लखनऊ: प्रत्यक्ष साधारण दिखने वाली चीज के पीछे छुपे गहरे अर्थ को बताने वाले, अपनी जीवात्मा को अपने प्रभु पति परमेश्वर से मिला कर सदा के लिए सुहागिन बनाने वाले, समय का सम्मान करने की सीख देने वाले, धर्म ग्रंथों का वास्तविक मतलब बताने वाले, पूरे गुरु की महत्ता को बार-बार रेखांकित करने वाले, मन जिसको बड़े-बड़े तपस्वी योद्धा साधक नहीं जीत पाए उसे सहज में काबू में कर जल्दी प्रभु की प्राप्ति का मार्ग बताने वाले वक़्त के महापुरुष सन्त सतगुरु दुःखहर्ता त्रिकालदर्शी परम दयालु उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने संदेश में बताया कि अभी सावन महीना चल रहा है। आषाढ़ में आशा लेकर के जीव पैदा होता है कि बड़े होंगे, समरथ गुरु की तलाश करेंगे, रास्ता लेकर के भजन करेंगे, अपनी आत्मा को नरकों व चौरासी से बचा लेंगे, इसको अपने घर अपने वतन पहुंचा देंगे। लेकिन बहुत से लोगों की आशाओं पर पानी फिर गया क्योंकि आषाढ़ महीना निकल गया। महीना तारीख समय किसी का इंतजार करता है? न आज तक किया, न आगे करेगा। वह तो निकलता जाएगा। बहुत से लोगों के जीवन में देखो कितने आषाढ़ निकल गए।
सावन किसको कहते हैं
सावन यानी सा वन। यानी उसके जैसा बन, जैसा था वैसा बन। कैसा था? निर्मल था। जब जीवात्मा ऊपर से उतारी गई थी तब इस पर कोई गंदगी नहीं थी। अब तो गंदगी पर गंदगी चढ़ती चली गई। अब बड़ा मुश्किल हो रहा है। लेकिन मुश्किल के साथ-साथ आसान भी है। देखने सुनने में तो मुश्किल लेकिन करने पर मुश्किल नहीं दिखाई पड़ता हैं। जैसे बालू में चीनी मिला दो तो हाथी नहीं निकाल सकता लेकिन चींटी निकाल लेती है। कलयुग सम युग नहीं, जो नर कर विश्वास विश्वास अगर करो तो वैसा बनने में देर नहीं है। तनिक ध्यान इधर से हट जाए, मन दुनिया की तरफ से हट जाए, उधर लग जाए तो वैसा बनने में कोई भी समस्या नहीं आएगी।
विश्वास के साथ गुरु का दिया हुआ नाम जपा जाए तो परमात्मा जैसा बनने में देर नहीं लगेगी
लेकिन सवाल यह हैं कि विश्वास हो। गुरु ने जो रास्ता बताया, नाम दिया, उस पर विश्वास हो, उसको भजा जाए, याद किया जाए। मन तू भजो गुरु का नाम। गुरु के शरीर का नाम अलग होता है और गुरु जो नाम देते हैं उसको जब भजते, भजन करते हैं, नाम रूपी रत्न को पकड़ते हैं तो यह जीवात्मा मालिक जैसी हो जाती है, निर्मल स्वच्छ साफ हो जाती है।
सावन, भादो, क्वार, कार्तिक निकल जाएंगे, जीवात्मा कुंवारी की कुंवारी रह जाएगी
आप लोगों को रास्ता मिला। गुरु ने मोहे दीन्ही अजब जड़ी। जो जड़ी गुरु ने दिया उसको आप तीसरी आंख के सामने रगड़ो, लगाओ। यानी सुमिरन, ध्यान, भजन रोज करो। जिनके नाम को लो उनके रूप को याद करो तो देखो अभी वैसा बनने में देर नहीं लगेगी। नहीं तो सावन भादो चला जाएगा, यह जीवात्मा कुंवारी की कुंवारी रह जाएगी। कुंवारी मतलब इसका संबंध उस प्रभु से नहीं हो पाएगा। जैसे कुंवारी लड़की होती है। एक तरह से जीवात्मा जब प्रभु को नहीं पा पाएगी, अपने पति परमेश्वर को नहीं पा सकेगी तो कुंवारी रह जाएगी।
कार्तिक का मतलब काया में ताको इसी में सब कुछ है
कार्तिक मतलब काया के अंदर ताको, इसके अंदर देखो, इसी में सब कुछ है। बार-बार गुरु महाराज भी खूब बताते थे। जितने भी सन्त हुए सब यही बताए कि इसी मनुष्य शरीर में मालिक मिलता है। कहा गया एक घंटा बैठो। मन तो नहीं बैठने देगा लेकिन जब बैठने लग जाओगे तो मन अपने आप हार जाएगा, भगते-भगते रुक जाएगा। साधना में शरीर को मत उठने देना।