्त आए, उन्होंने कोई भेदभाव नहीं रखा। सन्तमत एक ही मत होता है, उसके सिद्धांत उसूल में बदलाव नहीं आता है। बाकी आदमी के बनाये मत में बदलाव, उतार-चढ़ाव आ जाया करता है। जैसे कथा-भागवत आदि में लिखा कोई सामान नहीं मिला तो भी बोलेंगे कि चल जाएगा। लेकिन सन्तमत में बदलाव नहीं होता है। वह बराबर वोही चलता रहता है। इसलिए सन्तों ने सारे पूजा-पाठ जिसमें फंसाव होता है, उसको खत्म करके आंखों के नीचे की साधना, जो शरीर के अंगों से, फूल पत्ती प्रसाद आदि चढ़ा करके, नहा धो करके आदि की जाने वाली है, इसको खत्म कर दिया। आंखी मध्य पाखी चमके, पाखी मध्य द्वारा। ते द्वारे दूरबीन लगावे, उतरहि भव जल पारा।। सन्तमत की साधना को हर कोई, चाहे हिंदू मुसलमान सिख इसाई ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य या ये उपजातियां हो, आदमी या औरत कोई भी हो, सब कर सकते हैं।

नानक जी के मुख्य उपदेश क्या थे

नानक जी ने बताया कि स्त्री-पुरुष समान है। बनावट में अलग हैं लेकिन स्त्री-पुरुष का भेद अंदर साधना में कुछ स्थान तक जाकर ख़त्म हो जाता है। उनका मुख्य उपदेश है कि वो नाम जपो जिस नाम से सुख शांति मिलती है, आत्मा का कल्याण होता है, जो नामदान के रूप में आप (सतसंग में आये) लोगों को मिल गया है। इस नाम से ही उद्धार होता है। उस समय जिन लोगों का खान-पान खराब था, गलत चीजों का इस्तेमाल करते, जो मनुष्य का भोजन नहीं है ऐसा पशु-पक्षियों के मांस, अंडा का सेवन करके अपने अंतःकरण को गंदा करते थे, जिनकी बुद्धि राक्षसी हो जाती थी, उनको उन्होंने नाम जापाया था, प्रमाण मिलता है। सब राक्षस को नाम जपायो। आमिष भोजन तिनहि तजवाओ। जब इस जीवात्मा को अंदर में भोजन मिलने लगता है तो गंदी चीज की तरफ इसका मन नहीं जाता है।

नानक जी ने मांस-मछली-अंडा का अशुद्ध आहार छुड़वाया

(आई हुई भक्तों की भारी भीड़ में) आप कुछ लोग जो पहले मांस मछली खाते रहे होंगे, लेकिन जब (सतसंग सुनकर) आपके समझ में आ गया, आपने देखा कि शाकाहारी रहने पर ज्यादा दया मिलती है, मन प्रसन्न, शरीर स्वस्थ रहता है तो आपने छोड़ दिया। ऐसे ही बहुत लोगों (का अशुद्ध आहार) नानक जी ने छुड़वा दिया। उन्होंने समझाया जैसे गुरु महाराज बाबा जयगुरुदेव जी समझाते थे कि जैसे किसी की उंगली या उसके बच्चे को मारो-काटो तो दर्द होगा, ऐसे ही जब बकरे मुर्गे के बच्चे को मारते-काटते हो तो उसको भी दर्द होता है। जब उसकी तकलीफ को कोई सुनने वाला नहीं होता है तब प्रभु से आवाज (गुहार) लगाता है तो वह मालिक तकलीफ देने (वाले को तकलीफ देने) लगता है। जैसे आपको समझाया जा रहा है, वैसे उन्होंने भी समझाया, कहा कि मन चित बुद्धि का सही होना जरूरी है, अंतरात्मा को सही रखना जरूरी है। अंतरात्मा यानी प्रभु का सिंहासन उसको साफ नहीं रखोगे तो प्रभु कैसे बैठेगा।

पांच नाम की डोर को पकड़वाया, शब्द से जोड़ा

नानक जी ने समझाया जो रक्त लागे कापडे, जामा होय पालीत। जो रक्त पीवे मानुसा..। उन्होंने कहा- नानक दुखिया सब संसार, सुखी वोही जो नाम आधार। उन्होंने देखा कि सब दु:खी हैं। जैसे आज सब लोग, संसार दुखी है, राजा प्रजा किसान व्यापारी कर्मचारी सब दुखी हैं, वैसे उस समय भी बहुत दु:खी थे। सुखी कौन है? जो नाम आधार है। जो नाम को पकड़ लेता है, जो नाम की डोर को पकड़ लेता है, वही सुखी हो जाता है। जो नाम(दान) आपको मिला है, जिसके लिए पांच नाम का सुमिरन करने के लिए आपको बताया गया, जब आप उसे करोगे, तब इससे आपका संकट, दु:ख दूर होगा, सुकून शांति मिलेगी नहीं तो ऐसे मिलने वाली नहीं है। नशेडी नशे में रहते हैं, कहते है कि बहुत मस्ती आनंद आता है। लेकिन नानक साहब जी ने ही समझाया- भांग भखूरी सुरापान उतर जाय प्रभात। नाम खुमारी नानका, चढ़ी रहे दिन-रात।। इस दुनिया के भांग और नशा को कोई रात को खा-पी ले तो सुबह उतर जाता है लेकिन नाम का नशा कभी नहीं उतरता है।

