लखनऊ: इस समय धरती पर जीवों को नाम दान देने के एक मात्र अधिकारी, उन्हें सतसंग सुना कर, अपने असला घर सतलोक चलने की इच्छा जगाने वाले, पिछले कर्मों की धुलाई सेवा सुमिरन ध्यान भजन से करवाने वाले, प्रभु की कृपा प्राप्त करने, उनके दर्शन योग्य बनाने वाले, क्रोध लोभ मोह अहंकार रूपी भूतों से छुटकारा दिलाने वाले, अंदर-बाहर दोनों तरफ से संभाल करते हुए गिन-गिन कर कमियों को दूर करने वाले, इस समय के महापुरुष, पूरे समरथ सन्त सतगुरु, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने उज्जैन आश्रम में बताया कि सन्तों के, महात्माओं के जीव (विभिन्न जगहों पर) पड़े रहते हैं।
सन्त उनको खोज करके लाते, पकड़ते हैं। सतसंग सुना कर, समझा कर इच्छा जागने पर नामदान देते हैं। फिर जीवों के पिछले कर्मों की धुलाई रगड़ाई करवाते हैं ताकि जीवात्मा निर्मल हो जाए। जीव के बर्दाश्त करने हजम करने की शक्ति के अनुसार अंतर में चढ़ाई करवाते हैं। कभी न ख़त्म पूरी होने वाली इच्छाओं का दमन कर देते हैं, अंदर की गंदगी सब साफ हो जाए। गुरु अंदर से सहारा देते हुए बाहर से चोट मार-मार कर कमियों को दूर करते हैं। आप भी सुनिए कैसे कुम्हार द्वारा बिना कीमत की मिट्टी को कीमती घड़े में बदलने के जीवन चक्र से महाराज जी ने समझाया समरथ गुरु के महत्त्व को।