धर्म कर्म; परम सन्त, वक़्त गुरु दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि गुरु महाराज कहते थे कि मैं सेवक हूं, न कि देवी-देवता भगवान हूं। तो सेवक का बेटा और क्या होगा? सेवक ही तो होगा। ऐसे ही हम जिस सेवक के बेटे, उनके पुत्र हैं। एक तरह से उन्होंने अपना काम हमको दिया है। गुरु बहुत तरह के बताये गए लेकिन जब सातवां शब्द भेदी गुरु मिल जाए, उसी को पकड़ लेना चाहिए, उसी का अनुकरण करना चाहिए।
मर्ज पुराना हो तो लम्बे समय तक दवा खानी पड़ती है
हमारे सामने कोई बात आती है, हम मंच से सब बता देते हैं। एक-एक आदमी को कहां तक बातवे? इसलिए सबको बता देते हैं कि कम खाओ, गम खाओ। कोई जबरदस्ती पैर में लिपटे तो थोड़ा बचा करके चले जाओ। पड़ा है तो पड़ा रहने दो उसके, उसनके पीछे न पड़ो। और संयम-नियम बताता हूं। क्रोध आजकल बहुत बढ़ रहा है। एक को गुस्सा आवे, दूसरा चुप हो जावे तो लड़ाई नहीं होगी। कोई भी हमसे पूछता है, हमारे समझ में आता है, हम बता देते हैं। लेकिन कुछ लोग, ज्यादातर बच्चियां रटती रहती हैं, वही बात बार-बार कहती रहती हैं। आप यह नहीं सोचते हो कि मर्ज पुराना है। दवा हमको मिल गई है। जब हम दवा को कुछ दिन तक खाएंगे तब हमारा मर्ज तकलीफ जाएगी। आप तो सोचते हो तुरंत ऐसा इंजेक्शन मिल जाए कि तुरंत दर्द ठीक हो जाए। लेकिन वही दर्द फिर उभर करके आ जाता है। लेकिन अगर मर्ज जड़ से खत्म हो जाए तो फिर दर्द नहीं होता है। दवा तो वह बताई जाती है जो हमेशा के लिए फायदेमंद हो। आप जब यहां पर आते हो, और कह करके चले जाते हो, दया हो जाए-2, वह तो इंजेक्शन जैसा होता है। लगाए, थोड़ी देर (आराम), फिर दर्द चालू हो गया। ऐसे ही फिर आपके विश्वास में कमी आ जाती है। और कहते हो कि गए थे, फायदा हुआ था, फिर वैसे हो गए। तो जो बताया जाए उसको करो। करोगे तब तो फायदा होगा। दुनिया की भी तकलीफ जाएगी। सौ मर्ज की एक दवाई जो बता दिया गया, उसको करोगे तो दुनिया की तकलीफ भी जाएगी। कहते हैं- न सौ दवाई, एक परहेज। जब इसको करोगे तो बहुत से मर्ज तकलीफें इसी से ठीक हो जाती हैं।
जल्दी-जल्दी दर्श-पर्श करने आ जाया करो
(सतसंग कार्यक्रम संपन्न होने के बाद अब) जाओ, हमारी शुभकामना सबके साथ लेकिन आते-जाते रहोगे, दर्श-पर्श होता रहेगा तो उससे भी गुरु महाराज की दया मिलती रहे इसलिए आना-जाना मत छोड़ा करो। आते-जाते रहो। जितना जल्दी हो उतना मिला-जुला जाता है। जब किसी को गुरु मान लिया जाता है तब, हम कोई अपनी बात कहते हैं? कहा-सुनी की बात नहीं, सब लिखा-पढी, देखा-देखी की बात है। सुरत समाई शब्द में मगन रही दिन रात।। यह सत्य बात है। कहा गया है गुरु का दर्शन हो सके तो रोज करो। न हो पावे तो दूसरे-तीसरे दिन करो। हफ्ते में एक बार। 15 दिन में करो। न हो पावे तो एक महीने में करो। 3 महीना में। 6 महीने में करो। 1 साल का समय (तो) उस समय देते थे जब सवारी का साधन नहीं था। तब तो दो-दो तीन-तीन महीना पैदल चलकर के गुरु के आश्रम पर जाते थे। गुरु लोग भी नहीं जा पाते थे। उनके पास साधन नहीं रहता था। पैदल चलते थे। तो सब जगह कैसे पहुंच पाते? जब वो एक जगह रुक जाते थे तब वहां पर खबर देकर लोगों को बुलाया जाता था और जाते थे तो बहुत समय लग जाता था। अब तो हिंदुस्तान के किसी कोने से दूसरे कोने तक चले जाओ, ढाई-तीन घंटा हवाई जहाज में लगता है। आदमी आवे और आकर के फिर चला जाए। तो बराबर दर्श-पर्श होते रहना चाहिए, करते रहना चाहिए। दर्श-पर्श के लाभ से, कटे पाप अपराध। यह पाप और अपराध सब क्षीण होते हैं। हम तो आपको बराबर याद करेंगे ही, याद रखेंगे ही, आप भी याद रखना। चाहे आप नए हो या पुराने हो, (हमारे लिए अपने) दिल में थोड़ा प्रेम की जगह बनाना। हम तो अपने गुरु के आदेश के पालन में पक्के हैं। हमको कोई दुश्मन माने, हमारा कोई नुकसान करे, हम तो उसकी मदद, जो हो सकेगी, करेंगे ही करेंगे। क्योंकि हमको गुरु का वाक्य याद है कि यह सबकी पुरानों की संभाल करेंगे और नयों को नाम दान देंगे। दोनों बात हमको याद है।
सभी जयगुरुदेव को मानने वालों से प्रार्थना
जितने भी जयगुरुदेव बोलने वाले दुनिया में हैं, जितने भी गुरु महाराज से थोड़ा भी प्रेम रखते हैं, गुरु महाराज के नाम के साथ किसी का कोई स्वार्थ जुड़ा है, आप लोगों से हमारी प्रार्थना है कि आप हमारे गुरु महाराज के काम में बाधा मत डालिएगा। यह जो गुरु महाराज का काम चल रहा है, गुरु महाराज का नाम-काम बढ़ाने में जो काम हो रहा है, जो जीवों के कल्याण का काम हो रहा है, उस काम में आप लोग बाधा मत डालिएगा। यही सबसे बड़ा आप लोगों का सहयोग होगा।