# गुरु से कुटुंब जितना ही प्रेम कर लो तो आपका पल्ला कोई नहीं पकड़ सकता

निजधामवासी बाबा जयगुरुदेव जी के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी, सन्त के रूप में इस धरती पर आये हुए, सतपुरुष के तदरूप, नाम का दान देने वाले धरती पर प्रकट सन्त, वक़्त के पूरे समरथ सन्त सतगुरु, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने जन्माष्टमी के अवसर पर 7 सितम्बर 2023 को प्रात: पीतमपुर, इंदौर में दिए दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि जब पिता के आदेश का पालन किया जाता है जो सन्त के रूप में इस धरती पर आते हैं, जो सतपुरुष के तदरूप होते हैं तो काल भगवान भी खुश होकर दे दिया करते हैं।

दुविधा में दोनों गए- माया मिली न राम। बहुत से लोगों को न वो राम मिल रहे जिन्होंने इस दुनिया को बनाया और न ये दुनिया की चीजें मिल रही। इसका कारण है कि तरीका नहीं पता क्योंकि सतसंग नहीं मिलता है। आज कृष्ण जन्माष्टमी के महत्वपूर्ण अवसर पर आप लोगों का सतसंग के माध्यम से दर्शन हो रहा है, यह उसे प्रभु की बड़ी कृपा है। काल भगवान का ही यह सब कुछ बनाया हुआ है। काल लोक से काफी लोग आए। कृष्ण कौन थे? द्वापर के वक्त के महापुरुष थे। कृष्ण वहां से आए थे जहां से वेद की उत्पत्ति हुई थी। वेद त्रिकुटी के पास से आया था। ब्रह्म की आवाज ब्रह्मा जी को सुनाई पड़ी थी। और ब्रह्मा को काल/निरंजन भगवान का आदेश हुआ था कि तुम मृत्यु लोक में मनुष्य शरीर में जो ऋषि मुनि हैं, उनको सुना दो। तो उनको सुनाया गया। उस वक्त पर जो आयतें, आवाज़ उतरी थी वह शुद्ध संस्कृत भाषा में थी। जब वह धीरे-धीरे लोगों को समझ में कम आने लगी तो इसको सरल किया। कृष्ण भगवान ने बहुत कुछ लोगों को सरल करके समझाया। उनके अंदर काल और दयाल दोनों धार थी। इसी तरह से राम भगवान में भी थी।

काल रूप तिनकर मैं भ्राता, शुभ और अशुभ कर्म फल दाता। दयाल उनको कहते हैं, जिनके अंदर केवल पूरा दया भाव ही रहता है। महापुरुष कई तरह के होते हैं जैसे गुरु कई तरह के होते हैं। शब्द के पारखी गुरु कीमती होते हैं। ऐसे गुरु को, ऐसे महापुरुष को खोजना चाहिए। कृष्ण काल रूप तो थे लेकिन उनके अंदर दया भाव भी था। उन्होंने कौरवों को खूब समझाया कि पांडवों का हक दे दो नहीं तो भारी नुकसान होगा। महापुरुषों का काम ही समझाने का होता है। अब तो उपदेश समझने वालों में ही गलत आदतें आ गई तो कैसे समझाएं। उदाहरण के लिए जो खुद नशेडी हो, वह उपदेशक, कथा वाचक, सतसंग करने वाला आदि दूसरों को नशे से दूर रहने के लिए कैसे कहे? तो उनके उपदेशों को बदल दिया लोगों ने और आसन इस तरह से कर दिया की जन्माष्टमी मना लो, राम विवाह, रासलीला, रामलीला आदि मना लो, जगह-जगह मंदिर बना दो, फूल-पत्ती चढ़ा दो तो आसान हो गया लेकिन उनके उपदेश को बताने की जरूरत है, उन्होंने जनहित के लिए क्या-क्या काम किया, कितना त्याग किया, यह बताने की जरूरत है कि हम उनके वंशज हैं, हमको उनका अनुकरण करना चाहिए, उनके बताए हुए रास्ते पर हम चलेंगे, उनका बताया हुआ अच्छा काम हम करेंगे।

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जब जीवात्मा अपनी गांठों से निकलेगी तब असली ख़ुशी होगी। जैसी प्रीत कुटुंब से वैसी गुरु से होए, कहे कबीर ता दास का पल्ला न पकड़े कोय। अगर गुरु से परिवार जितना प्रेम कर लो तो कोई आपका पल्ला/दामन पकड़ कर आपको कब्जे में नहीं कर सकता। सन्त कभी भी हिम्मत नहीं हारे। गुरु महाराज बाबा जयगुरुदेव जी ने बहुत मेहनत संघर्ष किया और परिणाम है की आज आपको कुछ सुनने समझने करने को मिल रहा है, रास्ता, उपाय (नामदान) बताया जा रहा है। महाराज जी ने सृष्टि की उत्पत्ति, नाम, नामदान की महिमा आदि के बारे में बताया और ये जन्माष्टमी का भव्य कार्यक्रम बहुत ही बढ़िया तरीके से सम्पन्न हुआ।

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