धर्म-कर्म : भाव से प्रार्थना करने पर खुश होकर गलतियों को माफ़ करके अंतर में उजाला करने वाले, परमात्मा के द्वारा भेजे गए, उपरी लोकों के निजी अनुभव का इशारों में वर्णन करने वाले युगपुरुष, पूरे समरथ सन्त सतगुरु, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकांत जी महाराज ने बताया कि भाव से गलतियों की माफ़ी बार-बार मांगी जाए, अंतर साधना की जाए, गुरु से प्रार्थना की जाए, उन्ही का ध्यान किया जाए तो गुरु खुश होकर आँख बंद करने पर अंतर में उजाला प्रकट कर देते हैं।
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महाराज जी ने कहा की, अंतर साधना में गुरु सबकी पहचान करा देते हैं। मदद करने को परोपकार और परमपिता को, परमधाम को प्राप्त कर लेना परमार्थ कहलाता है। बाबा जी ने आगे कहा की, जीवन का समय पूरा हो जाने पर कहीं भी भागकर जाओ, मौत से बच नहीं सकते हो, अंत सांय में दुनिया का कोई ज्ञान काम नहीं आयेगा। तुम्हे हर जगह हर किसी से धोखा मिलेगा, तुम्हारे अपने भी तुम्हारा साथ छोड़कर चले जाएंगे। लेकिन उस समय में भी तुम्हे गुरु का साथ मिलेगा, जीवन में सब जगह धोखा खा सकते हो पर गुरु के चरणों में नहीं। जीवात्मा का कल्याण गुरु से ही होता है।