लखनऊ: काल के द्वारा बनाये गए बहुत बारीक कर्मों के विधान की हर गुत्थी को जानने वाले, जना देने वाले और सुलझा कर जीवात्मा को कर्मों से परे निर्बंध करके अपने निज घर सतलोक ले चलने वाले, जीवात्मा के साथ-साथ शरीर की भी संभाल करने वाले, तलवार की धार पर चलने के समान सन्तमत को अपनी दया से इतना सरल आसान बना देने वाले की अपने अपनाए हुए जीवों से छोटी-छोटी बातों की पालना करवा कर काल माया को भी पछाड़ कर सुरत को अपने साथ अपने जयगुरुदेव धाम ले चलने वाले, इस समय के महापुरुष, त्रिकालदर्शी, परम दयालु, दुःखहर्ता, पूरे समरथ सन्त सतगुरु, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने 29 अक्टूबर 2020 सांय उज्जैन आश्रम में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित सन्देश में बताया कि अन्न कैसा है- इसकी परख आपको नहीं हो पाती है। जन्म से ही शाकाहारी रहे, नाम दान लिया, भजन भी कर रहे हो और समझते हो कि यह भजनानंदी है, भगत है, इसके यहां खाने में कोई दिक्कत संकोच नहीं है। लेकिन उसके पास कहां से कैसा अन्न आया? बापदादा कैसे किस तरह से कमा करके लाए? आपको यह पता नहीं है। साधक, साधक का भी अन्न खाता है तो भी उसका कर्म खाने वाले पर लदता है। इसीलिए यह भोजन का बड़ा जटिल विषय है। आप लोग देखते नहीं हो, ध्यान नहीं देते हो कि यह व्यक्ति कैसा है? मांसाहारी शराबी व्यभिचारी है या किस तरह का आदमी है। कैसे बना खिला रहा है, बर्तन कैसा है? बस बढ़िया चाट-पकोड़ा, बर्फी-रबड़ी को देखते हो। क्या चीज उस में डाली गयी? कौन से तेल में बना? यह सब आप ध्यान नहीं रखते हो और खाते चले जाते हो। सब जमा होता चला जाता है, पर्दा, गांठ और मोटी होती जाती है और फिर एक समय ऐसा आता है कि एकदम से बुद्धि के ऊपर कर्मों की कालिमा लग जाती है और बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है। इसीलिए आप देख सोच समझ करके ही खाओ-पियो। देखो! माया, जीभ के साथ-साथ नाक जो कि एक इंद्री है, उसका भी स्वाद दिलाती है। देखकर ही कितना बढ़िया खस्ता भुना बना हुआ है, उसका भी रस दिलाती है। एक चीज आपने देखा, सोचे, छोड़ो इसे नहीं खाना है तब तक हवा का झोंका आया और मिर्च मसाले तेल की बढ़िया खुशबू नाक में आ गई तो यह मन तो माया का एजेंट है, वह फट से आपको खिला देगा। आप वचनों को भूल जाओगे। इसीलिए कहा गया सतसंग सजग होकर सुनो, बातों को याद रखो और अमल करो।

खान-पान का असर होता है। प्रेमियों को, साधकों को अक्सर यह शिकायत रहती है कि शरीर से बहुत मेहनत करने, खूब प्रार्थना ध्यान भजन सेवा करने पर भी ध्यान भजन नहीं बनता है। छोटी-छोटी चीजें बाधक बन जाती है। जैसे बढ़िया पके हुए खुशबुदार चावल को खाते हुए एक छोटा सा कंकड़ दांत के नीचे पड़ गया तो स्वाद बिगाड़ देता है, इसी तरह से सब कुछ होते हुए भी अगर इन चीजों का ध्यान नहीं रखा जिसके लिए कहा गया अन्न दोष, संग दोष लग गया। आप सोचते हो कि हम रास्ते में जा रहे हैं, हमको साथी मिल गया है। लेकिन आप सीधे-साधे आदमी, उसको परख नहीं पाए कि कैसा आदमी है, क्या है? लेकिन उसने आपको परख लिया तो धीरे-धीरे वह समझ गया की किस तरह से वो आपके शरीर का, आपके दिल दिमाग धन का उपयोग उसके निजी स्वार्थ में कर सकता है। बस आपको लोभ लालच देकर के, सम्मान की माला पहना करके आपकी साधना को भंग करा देगा, आपके शरीर को अपवित्र करा देगा। आपने नाम की शंखिया सुंघा कर इंद्रियों को मूर्छित किया, जो ये काम क्रोध मोह लोभ अहंकार में लिप्त थी, ये पांच और सतोगुण रजोगुण तमोगुण आठ गांठों में यह जीवात्मा बंधी हुई थी, उनको आपने खोलने का प्रयास किया और खुली भी तो अन्न दोष और संग दोष से शील क्षमा संतोष विवेक विरह सब खत्म हो जाता है और यह शरीर कामी क्रोधी लोभी हो जाता है। इसीलिए कहा गया- पानी भोजन साथी तीनों बनाओ देख कर।
परमार्थी को हमेशा बहुत सजग रहना चाहिए

