लखनऊ: जब सब उसी के जीव हो, आप गुरु के बंदे हो तो आप से क्या सौतेला व्यवहार करेंगे? आप से भी प्रेम करेंगे, दया देंगे। सबको दया दे रहे हैं। सुबह और शाम नाम ध्वनि चालू करा दो। जिन्होंने विश्वास के साथ चालू करा दिया उनको बहुत फायदा हुआ। उनके बच्चे बिगड़ रहे थे, वह भी सुधरे। घर में से बीमारियां निकली, लड़ाई-झगड़ा कम, खत्म हो गया। विश्वास तो करो। एक कान से सुनोगे, दूसरे कान से निकाल दोगे तो कहां से प्रैक्टिकल हो पाएगा?

जिन लोगों को नामदान मिल गया, करोगे तो होगा प्रभु का दर्शन

अब करते नहीं हो, करते हो तो छोड़ देते हो। क्योंकि मन आपको धोखा देता है। मन इस शरीर का हो गया राजा। मन किधर जाता है? खाने, सोने, मौज मस्ती, घूमने, धन कमाने, मान प्रतिष्ठा, इज्जत दिलाने आदि की तरफ। इन कामों में अगर लगोगे तो कर्म इकट्ठा होते जाएंगे। अच्छे कर्म कम और बुरे कर्म ज्यादा बन जाएंगे। इसलिए उन कर्मों को भी काटना जरूरी होता है क्योंकि बिजनेस व्यापार, नौकरी करते हो, बुरे कर्म करने वालों के बीच में रहते हो तो वह तो कर्म आना ही आना है। उसके लिए सेवा का विधान, नाम की कमाई, सुमिरन, ध्यान, भजन का नियम बनाया गया। बराबर झाड़ू लगाते रहो। सुमिरन, ध्यान, भजन एक तरह से कर्मों को साफ करने का झाड़ू है।

पाप शरीर के अंगों से बनता है, इसलिये इन्ही से सेवा करवा कर पाप कटवा दिया जाता है

देखो पाप किससे बनता है ? हाथ, आंख, मुंह, बोलने, शरीर से कर्म करने से बनता है। तो शरीर से पाप होता है। जब शरीर सेवा में लगता है तो हर अंगों का इस्तेमाल हो जाता है तो इससे कर्म कटते हैं। इसलिए सेवा भाव रखना चाहिए। सेवा जैसी भी हो, करना चाहिए। छोटे बन करके करना चाहिए। बड़ा बन करके सेवा कोई नहीं कर सकता। पहले से झुके रहो बजाय दबाव में झुकने के। कहते हैं-

दु:ख में सुमिरन सब करै, सुख में करै न कोय।
जो सुख में सुमरिन करै, तो दु:ख काहे को होय।।

इस चीज को याद रखो। गुरु महाराज पूरे सन्त थे, आज भी नए, पुराने सबके लिए मददगार हैं। जब गुरु से बराबर प्रेम बनाए रखोगे, याद करते रहोगे तो ऊपर से देखते हैं तो दया करते हैं। गुरु महाराज जब (शरीर से) मौजूद थे तो कोई कहीं भी बोलता था, मदद होती थी। आज भी होगी, विश्वास करो।

मरने वाले के कान में प्रेमी ने जयगुरुदेव बोला तो बताया बाबा जयगुरुदेव जी आ गए, यमराज के दूत जो मार रहे थे हट गए. मरने वाले के कान में मौत के समय जब जयगुरुदेव बोला तो मौत के समय पीड़ा कम हुई। अगर (गुरु महाराज को पहले) देखा था तो बोला बाबा जी आ गए। नहीं देखा तो बोला सफेद दाढ़ी, सफेद कपड़ा पहने हुए महात्मा फ़क़ीर आ गए। यमराज के दूत मार रहे थे, कूट रहे थे, हट गए बाबा आ गए। यह विद्या है दुनिया की विद्या से अलग है। दुनिया की सारी विद्या जहां से खत्म होती है वहां से अध्यात्म विद्या की शुरुआत होती है। इसको जब आप समझ जाओगे तो सब समझ में आ जाएगा।

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