धर्म-कर्म : निजधामवासी बाबा जयगुरुदेव जी के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी, जीते जी देवी-देवताओं का दर्शन कराने वाले, मुक्ति मोक्ष देने वाले, इस समय के युगपुरुष, परम दयालु, त्रिकालदर्शी, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकांत जी महाराज ने बाबा जयगुरुदेव जी के 11वें वार्षिक ‘मार्गदर्शक भंडारा’ कार्यक्रम में देश-विदेश से आये अपार जनसमूह को दिए संदेश में बताया कि आप लोग यहां गुरु महाराज के 11वें भंडारा कार्यक्रम की तैयारियों के लिए आए हो। अपनी इच्छा से आए हो, जिन पर विशेष दया हुई और कुछ बुलाने पर आए, कुछ आयेंगे। वो बड़े भी भाग्यशाली हैं जिन्हें गुरु याद करते हैं। जब गुरु की दया होती है, गुरु याद करते हैं और आवाज कान में पड़ती है, चाहे किसी के भी माध्यम से पड़े, तो उसमें दया हो जाती है।
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उस दया को ठुकराना नहीं चाहिए। दया हमेशा नहीं होती है, कभी-कभी होती है। दया का घाट होता है, जो घाट पर बैठते हैं, उनको दया मिल जाती है। सेवा भजन सतसंग, यही हैं घाट। नए लोग जो आप आए हो, आप पुराने लोगों से चर्चा करना तो यह लोग बताएंगे कि किस तरह से कैसे गुरु की दया मिलती है। ऐसे (बड़े) कार्यक्रमों में जाने पर जानकारी होने से इन बातों को समझने से आगे भाव भक्ति में मदद मिलती है। इसलिए बराबर समझना पूछना चाहिए। देखो छाया में बैठे हैं। एक दूसरे को देख कर के काम करने की चाहे अच्छा काम हो या बुरा, करने की इच्छा होती है लेकिन इच्छा होने के बावजूद धूप की वजह से नहीं निकल रहे हैं तो सोचना पूछना चाहिए कि अभी सेवा करने वाले को भूख क्यों नहीं महसूस हो रही? जो पसीना बहा रहा, मेहनत कर रहा, उसको यह थकावट क्यों नहीं महसूस हो रही? इसको सोचने, उससे पूछने की जरूरत होती है कि भाई तुम क्यों इस तरह से, जैसे मानो भूत की तरह से सेवा में लगे हुए हो कि काम को तुम छोड़ते ही नहीं हो, तुम्हें याद क्यों नहीं आ रहा कि हमको नींद लेना है, भोजन करना है। https://youtu.be/4dhp8iHCbEk?t=1654