परमार्थ का जो रास्ता होता है वह तकलीफ देह, कांटों से भरा, तलवार की धार पर चलने की तरह से होता है इसलिए बहुत संभल करके चलने की जरूरत होती है। इस रास्ते पर जो चल ले जाता है, चलाने वाले की, मंजिल का रास्ता तय कराने वाले की यानी इस नाव (जहाज) के पतवार गुरु की मदद ले लेता है तो उसकी नैया भवसागर पार है नहीं तो इसी में डूब-डूब कर खत्म हो जाना पड़ेगा। इसीलिए परमार्थी भजनानंदी को होशियारी की जरूरत होती है। छोटी-छोटी चीजें बाधक बन जाती है। लेकिन इन चीजों को जाने समझे रहे, होशियारी रखें तो सन्तमत और सन्तमत की सुरत शब्द योग साधना बहुत सरल और आसान, सुखदाई, फलीभूत है और तुरंत का तुरंत लाभ देने वाली है। यह रास्ता साधना ऐसी है।

नेकी कर दरिया में डालो

महाराज जी ने 4 अक्टूबर 2020 सायं उज्जैन आश्रम में बताया कि नेकी करो दरिया में डाल दो यानी भूल जाओ। दरिया यानी नदी में कोई चीज जब डाल देते हैं तब याद नहीं रहता है कि क्या डाल दिया था। तो कहते है उसको फेंक दो, भूल जाओ। बहुत से लोग सेवा दिखा करके, पर्ची लेकर के देते हैं और कुछ लोग (मुट्ठी बंद करके छुपा करके) झोली में डाल देते हैं। गुरु महाराज के पास भी आते थे। गुरु महाराज कहते थे बच्चा उधर लिखवा दो। कहते थे नहीं, हमारी खुद की सेवा है, झोली में डाल देते थे। तो कुछ लोग तो इस प्रवृत्ति के होते हैं कि हमारा परमार्थ बंट न जाए, लोग देख न ले, उस पर नजर न लग जाए कि हम क्या सेवा दे रहे हैं, क्या सेवा कर रहे हैं। छुप करके (सेवा करते, देते) जब लोग कम देखें। हमने यह भी देखा रात को ही उठे और गए, पूरा झाड़ू लगा करके आ गए। पूरी सफाई करके चले आए और जो सुबह उठते थे, झाड़ू लगाते थे, वो देखे सब साफ है। यह कैसे हो गया? लेकिन उनकी रोज की ड्यूटी थी तो वह लोग भी झाड़ू लगाए। तो कहते हैं परमार्थ को छुपाना चाहिए।

परमार्थ को छुपाना चाहिए

गुरु महाराज ने इसीलिए कहा जब भजन ध्यान सुमिरन करो तो पर्दा ऊपर से डाल लो कि तुमको कुछ अंदर की दौलत अगर मिले भी तो वह बंट न जाए, देख न ले लोग। आपको कहा गया और अब भी यही चीज बताई जा रही है कि कुछ भी दिखाई पड़ेगा, अंतर में कुछ भी सुनाई पड़ेगा तो किसी को बताना मत। बता दोगे तो बंद हो जाएगा। लुट जाओगे, आपका अंदर का माल चला जाएगा।

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