आज नाम छूट गया जो केवल वक़्त गुरु ही दे सकते हैं

आज हमको नानक जयंती के दिन यही बताना है कि जो महात्माओं के उपदेश रहे हैं, चाहे सिख धर्म हो, चाहे अन्य धर्म के मानने वाले हो, जो सन्तमत के लोग हो, उनको समझो। और उनके उपदेश क्या रहे हैं? यही बातें, जो आपको बताई जाती है कि मेहनत-ईमानदारी की कमाई करो, इसमें बरकत मिलती है। नानक जी ने भी लोगों को मेहनत-ईमानदारी की कमाई करना सिखाया। इसीलिए बहुत से सिक्ख धर्म के मानने वाले लोग गुरु के निमित्त दसवां अंश निकलाते हैं, इसी से वे जगह-जगह भंडारा करते हैं। गुरुद्वारा बने हुए हैं, वहां निशुल्क खिलाते हैं कि हमारा जो (और लोगों से) लेना-देना है, कर्मों का कर्जा है, वह अदा हो जाएगा। सिख धर्म मानने वाले छोटे से छोटे कमाई धंधा करने वाले लोग देखो कितनी तरक्की कर गए, खूब कमाए लेकिन वह फिर उसी में फंस गए और असली चीज को छोड़ दिया। तुम नाम जपन क्यों छोड़ दिया? उन्होंने नाम को जपना छोड़ दिया, केवल गुरु ग्रन्थ को पढ़कर के कहते हैं कि इसी से हम पार हो जाएंगे। अरे भाई! किताबें किसी को पार नहीं कर सकती। किताब में जो लिखी हुई चीज है, वह पार करती है। जैसे समझो किताबों में दवा का नाम लिखा हुआ होता है। अगर बहुत सारी दवाओं के नाम लिखी हुई किताब को घोट करके पी जाओ और कहो कि इससे हमारा मर्ज ठीक हो जाएगा तो ऐसा नहीं हो सकता है। जब उसमें लिखी दवा को खाओगे तब आपका मर्ज ठीक होगा। इसलिए उसमें जिस नाम के बारे में लिखा है, जिस नाम को प्राथमिकता दिया हुआ है और जितने भी सन्त, हमारे गुरु महाराज जैसे इस धरती पर आये, सभी लोगों ने नाम के बारे में, नाम के महत्व को, नाम को जपने के लिए, नामी (जहां से नाम निकल रहा) को याद करने-देखने के लिए, प्रभु की आवाज सुनने के लिए बताया।

प्रभु सर्वत्र, सबमें है

और नानक जी ने क्या बताया? जो गोस्वामी जी ने कहा- हरि व्यापक सर्वत्र समाना। उन्होंने कहा कि वह प्रभु सब जगह विराजमान है। एक प्रसंग से महाराज जी ने समझाया कि उन्होंने कहा की हमारा पैर उस तरफ कर दो जहां खुदा काबा न हो। पैर पकड़ कर जिधर घुमाया उधर ही काबा दिखा। तब पहचाना की आप तो पूरे फकीर हो, मेरी खोज पूरी हो गयी। मीरा ने भी कहा- घट घट मेरा साईया, सूनी सेज न कोय। बलिहारी वह घट की, जा घट प्रकट होय।। सबके घट में, कण-कण में, सब जगह, हम में, तुम में, सब जगह वह प्रभु है। यह किसके लिए है? जो देखता है, वह समझता है। जिसको मिला वही समझा। सब जगह परमात्मा है। कोई जगह उसे खाली नहीं है। प्रेम से प्रकट होय मैं जाना।

जिनको नामदान मिल गया है, वो नाम की कमाई लग कर करो

हमारे आपके सबके अंदर वही प्रभु है लेकिन उस प्रभु से प्रेम तो हो। प्रेम छूट गया। अब किससे प्रेम हो गया? आदमी के देह से, औरत को पुरुष से, पुरुष को औरत से प्रेम हो गया। प्रेम अगर उधर किया जाए, जितना प्यार परिवार वालों से करते हो, उतना ही प्रेम अगर गुरु से कर लो तो कोई आपका पल्ला और वेग़ पकड़ने, रोकने वाला कोई नहीं है। आप जिनको नामदान मिल गया है, आप नाम का जाप करो। गुरु भक्ति करो, गुरु के आदेश का पालन करो जिससे यह भ्रम का पूष, माया का कोहरा हट जाए, आप सा-वन जैसा, उस प्रभु जैसा ज्येष्ठ बन जाओ, चैत महीना आपको चेताने के लिए न आवे, आप पहले ही चेत जाओ।

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