लखनऊ। उत्तर प्रदेश में समय-समय पर दबी जुबान पुलिसकर्मी अपनी मांगों को उठाते रहते हैं। वीक ऑफ, बॉर्डर स्कीम को हटाने औ ग्रेड पे बढ़ाने जैसी पुलिसकर्मियों की प्रमुख मांगें हैं। पुलिसकर्मियों का कहना है कि हमारी ड्यूटी का कोई निर्धारित समय नहीं है। वह प्रतिदिन 14 घंटे काम करते हैं, वीक ऑफ जैसी व्यवस्था भी हमारे लिए नहीं है। सैलरी चपरासी से भी कम और काम का बोझ सबसे ज्यादा हम पर ही है। IPS की तरह गृह जनपद में हमारी तैनाती नहीं हो सकती। आंदोलन हम कर नहीं सकते, सीनियर अफसर सुनते नहीं, ऐसे में हम जाएं तो कहां जाएं। राज्य सरकार और मुख्यमंत्री से निवेदन ही कर सकते हैं कि वह हमारी इन बुनियादी जरूरतों पर भी ध्यान दें। ये दर्द सूबे की राजधानी लखनऊ में तैनात एक कांस्टेबल का है। ये पीड़ा सिर्फ एक कांस्टेबल की नहीं बल्कि सूबे के पुलिस महकमे के सभी पुलिसकर्मियों की है। उत्तर प्रदेश के पुलिसकर्मियों ने साथियों की समस्याओं को लेकर आवाज बुलंद की है।

पुलिसकर्मियों ने विवादित ‘बॉर्डर स्कीम’ हटाने, सिपाहियों के लिए ‘2800 ग्रेड पे’, ड्यूटी के फिक्स घंटे और ‘वीक ऑफ’ जैसी मांगों को लेकर उत्तर प्रदेश के नए DGP मुकुल गोयल को पत्र लिखकर गुहार लगाने का मन बनाया है। सिपाहियों का कहना है कि कम से कम इन बेसिक चीजों को सिपाहियों के लिए लागू किया जाए, जिससे वे भी मन लगाकर काम कर सकें और परिवार के साथ भी समय बिता सकें।

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बात दें कि विवादित ‘बॉर्डर स्कीम’ नॉन-गजेटेड कर्मचारियों के लिए किसी बुरे सपने से कम नहीं है। साल 2010 में मायावती सरकार ने इसे लागू किया था, जिसके तहत किसी कॉन्स्टेबल, हेड कॉन्स्टेबल, दारोगा या इंस्पेक्टर को अपने गृह जनपद और उसकी सीमा से सटे किसी जिले में तैनाती नहीं मिल सकती है। साधारण शब्दों में कहें तो तैनाती वाले जिले और गृह जनपद के बीच एक जिला होना चाहिए। मार्च 2012 में अखिलेश यादव ने मुख्यमंत्री बनते ही इसे हटा दिया था। इससे पुलिसकर्मियों के चेहरे खिल उठे। कुछ महीनों के अंदर ही डिपार्टमेंट में सिपाहियों के खूब ट्रांसफर हुए। हालांकि यह राहत ज्यादा दिन नहीं रही और 2014 में अखिलेश सरकार ने बॉर्डर स्कीम को फिर से लागू कर दिया। इसके बाद से ही समय-समय पर पुलिसकर्मी इस स्कीम के खिलाफ दबी आवाज में विरोध करते रहते हैं, लेकिन खुलकर नहीं बोलते। कहा जाता है कि सिपाहियों की आत्महत्या जैसी घटनाओं में भी इस बॉर्डर स्कीम का ही हाथ है। इसीलिए महकमे में इसे ‘हत्यारी बॉर्डर स्कीम’ भी बोलते हैं।https://gknewslive.com

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