धर्म कर्म: इस समय के युगपुरुष, पूरे समरथ सन्त सतगुरु, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि संस्कृत भाषा शुरू में थी। एक ही धर्म था- मानव धर्म। अब तो बहुत हो गए। बहुत भाषाएं, जातियां, धर्म बन गए। एक-दूसरे को पिछाड़ने, नीचा दिखाने के लिए, मान सम्मान, इज्जत के लिए लोग मर मिट रहे हैं, खूब हल्ला, तोड़फोड़ कर रहे हैं, जान तक भी दे रहे हैं। यह अज्ञानता नहीं तो और क्या है। यह अज्ञानता है। न जानकारी में ऐसा हो रहा है। नहीं करना चाहिए। तो उस समय पर संस्कृत भाषा थी। लिख दिया। फिर उसी का पुराण, शास्त्र बन गए। फिर जब सन्त आये तो उन्हीं चीजों को अपनी किताबों में लिख दिया। सारा संविधान बना हुआ है मनुष्य के जीने का, रहने, खाने, गृहस्थाश्रम का धर्म, राजधर्म आदि सब उसमें लिखा हुआ है। अब कोई पढ़, समझ नहीं पाता है। कोई पढ़ाने समझाने वाला नहीं मिलता है तो लोग भटक रहे हैं। तो उसने कर्मों का विधान बना दिया।

दूसरे की मदद करना परोपकार कहलाता है

सन्तमत की प्रार्थना करनी चाहिए। किताब छपी हुई है। यदि आपके पास नहीं है तो जिनके पास है उसमें से लिख लो और जिनके पास प्रार्थना की किताबें हैं, उनको लिखा दो। जो नहीं पढ़ पा रहे हैं, उनको आप रटा दो, याद करा दो। यह आपकी एक ड्यूटी बनती है। सुमिरन ध्यान भजन कराना, सतसंगियों को प्रेरणा देकर, ला करके संतसग सुनवाना, यह आप पुराने लोगों का फर्ज बनता है। परोपकार इसी को कहते हैं। दूसरे की मदद करना परोपकार कहलाता है। आप लोग तो सतसंग में (स्वयं) चले आते हो, दूसरे को लाते नहीं हो। आप तो सुमिरन ध्यान भजन कर लेते हो लेकिन दूसरों को करवाते समझाते नहीं हो। अरे अपना काम बने, आपन कुशल कुशल है जग माही, दूसरे कुशल होय चाहे नाही। तो वह (केवल अपना स्वार्थ देखना) परोपकार नहीं माना जाएगा।

दूसरों की भलाई करने का फल आपको मिल जाएगा

मनुष्य ही परोपकार कर सकता है। तो थोड़ा परोपकार करो। इनको प्रार्थना याद कराओ, प्रार्थना लिखकर दो, सुमिरन ध्यान भजन समझाओ। नए लोगों को समझाओ, प्रेरणा दो। बुराइयां छुड़वाओ, सतसंग में लाओ, नामदान दिलाओ, भजन कराओ। यह पुराने प्रमियों का काम बनता है। दूसरे की भलाई आप कर दोगे तो आपको फल मिल जाएगा। बीमा एजेंट के कमिशन की तरह।

लिख समझ नहीं पाते हो, लिख कर के गए उसे मानते नहीं हो

महाराज जी ने लखनऊ (उ.प्र.) में बताया कि त्रेता में भी यह था कि जो इच्छा किन्हीं मनमाही, हरि प्रताप कछु दुर्लभ नाही। जिस चीज की इच्छा आदमी करता था उसकी वह इच्छा पूरी होती थी। आप यह समझो इतिहास भरा पड़ा हुआ है। मानस में होने वाले राम के चरित्र का वर्णन किया, उसको जो लिखा है, उसको समझ नहीं पाते हो। जो लिख कर के गए, उसको आप मानते नहीं हो। राम ने जो त्याग किया, पिता के आदेश का पालन किया, राजगद्दी पर ठोकर मारा, जंगलों में गए, प्रजा का इतना ध्यान रखा।

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