धर्म कर्म: इस समय के महापुरुष, पूरे समरथ सन्त सतगुरु, त्रिकालदर्शी, दुःखहर्ता, दयालु, अन्तर्यामी, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने जोधपुर आश्रम (राजस्थान) में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि 83% अपराध आंखों से ही होता हैं। कर्म का लेना-देना आंखों से भी होता है। बुरे से आंख मिल जाए तो बुरे कर्म आ जाते हैं और महात्मा साधकों से मिल जाए तो उनकी अच्छाई भी आ जाती है। इसलिए बहुत से लोग आंखों में देर तक नहीं देखते हैं। बहुत से लोग मुंह को, दांतो को देख कर बात करते हैं। आंख से आंख जल्दी नहीं मिलाते हैं, पता नहीं कैसा जीव हो। सन्तों के पास हर तरह के जीव आते हैं, सब से मिलते हैं।

निंदा अपमान बीमारी गरीबी ये सब दया के स्रोत हैं

महाराज जी ने  सायं जोधपुर (राजस्थान) में बताया कि कहते हैं निंदा, अपमान, बीमारी, गरीबी यह सब दया के स्रोत हैं। जब समाज में, कहीं भी निंदा हो जाती है तब सोचता है, प्रभु अब आप ही इज्जत रखो। आप ही इस महत्व को बढ़ाओगे, जो हमारी बेज्जती हो गई है। प्रभु को याद करता है। बीमारी तकलीफ हो गई तो उसमें भी प्रभु को याद करता है। गरीबी में खाने-पीने पहनने की, बच्चों की परवरिश की दिक्कत आती है तब प्रभु को याद करता है। और अगर मान लो किसी जीव की अकाल मृत्यु हो गई, भाव भक्ति श्रद्धा है, गलती नहीं किया है, अंत: करण को गंदा नहीं किया है, जो चीज मना की गई मांस, मछली, अंडा, शराब का सेवन नहीं किया है तो उस (जीवात्मा) को कुछ समय के लिए ऊपरी लोकों में विश्राम देकर के वापस मनुष्य शरीर में भेज देते हैं। काल उसको अपने चपेट में, अपने नियम के अंतर्गत नहीं ले सकता है, (गुरु ऐसे जीव को) नरक में, प्रेत योनी में नहीं जाने देते हैं।

त्याग प्रारब्ध का फल दूसरों को भी दिला दिया जाता है

महाराज जी ने पेंड्री आश्रम दुर्ग (छत्तीसगढ़) में बताया कि गुरु महाराज के आदेश पर एयर कंडीशन में रहने वालों ने भी बोरा टाट पहन लिया था। जो दिन में दो-तीन बार कपड़ा बदलते थे, उन्होंने बोरा पहन लिया। बोरा उस समय जल्दी मिलता भी नहीं था और कोई सिलने को भी नहीं तैयार होता था तो एक-एक बोरा के कपड़े को कई दिन पहनना पड़ता था। कभी तो ऐसी हालत हो जाती थी कि बोरा कपड़ा फट जाता था और जल्दी मिलता नहीं था। हम तो इसके खुद भुक्त भोगी है क्योंकि हम भी बोरा पहनते थे। जब से नाम दान देने का हुआ तब गुरु महाराज का हुकुम हुआ कि इसको उतार दो, अब तुम ऐसा पहन लो जैसा अब पहनते हैं, ऐसा पहना दिया। पहले हम भी (बोरा) पहनते थे। अब आप सोचो, क्या उनके प्रारब्ध में, भाग्य में ऐसा था (बोरा पहनना)? प्रारब्ध को बदल भी दिया जाता है, प्रारब्ध का, त्याग का लाभ दूसरे को भी दिला दिया जाता है।

खराब समय भजन के द्वारा कटेगा

महाराज जी ने प्रातः उज्जैन आश्रम में बताया कि समय परिस्थिति के अनुसार आपको सेवा भी करनी है, भजन भी करना है। खराब समय जब आएगा तो खराब समय कटेगा, ख़त्म होगा कैसे? भजन के द्वारा। तो भजन को और बढ़ाना भी पड़ेगा। तो उसी हिसाब से, समय के साथ जो चलता है, वही आगे बढ़ जाता है। समय के साथ जो नहीं चलता है, पीछे रह जाता है, धोखा खा जाता है। समय परिस्थिति को देख कर के जो आगे बढ़ता है, वही कामयाब हो जाता है। इसीलिए समय परिस्थिति के अनुसार जो भी जैसे भी जहां-जहां पूरे देश में, विदेशों में भी, जो लोग जिस तरह से कर सकते हो उस तरह से करो। समय तो खराब है ही लेकिन खराब समय में भी आदमी समय परिस्थिति के अनुसार सब काम कर लेता है। जैसे गृहस्थी का, दुनिया का काम कर लेता है, ऐसे ही संभल करके, बच करके, लोगों को बचा करके संगत का काम आपको करना है।

 

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