Rakshbandhan 2023: रक्षाबंधन का त्यौहार 30 अगस्त को मनाया जाएगा हिंदू पंचांग के मुताबिक सावन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि का आरंभ 30 अगस्त 2023 को 10 .59 मिनट पर होगा पूर्णिमा तिथि के साथ ही भद्रा आरंभ हो जाएगी जो की रात्रि 09,02 तक रहेगा इस समय के बाद ही रक्षाबंधन ज्यादा उपयुक्त रहेगा पौराणिक मान्यता के अनुसार राखी बांधने के लिए दोपहर का समय शुभ होता है लेकिन यह दोपहर के समय भद्रा काल हो तो फिर प्रदोष काल में भी राखी बांधना शुभ होता है राखी बांधने के लिए प्रदोष काल मुहूर्त रात्रि 09,03 मध्य रात्रि 12:28 तक बुधवार 30 अगस्त 2023 को भद्र प्रारंभ के पूर्व 06,09 से प्रातः 09,27 तक और 05,32 से सायं 06,32 तक भी राखी बांधी जा सकती है |
31 अगस्त शुरू हो जाएगा भाद्र पद मास …
31 अगस्त की सुबह 7,04 बजे तक पूर्णिमा रहेगी इसके बाद से भाद्रपद मास प्रारंभ हो जाएगा इस कारण 30 अगस्त को ही रक्षाबंधन और सावन पूर्णिमा से जुड़े धर्म कर्म करना ज्यादा शुभ रहेगा क्योंकि 30 अगस्त को सुबह 10:59 के बाद पूरे दिन पूर्णिमा तिथि रहेगी |
रक्षाबंधन का महत्व..
रक्षाबंधन को लेकर कई कथाएं प्रचलित हैं उन्हें में से एक है भगवान इंद्र और उनकी पत्नी सची की इस कथा का जिक्र भविष्य पुराण में किया गया है असुरों का राजा बलि ने जब देवताओं पर हमला किया तो इंद्र की पत्नी सच्ची काफी परेशान हो गए थे इसके बाद वह मदद के लिए भगवान विष्णु के पास पहुंची भगवान विष्णु ने सच्ची को एक धागा दिया और कहा कि इसे अपने पति की कलाई पर बंद है जिससे उनकी जीत होगी सती ने ऐसा ही किया और इस युद्ध में देवताओं की जीत हुई |
इसके अलावा रक्षाबंधन को लेकर महाभारत काल से जुड़ी भी एक कथा है जब शीशपाल के युद्ध के समय भगवान विष्णु की तर्जनी उंगली कट गई थी तब द्रौपदी ने अपनी साड़ी का पल्लू फाड़ कर उनके हाथ पैर बांध दिया था इसके बाद भगवान ने उनकी रक्षा का वचन दिया था अपने वचन के अनुसार भगवान कृष्ण ने ही चीर हरण के दौरान द्रोपदी की रक्षा की थी अटूट रिश्ते का पर्व रक्षाबंधन धार्मिक मान्यता के अनुसार शीशपाल राजा का वध करते समय भगवान श्री कृष्ण के बाएं हाथ से खून बहने लगा तो द्रौपदी ने तत्काल अपनी साड़ी का पल्लू फाड़ कर उनके हाथ की उंगली पर बांध दिया कहा जाता है कि तभी भगवान कृष्ण द्रौपदी को अपनी बहन मानने लगे और सालों के बाद जब पांडवों ने द्रोपदी को में हरा दिया औरभरी सभा में जब दुशासन द्रौपदी का चीर हरण करने लगा तो भगवान कृष्ण ने भाई का फर्ज निभाते हुए उनकी लाज बचाई थी |मान्यता है कि तभी से रक्षाबंधन का पर्व मनाया जाने लगा जो आज भी जारी है श्रावण मास की पूर्णिमा को भाई-बहन के प्यार का त्यौहार रक्षाबंधन मनाया जाता है |
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राखी बांधने की विधि रक्षाबंधन के दिन भाई को राखी बांधने से पहले राखी की थाली सजा इस थाली में होली कुमकुम अक्षत पीली सरसों के बीच दीपक और राखी रखें इसके बाद भाई को तिलक लगाकर उसके दाहिने हाथ में रक्षा सूत्र यानी राखी बांधे राखी बांधने के बाद भाई की आरती उतारे फिर भाई को मिठाई खिलाई अगर भाई आपसे बड़ा है तो चरण स्पर्श कर उसका आशीर्वाद लें वहीं अगर बहन बड़ी हो तो भाई को चरण स्पर्श करना चाहिए राखी बांधने के बाद भाइयों को इच्छा और समर्थ के अनुसार बहनों को भेंट देनी चाहिए ब्राह्मण या पंडित जी भी अपने यजमान की कलाई पर रक्षा सूत्र बांधते हैं |
भद्रा काल में नहीं बांधनी चाहिए राखी…
भद्र शनि देव की बहन और क्रूर स्वभाव वाली है ज्योतिष में भद्रा को एक विशेष काल कहते हैं भद्रा काल में शुभ कर्म शुरू न करने की सलाह सभी ज्योतिषी देते हैं शुभ कर्म जैसे विवाह मुंडन गृह प्रवेश रक्षाबंधन पर रक्षा सूत्र बांधना आदि सरल शब्दों में भद्रा काल को अशुभ माना जाता है मान्यता है कि सूर्य देव और छाया की पुत्री भद्रा का स्वरूप बहुत डरावना है इस कारण सूर्य देव भादरा के विवाह के लिए बहुत चिंतित रहते थे भद्र शुभ कार्यों में बाधा डालती थी जोगियो को नहीं होने देती थी भादरा के ऐसे स्वभाव से चिंतित होकर सूर्य देव ने ब्रह्मा जी से मार्गदर्शन मांगा था उसे समय ब्रह्मा जी ने भद्र से कहा था कि अगर कोई व्यक्ति तुम्हारे समय में कोई शुभ काम करता है तो तुम उसमें बाधा डाल सकती हो लेकिन जो लोग तुम्हारा कल छोड़कर शुभकाम करते हैं तुम्हारा सम्मान करते हैं तुम उनके कार्यों में बाधा नहीं डालोगी इस वजह से भद्रा काल में शुभ कार्य वर्जित माने गए हैं |
ज्योतषाचार्य- वेद प्रकाश शास्त्री