धर्म-कर्म : त्रिकालदर्शी यानी तीनों कालों (भूत, भविष्य और वर्तमान) को देखने जानने वाला, तो गहराई से समझने की बात है कि इस समय के महापुरुष, पूरे समरथ सन्त सतगुरु, त्रिकालदर्शी, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकांत जी महाराज ने बताया कि गुरु महाराज कहा करते थे कि दरवाजे तक ही रिश्ता रखो। मकान के अंदर मत घुसने दो। बहू-बेटियों को लोगों से दूर रखो। कोई आवे पानी पिला दो, रोटी खिला दो, लेकिन घर में घुसने मत दो। नाटक-नौटंकी करते हैं, घर में घुस जाते हैं, लोगों को प्रभावित कर देते हैं, रुपया-पैसा भी ले जाते हैं, बहन, बहू, बेटियों पर भी गलत नजर डालते हैं। देखने में तो पक्के सतसंगी, टाट भी पहन लेंगे, गुलाबी भी पहन लेंगे और खूब दौड़ करके सेवा करेंगे और खूब दौड़-दौड़ के मुख्य कार्यकर्ताओं के, हम लोगों के आगे-पीछे दौड़ेंगे लेकिन मौका पकड़ के लोगों को ठग लेंगे। तो अब संगत बहुत बढ़ रही है इसीलिए यह सब बातें आपको बता रहा हूं कि कहीं ठगी में न पड़ जाओ। आगे ठगी बहुत बढ़ेगी।

सुखी रहने के लिए शरीर से सेवा करनी चाहिए 

महाराज जी ने बताया कि सुखी रहने के लिए शरीर से सेवा करनी चाहिए। जो कोई न करे, वह सेवा जो करता है, जिसको छोटी सेवा कहते हैं जैसे झाड़ू लगाना, टट्टी, नाली, बर्तन साफ करना, खाना बनाना आदि। लोग कहते हैं ये सेवा हम कैसे करें? हाथ में कालिख लग जाएगा, पसीना बह जाएगा। तेल में पूड़ी बनाने में शरीर का ही तेल निकल जाएगा। तो छोटी सेवा कोई करता है, वह सेवा मानी जाती है। शरीर से सेवा करनी चाहिए। मन से भी चिंतन करो कि कैसे गुरु महाराज का मिशन पूरा हो, अपना दिल दिमाग बुद्धि भी लगाओ। जो काम गुरु महाराज छोड़ कर के गए हैं, वो जल्दी से पूरा हो जाए, इस धरा पर ही सतयुग का प्रादुर्भाव हो जाए, लोग सुखी हो जाए।

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