धर्म-कर्म: दया की बरसात करने वाले, विरोध से न घबराने वाले, अपने भक्तों को हर तरह से बचाने के लिए तैयार, इस समय के महापुरुष, पूरे समरथ सन्त सतगुरु, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकांत जी महाराज ने बताया कि, मरीज का वही चीज खाने का करता है जो उसे नुक्सान पहुंचा सकती है। जैसे शुगर का मरीज मीठा ही मांगता है। बुखार हुआ, बदन में गर्मी आई तो लोग आइसक्रीम, श्रीखंड, छाछ ही मांगेगा। अब यदि वैद्य ने उसको बता दिया कि हां ले लो, कोई बात नहीं है तो समझ लो शरीर का नाश हो जाएगा। गुरु अगर सही रास्ता न बतावे, सही उपदेश न दे लोगों को तो धर्म-कर्म सब नष्ट हो जाएगा।

सन्त किसी का बुरा नहीं चाहते हैं:-

महाराज जी ने बताया कि, सन्त जब आते हैं तो उनकी महिमा आसानी से लोगों को पता नहीं चलती है। कोई भी नहीं बता सकता कि, इनके अंदर पावर-शक्ति है या नहीं। इन संतो के हाथों हमारा कितना फायदा होगी, इसका पता नहीं चलता है। कहते हैं युक्ति से मुक्ति मिलती है। ठीक उसी तरह जब ये परेशानियों से निकलने की युक्ति बताते हैं तब जाकर इनकी शक्ति मालूम होती है। सन्त रहते मनुष्य शरीर में ही है। मां के पेट में बनते, पलते, बाहर निकलते हैं, इस धरती पर घूमते हैं, आसमान के नीचे रहते हैं। इनका जीवन साधारण होता है। बहुत दिखावे का नहीं, कोई अहंकार नहीं, छोटापन रहता है। सबके सामने लघुता का उदाहरण पेश करते हैं। जो हो सकता है मदद ही करते हैं। बुराई किसी की नहीं चाहते हैं। तो धीरे-धीरे जब लोग उनके नजदीक जाते हैं और लोगों को उनकी दया का अनुभव हो जाता है तो वही लोग उनको मानने, उनके बारे में अन्य लोगों को बताने लग जाते हैं। सन्त सत्संग सुनाते हैं और दर्शन का लाभ देते हैं, दृष्टि डालकर के, स्पर्श करके दया बरसाते हैं। इस तरह से लोगों के अंदर पहले विश्वास भरते हैं।

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