लखनऊ: विधि के विधान की बारीकियों को सरल शब्दों में समझाने वाले, जान-अनजान में बनने वाले पाप और उसकी सजा से बचाने वाले, समाज में फैली भ्रांतियों को दूर करने वाले, इतिहास के पन्नों में छुपी सीख को बताने वाले, नीयत सही करवा कर घर व्यापार में बरकत दिलाने वाले, जीते जी मुक्ति मोक्ष प्राप्त करने और देवी-देवताओं के दर्शन का रास्ता नामदान देने वाले वक़्त के महापुरुष सन्त सतगुरु दुःखहर्ता त्रिकालदर्शी परम दयालु उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने सायं कालीन बेला में जयपुर में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि ये शरीर पिंजरा और जीवात्मा तोता बताया गया है। जब तक तोता है पिंजरे को साफ करते हो। तोता उड़ने पर पिंजरा कबाड़ में फेंक देते हो।

ऐसे ही आत्मा निकल जाने पर इस शरीर की कोई कीमत नहीं रहती। और इस शरीर के लिए आप जीव हत्या करो, इतना बड़ा पाप! क्या आपको किसी ने बताया नहीं कि बदला देना पड़ेगा। नहीं बताया तो आज आपको बताया जा रहा है, सबका हिसाब होता है। मालिक का कैमरा 24 घंटे सब अच्छा-बुरा रिकॉर्ड करता है। गर्भ में बच्चे पर कर्म नहीं बनते लेकिन पांच साल तक का बच्चा अगर कोई गलती करता है तो उसका पाप सजा मां बाप को भोगना पड़ता है, उसमें जुड़ती है कि इन्होंने संभाल नहीं किया, परहेज नहीं कराया। इसीलिए कहा जाता है कि बच्चों को पाप से बचाओ। बच्चे को अंडा खिला दिया, जीव हत्या का पापी तो बन जाएगा लेकिन उसको कोई ज्ञान नहीं है, आपको ज्ञान है कि इसमें जीव है। यही अंडा फूटेगा तो इसमें से जीव बच्चा निकलेगा तो जीव हत्या हुई कि नहीं हुई? हुई। इसीलिए कहा जाता है कि बच्चा कों अंडा मत खिलाओ, अंडा मत खाओ। देखो जब से लोग अंडा खाने लगे बीमारियां बढ़ गई। कहते हैं तंदुरुस्ती अच्छी हो जाएगी तंदुरुस्ती का ह्रास हो जाता है। खून बेमेल हो जाता है, बीमारी पैदा हो जाती है। दो-चार दिन खाए ताकत आई उसके बाद उसका क्या असर होता है, आपको नहीं मालूम है, बुद्धि खराब हो जाती है। बुद्धि किससे बनती है?

जैसा खावे अन्न, वैसा होवे मन।
जैसा पिये पानी, वैसी होवे वाणी।।

आप यह समझो कि बुद्धि अन्न से ही बनती है। अन्न अगर शुद्ध रहेगा तो बुद्धि सही रहेगी। भीष्म पितामह जैसे योगी की बुद्धि खराब हो गई। जब वह मर रहे थे, शरीर छोड़ रहे थे, बाणों की शैय्या पर लेटे हुए थे, ज्ञान का उपदेश कर रहे थे, द्रोपदी ने हंस दिया। पूछा क्यों हंसी? द्रोपदी बोली ऐसे ही हंस दिया। कहा तेरे हंसने में बहुत बड़ा राज हुआ करता, हंस करके तो तूने इतना बड़ा महाभारत करा दिया। तब बोली कि उस समय आपका ज्ञान उपदेश अकल बुद्धि कहां गयी थी जब मुझे भारी सभा मे नंगी किया जा रहा था, चीर को खींचा जा रहा था? तब उन्होंने कहा, तू ठीक कह रही है। उस समय मैं पापी दुर्योधन का अन्न खा रहा था इसलिए मेरी बुद्धि भ्रष्ट हो गई थी।

