धर्म-कर्म : इस समय के महापुरुष, पूरे सन्त बाबा उमाकांत जी महाराज ने बताया कि, जब शक्ति बढ़ती है तब अंदर की दौलत मिलती है। अंदर की ताकत जब आती है तो उस समय पर देवी और देवता भी घबराने लगते हैं कि कहीं ऐसा न हो कि ये हमारा स्थान ले ले। इनका स्थान निश्चित नहीं होता है। इनका समय होता है। कोई जल्दी गद्दी नहीं छोड़ना चाहता है। चाहे इस धरती की गद्दी हो, चाहे ऊपरी लोकों के धनियों की गद्दी हो।

परमात्मा मिलने में कितनी देर लगती है:- 

महाराज जी ने बताया कि बुल्लाशाह एक सन्त (फकीर) थे, एक दिन वह खेत मे रोपाई कर रहे थे। तब एक आदमी ने पूछा कि आप कहते हो परमात्मा मिलता है। बहुत कम समय में ही खुदा का दीदार हो जाता है। कितना देर लगता है? उन्होंने एक पौधा उखाड़ा और दूसरी तरफ लगा दिया, कहा इतनी देर में। उसने पूछा इसके लिए क्या करना पड़ेगा? बुल्लाशाह ने कहा तड़प पैदा करना पड़ेगा। उस मालिक से मिलने की इच्छा जतानी पड़ेगी। इधर दुनिया की चीजों से थोड़ी देर के लिए इच्छा खत्म करना, दुनिया को भूलना पड़ेगा। यहां तक कि शरीर को भी भूलना पड़ेगा कि हमारा शरीर है और यह यहां पर बैठा हुआ है। अगर शरीर याद रहा तो मन शरीर की तरफ ही ले आएगा। गर्मी-ठंडी का अहसास करा देगा और कहेगा उठ जाओ अब। क्योंकि यह काल और माया का एजेंट वकील और उनका अंश है।

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इसलिए शरीर को भी भूल जाओ और बस केवल एक को याद करो और तड़प के साथ उसको पुकारो। कबीर साहब ने कहा है- हँस हँस कंत न पाइया, जिन पाया तिन रोय, हंसी खेले पिया मिले तो कौन दुहागिन होए। अगर हंसी खेल में वो परमात्मा मिल जाए तो कीमत क्या बढ़ेगी। लेकिन जो उसके लिए रोया, उसका इतिहास बना। जिसने दो आंसू बहाया, उसके लिए वह दौड़ कर के आया। अंदर से आंसू निकलेंगे तो मदद होगी।

 

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