लखनऊ:  अपने अपनाए हुए भक्तों की उनकी अंतिम सांस तक अंदर और बाहर दोनों तरफ से संभाल करने वाले, साधना में दया करके सुरत जीवात्मा को उपर खींचने वाले, भक्तों के कर्मों को नाम रूपी अग्नि से पल भर में जलाने की पॉवर रखने वाले, जिनमें सभी धनी समायें हुए हैं, जिनकी पूजा में सबकी पूजा हो जाती है, जिनके खुश होने पर पूरी दुनिया खुश हो जाती है, ऐसे आज की तारीख के असली, पूरे जानकार विशेषज्ञ समरथ सन्त सतगुरु युगपुरुष परम दयालु त्रिकालदर्शी दुःखहर्ता उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने उज्जैन आश्रम में दिए व यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित सन्देश में बताया कि सुमिरन विधिवत नियम से करना चाहिए। और जिनके नाम को लिया जाए, उनके रूप को याद किया जाए। पलटू सुमिरन सार है, घड़ी न बिसरे एक। कहा गया है, खाली रहो तो पांचों धनियों का सुमिरन करते रहो, गुरु का नाम याद करते, लेते रहो लेकिन यदि आप कहो कि हम माला नहीं जपेंगे, नहीं बैठेंगे और ऐसे ही याद करते रहेंगे तो मन आपका करने नहीं देगा। सुमिरन करने में बंधन रहता है। 108 दाना नाम का लेना ही लेना है। आठ माला में, हर माला में 108 बार हमको, इनको पुकारना ही पुकारना है, याद करना ही करना है तो कोर्स पूरा हो जाता है। और कभी भी किसी भी दाने पर अगर उन्होंने दया कर दिया, नजर आपके ऊपर डाल दिया तो उसमें रास्ता खुल जाएगा, आपके कर्म कट जाएंगे। कुछ इस जन्म के और कुछ पिछले जन्मों के कर्म जमा है तो ये कट जाएंगे। और जब तक कर्म नहीं कटेंगे तब तक आप आगे बढ़ नहीं सकते हो, कामयाबी आपको मिल नहीं सकती है।

तो यह क्या है? तड़प पैदा करना, चरणों से प्रीत लगाना और दया के लिए प्रार्थना करना कि अब अगला जन्म न लेना पड़े, इसी जन्म में हम पार हो जाए। यह सब क्या है? यह सब साधना के अंग हैं। सुमिरन कर्मों की सफाई करता है। इससे मन ढीला पड़ता है और अंगो से पाप नहीं करवाता है। सुमिरन एक तरह से झाडू जैसा है। जैसे घर में झाड़ू रोज लगाते हो तो गंदगी इकट्ठा नहीं होती है। यदि एक दिन लगाने से पुरानी गंदगी साफ न हो तो रोज लगाते रहोगे तो भी गंदगी साफ होती रहेगी। जैसे फर्श पर काई या बहुत गंदी चीज जमा हो तो एक दिन में साफ़ नहीं होगा लेकिन रोज सफाई करते रगड़ते रहो तो कुछ दिनों में साफ़ हो जायेगा। ऐसे ही सुमिरन करते रहोगे तो कर्म कटेंगे तो मन रुकेगा और मन उधर प्रभु की तरफ लगेगा।

