UP: उत्तर प्रदेश के रायबरेली जिले की जीवनरेखा मानी जाने वाली आईटीआई (इंडियन टेलीफोन इंडस्ट्रीज) आज अस्तित्व के संकट से जूझ रही है। बुधवार को लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी द्वारा उठाए गए सवालों से इस उद्योग की वास्तविक स्थिति सामने आई। केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री ने उनके सवालों के जवाब में आईटीआई के हालात पर प्रकाश डाला।

सदन में जानकारी दी गई कि हर साल हजारों करोड़ रुपए का कारोबार करने वाली इंडियन टेलीफोन इंडस्ट्रीज की रायबरेली इकाई इस वित्तीय वर्ष में केवल 20 करोड़ रुपए का ही व्यापार कर पाई है। 51 वर्ष पहले सार्वजनिक क्षेत्र में स्थापित इस फैक्ट्री में अब केवल तीन प्रतिशत स्थाई कर्मचारी बचे हैं। फैक्ट्री को केंद्र सरकार से न तो पर्याप्त ऑर्डर मिल रहे हैं और न ही पुनरुद्धार पैकेज। 300 करोड़ रुपए की वित्तीय सहायता का इंतजार अभी भी जारी है। कभी इस फैक्ट्री में 7000 स्थाई कर्मचारी कार्यरत थे, लेकिन वर्तमान में यह संख्या घटकर मात्र 322 रह गई है। केंद्रीय मंत्री ने बताया कि इनमें 173 स्थाई कर्मचारी, 68 संविदा कर्मचारी और 83 अनौपचारिक कर्मचारी हैं।

कर्मचारियों के वेतन के उपाय:-
राहुल गांधी ने लोकसभा में यह सवाल भी उठाया कि आईटीआई के कर्मचारियों को समय पर वेतन देने के लिए क्या कदम उठाए गए हैं। केंद्रीय मंत्री ने बताया कि कर्मचारियों को वेतन देने के लिए अब तक 4456 करोड़ रुपए की वित्तीय सहायता को मंजूरी दी गई है, जिसमें से 4157 करोड़ रुपए पहले ही वितरित किए जा चुके हैं। इस राशि का बड़ा हिस्सा बकाया और वेतन में खर्च हुआ है। हालांकि, 300 करोड़ रुपए की वित्तीय सहायता अभी भी अटकी हुई है। मंत्री ने स्पष्ट किया कि इस सहायता राशि को वर्तमान स्थिति में जारी करना संभव नहीं है। रायबरेली की इस इकाई के अस्तित्व को बचाने के लिए प्रभावी कदम उठाने की आवश्यकता है, ताकि यह उद्योग फिर से अपने पुराने स्वरूप में लौट सके।

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