भीष्म पितामह जैसे योगी की बुद्धि पापी का अन्न खाने से खराब हो सकती तो अंडा मांस खाने पर कहां से सही रहेगी बुद्धि

अब आप सोचो, पापी के अन्न से भीष्म पितामह जैसे योगी की बुद्धि खराब हो सकती है तो जब जानवरों का मांस खाओगे, अंडा खाओगे, बच्चे को खिलाओगे तो बुद्धि कहां से सही रहेगी? जब से यह मांसाहार, शराब का प्रचलन बढ़ा तबसे अपराध और भ्रष्टाचार बहुत बढ़ गया। यह दो चीजें अगर बंद कर दी जाए देश-विदेश में तो इतना पैसा जो एक्सीडेंट में, अस्पतालों में खर्च होता है, जो अधिकारियों को टी.ए डी.ए भत्ता देना पड़ता है, सुरक्षा के लिए फौज लगानी पड़ती है, ये सब नहीं करना पड़ेगा। खर्चा बहुत कम हो जाएगा और वही पैसा देश के विकास में लगेगा, लोगों की सुख सुविधा की चीजें बनाने में लग जाएगा।

लेकिन सुने कौन आजकल? पहले तो राजाओं के यहां राजगुरु हुआ करते थे। वो उनसे उपदेश लेकर समझ करके अनुभव की बातें जान करके लागू कर देते थे तो बड़ी खुशहाली थी। समय पर देखो राजा रामचंद्र के राज्य में पानी बरसता था। किसान अपने खेत में खड़ा होकर हाथ जोड़ कर पानी मांगते थे, बादल बरस जाते थे। जैसे सीप और शंख इस समय समुद्र किनारे लाकर के डालता है उस समय पर मणि और मोती ला करके समुद्र लोगों के लिए किनारे पर छोड़ दिया करता था। लोग उठा करके ले आते थे। मणि और मोती से बच्चे खेल खेलते थे, इतनी अधिकता थी। नीयत अच्छी थी तो बरकत होती थी। अब नीयत घट गई अब तो देखो हीरा लोग पहचान भी नहीं सकते, हीरा जानते भी नहीं।

आजकल लोगों की नीयत खराब होने से बरकत हो गई बंद

आप यह समझो नकली हीरा, नकली सामान, मिलावट वाली चीज बना दी। इमान लोगों का खराब हो गया। नीयत जब खराब होती है तो बरकत बंद हो जाती है। नीयत सही रहती थी तो बरकत लोगों के घर में होती थी। उस समय तो
जननी सम जानहि पर नारी।
धन पराय विष ते विष भारी।।
तब ऐसा समय था
दैहिक, दैविक, भौतिक तापा, रामराज्य काहु नहीं व्यापा। राम के राज्य में कोई कोढ़ी अपाहिज लंगड़ा लूला था ही नहीं, अल्प मृत्यु होती ही नहीं थी।

जीव हत्या से भौतिक आध्यात्मिक दोनों तरह के कर्म होते हैं खराब

इस वक्त कोई भरोसा है की घर से निकला और 2 घंटे बाद घर वापस आ जाएगा? नहीं है। अकाल मृत्यु जग माही व्यापै, प्रजा बहुत मरै अकाल मृत्यु बहुत हो रही है। पहले 10-20 जिले में अगर कोई कत्ल या अकाल मृत्यु हो जाए तो लोग सन्न रह जाते थे, यह कैसे हुआ। अब अखबार में न्यूज़ में देखो कोई दिन ऐसा नहीं जिस दिन मरने की खबर न आवे। कहने का मतलब यह है कि शाकाहारी रहो, शाकाहारी भोजन करो, जीव हत्या का कोई काम न करो। उससे दोनों तरह का नुकसान होता है, दोनों कर्म खराब होते हैं भौतिक और आध्यात्मिक, दोनों धर्मों का ह्रास होता है इसलिए शाकाहारी रहो, मुख्य चीज़ यही है।

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