धर्म-कर्म: शरीर से जान-अनजान में बन चुके गलत कर्मों की सजा से बचने का तरीका बताने वाले, युगपुरुष, पूरे समरथ सन्त सतगुरु, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकांत जी महाराज ने बताया कि, जब सेवा में लगेंगे तब कर्म कटेंगे। ध्यान भजन में मन न लगे, प्रभु याद न आवे तो देखो और समझने की कोशिश करो की, मन कहां, किस तरफ जा रहा है? क्योंकि इन्ही अंगों से पाप कर्म बन जाते हैं। अब उनको काटने, क्षमा पाने के लिए सेवा करनी होगी। शरीर में बहुत तरह के अंग हैं और बहुत तरह से पाप बनता है। हाथ से छूने से, पैर से चलने से, देखने, सुनने से पाप का नशा चढ़ जाता है। सारा शरीर अगर सेवा में लगा दिया जाए तो सब कर्म कटेंगे, सब पाप क्षमा होंगे। आप कहोगे रोज बाबा जी का कार्यक्रम तो होगा नहीं, रोज तो भंडारा चलेगा नहीं, रोज टेंट लगाना नहीं रहेगा, सफाई करनी नहीं रहेगी। तो रोज का काम तो रहता ही है। क्या? कहते हैं, भटके हुए को रास्ता बताना पुण्य का काम होता है।

महापुरुषों की बात गलत नहीं होती:- 

महाराज जी ने कहा की, कर्म अगर अच्छे बन जाए तो अच्छा समय देख लेंगे क्योंकि यह परिवर्तनशील संसार है। यहां बदलाव होता रहता है। देखो दिन है फिर रात आ जाएगी। सुबह के बाद दोपहर होगा, फिर शाम होगी। यहां तारीख, महीना, क्षण-क्षण बदलाव होता रहता है। ऐसे ही यह सतयुग, त्रेता, द्वापर युग आते रहते हैं। कलयुग में सतयुग आने की बात है। गुरु महाराज बराबर कहा करते थे, कलयुग में कलयुग जाएगा, कलयुग में सतयुग आएगा। महापुरुष की, महात्मा की बात गलत नहीं हो सकती। यह सत्य है। लेकिन (आने वाले सतयुग को) देखेगा कौन? जो सतयुग के लायक बन जाएगा, जो शाकाहारी नशा मुक्त होगा, वह देखेगा। ब्रह्म में विचरण करने वाला (यानी ब्रह्मचारी) सतयुग को देखेगा। इसीलिए प्रचार करो, शाकाहारी नशा मुक्त बनाओ। हाथ जोड़कर विनय हमारी, तजो नशा बनो शाकाहारी। छोड़ो व्यभिचार, बनो ब्रह्मचारी, सतयुग लाने की करो तैयारी।

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