UP: उत्तर प्रदेश माध्यमिक तदर्थ शिक्षक संघर्ष समिति का याचना कार्यक्रम आज 21वें दिन भी जारी है। अत्यधिक ठंड और कठोर मौसम के बावजूद, सरकार और प्रशासन ने इस मुद्दे पर ध्यान नहीं दिया है। शिक्षकों की समस्याओं को लेकर न सरकार में संवेदनशीलता दिख रही है और न ही कोई सकारात्मक कदम उठाया गया है।
न्यायालय के आदेश की अनदेखी:
इलाहाबाद उच्च न्यायालय और लखनऊ खंडपीठ ने लगभग 300 याचिकाओं पर आदेश दिया है कि तदर्थ शिक्षकों को तब तक वेतन दिया जाए जब तक उनके पदों पर नियमित अभ्यर्थी न आ जाएं। सुप्रीम कोर्ट के आदेश 8300/2016 का उल्लेख करते हुए यह स्पष्ट किया गया है कि इन शिक्षकों को सेवा से हटाया नहीं गया है। इसके बावजूद, सरकार और प्रशासन कोर्ट के आदेशों की अवहेलना कर रहे हैं।
संघर्ष समिति की मांगें:
संघर्ष समिति के संयोजक राजमणि सिंह ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने शिक्षकों को सेवा से बाहर करने का कोई आदेश नहीं दिया है। उच्च न्यायालय के फैसलों ने इस बात की पुष्टि कर दी है। उन्होंने सरकार से अपील की है कि शिक्षकों के वेतन का तुरंत भुगतान किया जाए।
प्रदेश महामंत्री प्रभात त्रिपाठी ने सरकार की हठधर्मिता पर सवाल उठाते हुए कहा कि जब अदालतों ने वेतन देने के आदेश जारी कर दिए हैं, तो सरकार को इसका पालन करना चाहिए। प्रदेश उपाध्यक्ष प्रेम शंकर मिश्रा ने मुख्यमंत्री से अपील की कि वे शिक्षकों की स्थिति पर विचार करें और उनके परिवारों के कल्याण के लिए उचित कदम उठाएं। तदर्थ शिक्षकों का कहना है कि वेतन न मिलने के कारण उनके परिवार आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं। बच्चों की पढ़ाई, बुजुर्ग माता-पिता की दवाइयां और परिवार का पालन-पोषण करना मुश्किल हो गया है।
सरकार को गुमराह करने के आरोप:
प्रदेश कोषाध्यक्ष राजेश पांडे ने आरोप लगाया कि अधिकारी मुख्यमंत्री को यह कहकर गुमराह कर रहे हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने शिक्षकों को सेवा से बाहर कर दिया है। लेकिन उच्च न्यायालय के आदेशों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि शिक्षकों को वेतन दिया जाना चाहिए। संघर्ष समिति के शिक्षक लगातार निदेशालय पर याचना कर रहे हैं। उनकी मांग है कि सरकार जल्द से जल्द पहल करे और तदर्थ शिक्षकों को उनका वेतन प्रदान करे।