सुमिरन में धनी दया क्यों नहीं करते हैं

जिनका सुमिरन करते हो उन धनियों की तरफ ठहराव लगाव क्यों नहीं होता है? और ये दया क्यों नहीं करते हैं? क्योंकि आप इनको भूल जाते हैं। हर दाने पर इनके रूप को याद करते जाए और नाम जपते जाए तो बराबर लिंक बना रहेगा, तार टूटेगा नहीं, कर्म आड़े नहीं आएंगे। इसीलिए कहा गया हर दाने पर अंतर में प्रणाम करो। अब अंतर में प्रणाम करने में देर नहीं लगती है। सिर झुकाने में ,आंख से प्रणाम करने में, हाथ जोड़ने में तो समय लगता है लेकिन उसमें समय नहीं लगता है। आपको बताया गया है, सुमिरन करने से पहले पांच धनियों को याद कर प्रणाम करो। गुरु क्या है? गुरु एक समुद्र में नौका के पतवार जैसे हैं। वह आपको बैठाकर के पार कर देंगे। तो जैसे गंगा मैया या और कोई नदी आपको पार करना है तो पहले मल्लाह को याद, खुश करते हो। तो गुरु हर तरह से मददगार होते हैं। इसीलिए गुरु को ही लोगों ने माता, पिता कहा। सब लोगों ने अपनी-अपनी भाषा में प्रेम के शब्दों में गुरु को पुकारा, सम्मान दिया। जैसे जिस भी तरफ रेलगाड़ी को चलना हो तो दूसरी तरफ से इंजन को हटा कर उस तरफ इंजन लगा देते हैं ऐसे ही गुरु का नाम शुरू में, आखरी में बताया जाता है। तो सबसे पहले जो गुरु हो उन्हीं का सुमिरन और ध्यान किया जाता है। फिर एक-एक धनी का नाम इकट्ठा याद करके और उनको याद किया जाता है। और जो सबको जोड़ करके चलते हैं गुरु उसमें भी रहते हैं। फिर अलग-अलग नामों का सुमिरन अगर न पके, सुमिरन में लाभ अगर न दिखाई पड़े, अगर सुमिरन करने वाले धनियों के प्रति प्रेम न जगे तो समझ लो सुमिरन ठीक से नहीं हो रहा है। सुमिरन न होने का यही मतलब है कि मन उनके चरणों की तरफ नहीं जा रहा है। तो आपको प्रार्थना करनी चाहिए। जिनसे प्रार्थना करो उनको याद करो। तो सुमिरन एक प्रथम सीढ़ी है अध्यात्म में आगे बढ़ने की, तरक्की करने की। सुमिरन करना, प्रार्थना करना सीख लो, तड़प और विरह की प्रार्थना याद कर लो।

साधना में तरक्की किसकी नहीं हो पाती है

एक ही गुरु के कई शिष्य हुए। गुरु के जाने के बाद कई लोगों ने रास्ता बताना, नामदान देना शुरू कर दिया लेकिन उसमें कामयाबी नहीं मिली। बल्कि जिसको गुरु ने (नयों को नामदान देने की) जिम्मेदारी दी, काम को सौंपा, उनकी उन्होंने मदद किया और केवल वही मिशन आगे बढ़ गया। बाकी लोगों ने प्रयास तो किया, नाम भी वही बोल रहे हैं, आश्रम मठ मंदिर उन्हीं के नाम से हैं लेकिन साधना में तरक्की नहीं हो पाई। डॉक्टर, इंजीनियर, वकील अपनी-अपनी पढ़ाई सालों का कोर्स करते हैं लेकिन जो मन लगाकर पढ़ते, थ्योरी के साथ प्रैक्टिकल करते हैं उनको ज्यादा जानकारी हो जाती है। कुछ तो लगन के साथ करते हैं, हर चीज की जानकारी हासिल करने की कोशिश करते हैं और कुछ केवल आते-जाते हैं, थोड़ा बहुत कुछ सीख पाए, जान पाए कि डिग्री मिल गई है तो नौकरी तो मिल ही जाएगी। जो विशेषज्ञ कोर्स कर लेते हैं जैसे वकील सिविल लॉ या क्रिमिनल लॉ के, डॉ स्त्री रोग विशेषज्ञ, बाल रोग विशेषज्ञ आदि अलग-अलग कोर्स कर लेते हैं तो उनको ज्यादा जानकारी हो जाती है। ऐसे ही जब पूरी जानकारी वाले विशेषज्ञ गुरु रास्ता बताते हैं, बच्चा प्रैक्टिकल न कर पावे तो हाथ पकड़ कर के सिखा देते हैं। जैसे मेडिकल में विद्यार्थियों को सभी अंगों को ऑपरेशन करके बताते हैं और अगर कहीं दिक्कत हो रही हो तो खुद भी कर देते हैं, ऐसे ही जब समरथ जानकार गुरु मिल जाते हैं और वह बताते, समझाते, साधना में भी मदद कर देते हैं तब यह चेतन शक्ति (जीवात्मा) चेतन प्रभु में मिल जाती है और नहीं तो यह अटक जाती है। इसलिए पूरे जानकार विशेषज्ञ समरथ सन्त सतगुरु को जल्दी खोजो, समय निकला जा रहा है।

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