चिकित्सा तंत्र जहां कोविड महामारी से जूझ रहा है, ठीक इसी दौरान जारी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि बढ़ती गर्मी भी स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा पैदा कर चुकी है। लेकिन स्वास्थ्य तंत्र इस खतरे से निपटने के लिए तैयार नहीं है। राष्ट्र ग्लोबल वार्मिग को ध्यान में रख स्वास्थ्य योजनाएं तैयार करने में असफल रहे हैं। लांसेट काउंटडाउन रिपोर्ट 2020 के अनुसार, बढ़ती गर्मी के कारण दुनिया में मौते बढ़ रही हैं। तपिश से लोगों का स्वास्थ्य बिगड़ रहा है तथा करोड़ों की रोजी-रोटी के लिए भी खतरा पैदा हो गया है।
गर्मी के कारण अधिक उम्र के लोगों की मौत की घटनाओं में 54 फीसदी तक का इजाफा हुआ है। 2019 में गर्मी से 65 साल से ज्यादा उम्र के लोगों को 2.9 अरब दिन गर्म हवाओं के थपेड़ों का सामना करना पड़ा है। यह आंकड़ा पूर्व के आंकड़ों के तकरीबन दोगुना है। वर्ष 2018 में गर्मी के कारण दुनिया भर में 296000 लोगों की मौत हुई। बढ़ती तपिश के कारण कई देशों में लोगों के लिए बाहर काम करना मुश्किल हो गया है। इससे उत्पादकता प्रभावित हो रही है। करीब 302 अरब घंटों का नुकसान हुआ है जिसमें से 40 फीसदी की क्षति भारत में हुई है।
केवल 50 फीसदी धनी देशों ने ही स्वास्थ्य संबंधी जलवायु योजनाएं तैयार कीं
रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में अब तक केवल 50 फीसदी धनी देशों ने ही स्वास्थ्य संबंधी जलवायु योजनाएं तैयार की हैं लेकिन इनमें से सिर्फ चार देशों ने ही बताया है कि उनके पास पर्याप्त धनराशि इस कार्य के लिए उपलब्ध है। लांसेट के एडिटर इन चीफ डॉक्टर रिचर्ड हॉर्टन ने कहा ‘‘अगर हम भविष्य में महामारियों का खतरा कम करना चाहते हैं तो हमें जलवायु परिवर्तन संबंधी संकट पर प्राथमिकता से काम करना होगा। क्योंकि दोनों समस्याएं आपस में जुड़ी हैं।
जलवायु परिवर्तन के कारण घातक बीमारियों के लिए महौल अनुकूल
कोरोना के मौजूदा संकट के बीच यदि दुनिया तापमान बढ़ोत्तरी को पेरिस समझौते के अनुरूप दो डिग्री से नीचे रखने के उपायों को करती है और इसमें सफलता मिलती है तो फिर महामारियों के खतरे को भी कम करेगा। वर्ना मौजूदा स्थितियां महामारी को बढ़ाने वाली हैं। जलवायु परिवर्तन के कारण डेंगू बुखार मलेरिया और विब्रियो जैसी घातक संक्रामक बीमारियों के फैलने के लिए ज्यादा माकूल स्थितियां बन रही हैं। इससे इन बीमारियों से निपटने की दिशा में कई दशकों तक हासिल की गई तरक्की पर भी खतरा बढ़ रहा है। लांसेट काउंटडाउन के अध्यक्ष और इंटेंसिव केयर डॉक्टर प्रोफेसर ह्यू मोंटगोमरी के अनुसार जलवायु परिवर्तन एक क्रूर स्थिति की तरफ ले जा रहा है, जिससे देशों के बीच और उनके अंदर स्वास्थ्य संबंधी मौजूदा असमानताएं और गहरी हो जाएंगी।