धर्म-कर्म : निजधामवासी बाबा जयगुरुदेव जी के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी, सदैव अपने गुरु की ओट में, उनके आदेश में रहने वाले, सारी दुनिया के धन से भी जो न खरीदा जा सके वो नामदान फ्री में लुटाने वाले युगपुरुष, पूरे समरथ सन्त सतगुरु, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकांत जी महाराज ने बताया कि, गुरु महाराज ने गुरु का ऐसा नाम जगाया, ऐसे नाम के आगे जय लगाया जो सतयुग में था, जिसके जाप से सतयुग में उद्धार होता था, गुरु की पूजा होती थी, गुरु को ही सब कुछ मानते थे, उस गुरु नाम को जगाया। बाबा जी ने बताया की, गुरु के आगे देव लगाया, देव यानी जो देने वाला होता है।
यह सन्तमत की परंपरा है :
महाराज जी ने बताया कि यह परंपरा रही है कि (सन्त) जाने से पहले किसी न किसी को अपना काम सौंप कर जाते हैं। गुरु महाराज के पास जब (मैं) आया था तब कुछ नहीं जानता था। एकदम गांव का आदमी था। पढ़ करके कॉलेज छोड़ा ही था कि गुरु महाराज मिल गए और गुरु महाराज ने सब सिखाया, बताया। गुरु भक्ति, गुरु के आदेश का पालन, इस शरीर से ज्यादा से ज्यादा कर सकूं इसीलिए गृहस्थी का कोई जंजाल नहीं पाला, न शादी की, न बच्चे पैदा किए, ना कोई कारखाना खोला, न कोई जमीन-जायदाद खरीदा, कुछ नहीं किया। आप को समझने की जरूरत है प्रेमियों अभी जो कुछ मै कर रहा हूं, जमीन-जायदाद, आश्रम या गुरु महाराज का जो मंदिर (बावल में) बनवा रहा हूँ वो सब आप लोगों के लिए, आपके बच्चों के भविष्य के लिए ही है। तुम्हारे बच्चे, मेरे बच्चे की तरह हैं। हमेशा अपने को दीन हीन ही समझता हूं, मैं तो गुरु महाराज के चरणों की धूल (रज) भी नहीं हूं।