लखनऊ। सुरेखा सीकरी ने उस दौर में अदाकारी शुरू की जब लड़कियां कम ही बाहर निकलती थी। अंग्रेजों के जमाने में पैदा हुईं सुरेखा सीकरी ने अपने सामने एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री का अब तक का हर दौर देखा था। 1968 में नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में पढ़ने वाली सुरेखा की आंखें बेहद खूबसूरत थीं। अपनी इन्हीं आंखों से कभी प्रेम, कभी उल्लास तो कभी खौफ पैदा कर दर्शकों का भरपूर मनोरंजन करती थीं।
सुरेखा सीकरी उन एक्ट्रेस में से हैं जिन्होंने श्याम बेनेगल के साथ फिल्म ‘मम्मो’ में काम किया तो फिल्म ‘बधाई हो’ के डायरेक्टर अमित शर्मा और ‘घोस्ट स्टोरीज’ में अनुराग कश्यप के साथ भी काम किया। सुरेखा के सामने ही ब्लैक एंड व्हाइट से कलर सिनेमा का जमाना आया। 1978 में ‘किस्सा कुर्सी का’ से एक्टिंग का सफर शुरू करने वाली सुरेखा के हिस्से जो भी भूमिका आई उसे जीवंत कर दिया।
अगर कहा जाए कि सुरेखा सीकरी सिनेमा आंदोलन का हिस्सा रहीं हैं तो गलत नहीं होगा। ‘सरदारी बेगम’ , ‘जुबैदा’ और ‘सलीम लंगड़े पे मत रो’ जैसी फिल्मों में अपना दमखम दिखाया तो दूरदर्शन के शुरुआती दौर में बने धारावाहिक में भी उसी धमक के साथ उपस्थिति दर्ज करवाई थी। पंजाब जब आतंकवाद की जकड़ में था तो प्रसिद्ध लेखक बलवंत गार्गी ने पंजाब की समस्या पर ‘सांझा चूल्हा’ को लिखा और निर्देशित किया था। दूरदर्शन के प्रसिद्ध धारावाहिक ‘सांझा चूल्हा’ में दिखाया गया था कि पंजाब की महिलाएं किस तरह एक जगह इकट्ठा होकर रोटी पकाती हैं। इस धारावाहिक के बहाने पंजाब की सामाजिक-आर्थिक समस्या को बखूबी उकेरा गया था। इस धारावाहिक में कई दिग्गज कलाकारों को लिया गया था, उसमें से एक सुरेखा सीकरी भी थीं। सुरेखा ‘बनेगी अपनी बात‘ टीवी शो में बड़ी होती बेटियों की मां की सराहनीय भूमिका निभाई थी। इसके अलावा ‘सीआईडी’, ‘परदेश में है मेरा दिल’, ‘बालिका वधू’ जैसे करीब 16 टीवी शोज में काम किया था।
सुरेखा सीकरी टेलीविजन हो बॉलीवुड या थियेटर हर जगह मौजूद रही थीं। हालांकि बाद में टीवी-फिल्मों में ज्यादा बिजी हो गईं थीं तो थियेटर के लिए कम ही वक्त निकाल पाती थीं। उन्होंने अंतोन चेखोव की ‘द चेरी आर्किड’ और जॉन ऑसबोर्न की ‘लुक बैक इन एंगर’ जैसे प्ले में थियेटर पर इतनी शानदार अदाकारी दिखाई कि उन्हें 1989 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।https://gknewslive.com