अशोक भाटिया- भारत में हर एक त्योहार हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है और जब दिवाली की बात आती है तो कुछ अलग ही महौल बन जाता है। क्योंकि दिवाली का त्योहार भारत देश में सबसे ज्यादा धूम-धाम के साथ मानाया जाता है। दिवाली के त्योहार को खुशियों का त्योहार के नाम से बुलाया जाता है। तो इस त्योहार को धूम-धाम से मनाना लाज़मी है। लेकिन पिछले कुछ सालों से लग रहा है कि दिवाली का त्योहार सिर्फ पटाखों का त्योहार बनकर रह गया है। और पटाखे बिना दिवाली मनाने की कोई नहीं सोचता क्योंकि अब दिवाली का महत्तव और उसकी परिभाषा ही बदल गई है। दिवाली का असली मतलब जैसे लोग भूल ही गए हैं। लगता है पटाखे बिना दिवाली लोग मना ही नहीं सकते हैं। साथ ही पटाखों से होने वाले नुकसान को भी भूल गए हैं। दिवाली शांति और खुशियों के साथ मनाई जाती है। घरों को सजाने से लेकर स्वादिष्ट खाना बनाने में दिवाली का असली मजा है। न की पटाखों से प्रदूषण करके दिवाली का मजा खराब करके।

इस वर्ष कोरोना और प्रदूषण के कारण कई प्रदेशों में दीपावली पर पटाखे व आतिशबाजी पर प्रतिबन्ध लगा कर दीपावली महोत्सव को पटाखा रहित करने का इन्तजाम बांधा है इसका स्वागत इसलिए किया जाना चाहिए कि दीपावली मूलतः प्रकाश उत्सव है जिसमें पर्यावरण को साफ-सुथरा रखने का भाव भी इस प्रकार अन्तर्निहित है कि सरसों आदि तेल के दीये जला कर वातावरण को शुद्ध रखने का प्रयास रहता है।हिन्दू मान्यताओं के अनुसार यह भगवान राम के लंका विजय के बाद अयोध्या की राजगद्दी संभालने का पर्व है परन्तु इसमें लक्ष्मी पूजन का विधान है। भगवान विष्णु की प्रियतमा मां लक्ष्मी धन की देवी समझी जाती हैं। अतः लोग उनकी आराधना व पूजा-अर्चना करते हैं, परन्तु मूलतः यह गृहलक्ष्मी के गुणों का पूजन है।

हिन्दू परिवारों में घर की बहू या पत्नी को गृहलक्ष्मी कहा जाता है। दीपावली पर पूजन के समय समस्त उत्तर भारत में एक कहानी के माध्यम से उस गृहलक्ष्मी का बखान किया जाता है जो अपने आचार-व्यवहार से गरीबी में गुजर-बसर कर रहे अपनी ससुराल के परिवार को अपनी बुद्धि व चातुर्य से बाहर निकाल कर परिवार के प्रत्येक व्यक्ति के लिए कोई न कोई कार्य करना आवश्यक बना देती है। कर्म को धर्म बना कर उसका परिवार गरीबी से बाहर निकलता है जिसमें उसका भाग्य भी साथ देता है। यह सब परिवार की बहू द्वारा बनाये गये नियमों से ही संभव हो पाता है। अतः वह गृह लक्ष्मी कहलाती है, परन्तु आधुनिक युग में हिन्दू त्यौहारों का जिस तरह स्वरूप उभर रहा है उससे नई पीढ़ी के पास इन त्यौहारों के पीछे छिपे हुए सन्देश नहीं पहुंच पा रहे हैं और इन्हें मनाने के नये संस्करण विकसित हो रहे हैं। दीपावली पर पटाखेबाजी भी इनमें से एक हैं। वास्तव मे आतिशबाजी का प्रयोग सबसे पहले पंजाब में शुरू हुआ था क्योंकि भारत का यह राज्य विदेशी आक्रमणकारियों का प्रमुख रास्ता था। आक्रमण होने या एसा खतरा होने की सूरत में उस समय आकाश में रोशनी करके लोगों को हमले के प्रति सचेत किया जाता था और उन्हें एकत्र होने का संकेत दिया जाता था.. बाद में एक राजा द्वार दूसरे पर विजय प्राप्त करने पर आतिशबाजी होने लगी। इस तरह धीरे-धीरे आतिशबाजी का प्रचलन त्यौहारों पर बढ़ने लगा और भारत समेत पूरे विश्व मे यह संस्कृति पनपती गई। दीपावली चूंकि प्रकाश उत्सव होता है अतः इस पर्व पर आतिशबाजी को सबसे ज्यादा बढ़ावा मिला। परन्तु 21वीं सदी में जब पूरी दुनिया पर्यावरण की समस्या से जूझ रही है और वैज्ञानिक अन्वेषों ने सामान्य मनुष्य का जीवन अधिकाधिक सरल व सुखमय बनाने की गरज से वातावरण को इसके उपजे हुए कचरे से भरना शुरू कर दिया है तो दुनिया ही इससे राहत पाने के उपायों पर एकजुट होकर आगे बढ़ना चाहती है।

पेरिस पर्यावरण समझौता इसी वजह से हुआ है। मगर ये वृहद सवाल है, किसी भी देश में आम आदमी के लिए शुद्ध हवा में सांस लेना उसके स्वास्थ्य के लिए जरूरी होता है और दुर्भाग्य से भारत ऐसा देश है जिसके अधिसंख्य बड़े शहरों की हवा सांस लेने के नाकाबिल होती जा रही है। इसके बहुत से कारण हो सकते हैं जिनमें औद्योगिक धुएं से लेकर मोटर वाहनों का धुआं भी शामिल है और वातावरण में जहरीली गैसों का बढ़ता स्तर भी शामिल है। मगर इस स्तर को और ज्यादा बढ़ाने की इजाजत किसी त्यौहार के बहाने भी कैसे दी जा सकती है। इसी वजह से एनजीटी ने इस बार राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में पटाखेबाजी पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगाया है। पूर्व में यह मामला अदालतों तक में जा चुका है परन्तु कुछ घंटों के लिए आतिशबाजी की इजाजत देने का परिणाम भी वही निकला जो लगातार आतिशबाजी करने से निकलता। लोग जहाँ प्रतिबन्ध लगा है वहां ‘इको फ्रेडली’ दीपावली मना सके लेकिन इससे त्यौहारों के मूल सन्देश से जुड़ने का अवसर भी मिलता है। नई पीढ़ी को उस ओर भी ध्यान देना चाहिए, और गौर करना चाहिए कि गृह लक्ष्मी ही घर में लक्ष्मी का प्रवेश कैसे खोलती है। भारत की संयुक्त परिवार परंपरा का उज्ज्वल पक्ष भी दीपावली प्रस्तुत करती है।

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