लखनऊ : बाबा जयगुरुदेव जी के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी, इस समय के युगपुरुष पूरे समरथ सन्त सतगुरु उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने गाज़ियाबाद में दिए अपने संदेश में बताया कि महात्माओं ने कर्मों को अदा करने, तकलीफों से बचाने के लिए नियम कानून बनाए, तरह-तरह के उपाय निकाले। नवरात्रा अमावस्या पूर्णिमा रक्षाबंधन आदि त्योहार को महात्माओं ऋषि-मुनियों ने लोगों को सिखाने के लिए बनाया कि ये केवल खाने-पीने और मौज मस्ती के लिए नहीं आते। पहले त्योहारों, तिथियों के दिन सन्तों के पास लोग जाते, शिक्षा लेते कि गृहस्थ आश्रम में कैसे रहे, कब क्या खाएं, किस्से कैसे व्यवहार करें, संयम-नियम का पालन कैसे करें आदि।

मनुष्य शरीर का सिस्टम केवल बाहर से देखता नापता लेकिन सन्त अंदर से देख कर तकलीफ बता देते हैं:-

जैसे आदमी की बनाई मशीन में कमी आने, जैसे तेल कम होना आदि से रुक जाती है, उसी तरह खुदा भगवान के बनाए मनुष्य शरीर रूपी मशीन के सिस्टम में कमी से दिक्कत बीमारियां तकलीफें आ जाती है। लोगों को नहीं मालूम चलता लेकिन मिस्त्री बताते हैं कि गाड़ी की सर्विसिंग धुलाई सफाई, टूटा पुर्जा बदलना आदि इतने-इतने समय पर होना चाहिए। डॉक्टर कमी या अधिकता होने पर नमक मीठा बंद या चालू करवाते हैं। मनुष्य शरीर को आदमी नहीं बना सकता, तकलीफ होने पर केवल बाहर से देखकर, जैसे नब्ज चेहरा देख कर, खून की जांच कर आदि से उपाय बताता है। लेकिन इसके बारे में सन्तों को पूरी जानकारी रहती है जो इसे अंदर और बाहर दोनों तरफ से देखते और स्वस्थ रहने का उपाय बताते हैं।

स्वस्थ रहने हेतु महात्माओं द्वारा बनाये गए कुछ नियम:-

जबकि महात्मा अंदर देखते ही बता देते हैं कि यह तकलीफ है। लेकिन (महात्माओं के पास जाने में देरी की वजह से) तब तक समय निकल जाता है, देर हो जाती है। तकलीफ आवे ही नहीं, या आराम मिलने के लिए महात्माओं ने नियम बना दिया कि इतवार को एक समय खाओ, (संयम से अल्प मात्रा में) मीठा भोजन खाओ, मंगल को नमक मत खाओ आदि। पहले माताएं बच्चों को बताती थी कि इतने समय से इतने समय तक ग्रहण रहेगा तो तुमको उस समय भोजन नहीं खाना, पानी नहीं पीना है। सूर्य की किरणें गर्भवती महिला के ऊपर, खाने पीने की चीजों पर न पड़ने पावे। उसका असर छाया में भी हो तो वहां नहीं जाना चाहिए। गीली मुलायम चीजों पर गर्मी ठंडी का असर ज्यादा होता है। असर को रोकने खत्म करने के लिए खूब ढक करके रख दो। इन सब चीजों का वैज्ञानिक असर होता है। इस शरीर को पांचों तत्वों की जरूरत पड़ती है। जैसे वायु की अधिकता होने से साथ जल्दी-जल्दी चलने लगती है, कमी से दम घुटने लगता है।

पेट की सफाई हेतु नवरात्र व्रत बनाया गया:-

महात्मा हकीम डॉ ऋषि मुनि सब लोगों ने कहा कि पेट की खराबी से ही सारी बीमारियां होती हैं। पेट से रस, रक्त बनता, हर अंग में खून का संचार होता है। यदि खून साफ बढ़िया रहेगा तो शरीर चलता रहेगा। डॉ वैद्य लोग कहते हैं खून खराब हो गया जैसे गुर्दा खराब तो, खून की सफाई (डायलिसिस) करते, दवाई देते हैं। पेट से सब तंत्र चलता है। आंते लीवर गुदा आदि सारा संबंध पेट से ही है। पेट साफ रखो। पेट की सफाई के लिए उपवास करो। उपवास तो बहुत लोग करते हैं लेकिन उससे पेट की सफाई नहीं होती बल्कि पेट और खराब हो जाता है क्योंकि जल्दी न हजम होने वाली चिकनी चुपड़ी चीजें ज्यादा घी मेवा मिष्ठान खूब खाते हैं।

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