जीवन शैली : लोग कहते हैं कि बच्चे भगवान का रूप होते हैं पर मेरा मानना है कि बच्चे केवल भगवान का रूप नहीं हमारे समाज का दर्पण भी हैं बच्चे वही सीखते हैं वही करते हैं जो समाज के लोगों द्वारा किया जा रहा होता है उन्हें इससे कोई मतलब नहीं होता कि वह सारी बातें सही है या गलत यदि बच्चे कोई गलती करते हैं तो समाज को दोष देने समाज को दंड देने के बजाय हम बच्चों को दंड क्यों देते हैं। मैं यह बात इसलिए कर रही हूं क्योंकि आज इसकी आवश्यकता है। आज हमारे समाज 10 साल 12 साल 16 साल 18 साल के नाबालिक लड़के रेप जैसी वार दात को अंजाम दे रहे हैं जिन्हें शायद रेप का असल मतलब भी नहीं पता है । इसका मतलब उसने कहीं ना कहीं अपने समाज में अपने आसपास ऐसा होते हुए देखा है और उसे लगा कि मैं भी यह कर सकता हूं, इसमें कोई बड़ी बात तो नहीं। हम सभी जानते हैं कि हमारे समाज में हमेशा से लड़कों को सिखाया गया है कि उन से बढ़कर कुछ भी नहीं, और औरत तो उनके सामने कुछ है ही नहीं। वह जो चाहे एक औरत के साथ एक लड़की के साथ कर सकते हैं। शायद इसी का परिणाम है कि आज छोटे- छोटे बच्चे इस तरह की अपराध को अंजाम देने से पहले एक बार भी नहीं सोंचते हैं। पर इसके लिए मैं उस बच्चे को दोषी नहीं मानती यदि इसके लिए कोई दोषी है तो वो है हमारा समाज और समाज के साथ-साथ वो लोगों जो ऐसे घिनौने अपराध से जुड़े व्यक्तियों को सजा देने में एक लंबा समय लगा देते हैं। समाज में हो रही ऐसी घटनाओं का जिम्मेदार कहीं ना कहीं हमारा ज्यूडिशरी सिस्टम भी है।
लेखिका – कीर्ति गुप्ता