धर्म-कर्म : पूरे समरथ सन्त सतगुरु, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकांत जी महाराज ने बताया कि, अपने अंदर मन मुखता नहीं गुरु मुखता लाओ। जब इस माया से आपका ध्यान हट कर प्रभु भक्ति की तरफ चला जाएगा तो दिव्य आवाज आपको पकड़कर-खींच करके ऊपर की तरफ ले जाएगी। फिर अंधेरा खत्म हो जाएगा। हर तरफ उजाला ही उजाला होगा। परम प्रकाश रूप दिन राती, नहीं कछु चाहिए दिया घृत भांति। वहां तो दिया चिराग की कोई जरूरत ही नहीं है। बाबा जी ने कहा कि, सोते समय यह शरीर जड़ रहता है, हिल-डुल नहीं सकता है। एक जगह से दूसरी जगह आ जा नहीं सकता, इसमे जड़ता आ जाती है। लेकिन, जब जागृति आ गई, जीवात्मा की ताकत, प्रकाश जब इस शरीर में आ गया, तब चेतनता आ जाती है। लेकिन परमानेंट स्थाई चेतनता नहीं आती है। जब तक वह चेतनता नहीं आएगी तब तक निश्चित नहीं होगा कि शरीर छूटने के बाद आपको मुक्ति मोक्ष मिल जाएगा, आप अपने वतन मालिक के पास पहुंच जाओगे, उसमें समा जाओगे इसकी कोई गारंटी नहीं है।

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लेकिन अगर आपमें संस्कार आ गए, आप ध्यान भजन, आदेश का पालन, गुरु भक्ति करेने लगे और गुरु की दया आप पर हो गई तो आपको मुक्ति जरूर मिल जाएगी। कहते हैं- युक्ति से मुक्ति मिलती है, इस जीवात्मा को मुक्ति तभी मिलेगी जब आप मन मुखता को छोड़ कर, गुरु मुखता अपने अंदर लाओगे। जो लोग साधना मन को रोक करके करते हैं, उनके अंदर रिद्धि-सिद्धि, कामधेनु, कल्पवृक्ष, अणुमा, महिमा, गरीमा, लघुमा आदि सिद्धियाँ आ जाती है। लेकिन, यह सिद्धियां-शक्तियां मन मुखता और अंहकार को खत्म नहीं कर पाती है। जब जीवात्मा ऊपर की तरफ निकलती है तब यह सिद्धियां शरीर में आती है और कुछ दिन इसमें रुक जाती है, लेकिन कुछ समय बाद अपने आप खत्म हो जाती है। जिसके बाद एक बार फिर मन जीवात्मा से अपराध और पाप कराने लग जाता है। इसलिए मन मुखता नहीं गुरु मुखता होनी चाहिए।

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