धर्म-कर्म: समाज को सही दिशा देने वाले, टूटते सामाजिक पारिवारिक व्यवाहारिक ताने-बाने को फिर से बुनने में लगे, जन चेतना लाने वाले, जिनके सतसंग से बड़े बड़े अपराधी भी बदल जाते हैं, ऐसे इस समय के भारत के महान समाज सुधारक, उपदेशक, वक़्त गुरु दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने बताया कि धर्म परायण भारत में ही अवतारी शक्तियों, सन्त महात्माओं का प्रादुर्भाव हुआ है। यहीं से ही धर्म की बेल पूरे विश्व में फैली है। यह अध्यात्म का अधिष्ठाता कहा जाता है। बहुत से महापुरुष यहां पर आए। कबीर साहब प्रथम सन्त हुए। इस धरती के दुसरे सन्त नानक देव जी महाराज हुए जिनकी जयंती मनाई जा रही, जिन्होंने सिक्ख धर्म स्थापित किया, गुरु और शिष्य का रिश्ता बताया, जिन्होंने नाम के बारे में बताया, जिन्होंने लोगों की बुरी आदतों को छुड़ाया। इनके बाद भी सन्तों की श्रृंखला रही है। कुछ समय पहले इस धरती पर गुरु महाराज बाबा जयगुरुदेव जी थे, जो अब निज धाम चले गए। तो भारत बराबर सन्त महात्माओं की भूमि रही है।

सन्तों की शिक्षा, समाज की जरूरत:-

सन्तों ने मौसम, दिन-रात, पेड़-पौधे, जानवरों की, मनुष्य और मनुष्य शरीर की, आत्मा-परमात्मा की, देवी-देवताओं की जानकारी कराई। लोग उनके पास समय-समय पर जाते रहते थे। गृहस्थ आश्रम में किस तरह रहना है, किस तरह का कर्तव्य करना है जिससे शरीर स्वस्थ रहे, रोग और लड़ाई-झगड़ा से दूर रहो, वैमनस्यता न हो, कुदरत प्रकृति से बरकत लेना है, कुदरत से समय पर जाड़ा गर्मी बरसात अगर लेना है तो उसके नियम का पालन करो, इन चीजों को बताने-समझने के लिए सन्त लोगों को बुलाया करते थे।

सतसंग से बदलाव आ जाता है, लाना जरुरी भी है:- 

पहले जगह-जगह पर इकट्ठा होकर के लोग सन्तों को बुला कर के उपदेश करवाते थे। राजा-महाराजा लोग भी जगह-जगह पर इस तरह के कार्यक्रम करवाते रहते थे कि जनता खुशहाल रहे। पुणे की यरवदा जेल में वहां के बड़े अधिकारी ने हमको बुलाया, वहां जेल में कार्यक्रम करवाया। किसलिए? कि यह जो अपराध करके आए हैं, जिनका दिल-दिमाग अपराधी हो गया है, उनमें बदलाव आ जाए। वहां मैंने सतसंग कार्यक्रम किया और नामदान भी दिया। एक आदमी बाद में मिला, उसने कहा, मैंने आपका सतसंग वहां (जेल में) सुना था। वह कहीं जा रहा था और अपने लोग प्रचार कर रहे थे की बाबा उमाकान्त जी महाराज का सतसंग व नामदान कार्यक्रम है। जब उसने फोटो देखा तब पहुंच करके सतसंग सुना। तो आप इस बात को समझो, (लोगों में) बदलाव आ जाता है, बदलाव लाना जरूरी है।

सतसंग जल से अंतरात्मा की मैल साफ होती है:- 

बाबाजी ने बताया कि आजकल लोगों का दिल-दिमाग खुराफाती, अपराधी हो रहा है इसलिए यह उपदेश जगह-जगह होना चाहिए। उन्होंने सन्तों का उदाहरण देकर के बताया कि तीज-त्योहारों पर ज्यादातर लोग महात्माओं के पास, तीर्थों पर जाते थे। आज कार्तिक पूर्णिमा है। जगह-जगह मेला लगा हुआ होगा। बहुत लोग स्नान करने जाते थे। शरीर की धुलाई तो करते ही थे लेकिन सतसंग जब सुनते थे तो मन चित बुद्धि की भी धुलाई हो जाती था। सतसंग जल जो कोई पावे। मैलाई सब कट कट जावे।। लेकिन अब वह चीजें नहीं मिल पाती हैं। और इतना अब संभव भी नहीं है क्योंकि इस तरह का उपदेश, सन्तमत का प्रचार, उपदेश करने वाले लोग कम है। लेकिन आप प्रेमी जगह-जगह पूर्णिमा त्रयोदशी का कार्यक्रम करते हो, यह बहुत अच्छा है, बराबर यह होता रहना चाहिए।

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