धर्म कर्म: इस समय के युगपुरुष, पूरे समरथ सन्त सतगुरु, त्रिकालदर्शी, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने बताया कि भजनानंदी, सतसंग सुनने वाला, गुरु के पास जाने वाला, गुरु की बातों को सुनने-समझने वाला कढ़ जाता है। आप जो बराबर गुरु महाराज का सतसंग सुनते रहे, उनके जाने के बाद जो आप बराबर सतसंग में आते रहे, कम पढ़े-लिखे हो तो भी आप कढ़े जैसा, पढ़े जैसा काम कर सकते हो क्योंकि आप कढ़ गए हो। बहुत सी बातें, आपको याद हो गई। उन्हीं बातों को लोगों को बताते-समझते रहो। जहां खाली बैठो, वहीं बताते रहो तो भी लोगों का मन बदल जाएगा। दुनियादारों का मन अगर इधर नहीं भी लगा क्योंकि इस साधना, मत को लोग जल्दी समझ नहीं पाएंगे तो कम से कम बुराइयों से तो अलग हो जाएंगे। आगे जो कुदरत की मार पड़ने वाली है, सोटा डंडा जो पड़ने वाला है, उससे तो बच जाएंगे। यह जो नई-नई बीमारियां आ रही हैं, जो आंधी-तूफान, आगजनी, डकैती, लूट-खसोट बढ़ने वाली है, मार-काट होने वाला है, इससे तो लोग बच जाएंगे। बराबर यहां सतसंग कार्यक्रम से जाने के बाद 24 घंटे में से थोड़ा समय इस परमार्थी काम में आप लगाओ।

सतसंग की बातें बताते-समझते रहोगे तो आपका और इनका, दोनों का काम हो जाएगा

यह जो बेचारे पूरा सतसंग नहीं सुन पाते हैं, बहुत सी बातें जल्दबाजी में बता दी जाती हैं, भूल जाते हैं। और जो आप समझ जाते हो, आपको जानकारी हो जाती है, इनको बराबर बताते-समझाते रहो जिससे आपके मददगार बन जाएं। इनका भी और आपका भी काम हो जाएगा। हंसते-खेलते जिंदगी पूरी हो जाएगी। नहीं तो रोते-रोते पैदा हुए, रोते-रोते पढ़ने के लिए गए, रोते-रोते नौकरी काम कर रहे हैं। पूछो सेठ क्या हाल है? बोलेगा हाल तो बेहाल है, किसी तरह रोटी-दाल चल रही है। पूछो दफ्तर के कर्मचारियों से, क्या हाल हैं? क्या बताऊं, बड़ी परेशानी है, जीना मुश्किल हो रहा है। रोते-रोते ही जिंदगी बीती जा रही है। जिसके पास नहीं है वह तो रो ही रहा है, जिसके पास है वह और ज्यादा रो रहा है। रोते-रोते जिंदगी ऐसे खत्म हो जाएगी।

क्या करने से इस दु:ख के संसार में फिर आना नहीं पड़ेगा

लेकिन यह जो उपाय फार्मूला बताया जा रहा है, इसको अगर जान लोगे, अपना लोगे तो हंसते-खेलते ही जिंदगानी निकल जाएगी। जो यह बताया गया सुरत शब्द योग की साधना, यह सुमिरन ध्यान भजन कराया गया, इसको अगर बराबर करते रहोगे तो अब दु:ख के संसार में प्रेमियो! फिर आना नहीं पड़ेगा। जिस दिन आंख से दो बूंद आंसू निकला, उसी दिन दयालु दया कर देगा। अब यह कोई जरूरी नहीं है कि सबकी दिव्य दृष्टि ही खुल जाए, निकल जाओ। लेकिन लगा रहना अच्छा होता है।

दरबार की हाजिरी जरूरी होती है

कहा गया है- पड़ा रहे दरबार में, धक्का धनी का खाय, कभी तो गरीब नवाजे जो दर छोड़ न जाय। दर को मत छोड़ना। पता नहीं कब दया हो जाए, कब उस प्रभु की कृपा हो जाए, कब आपके भाव जग जाए, उसको पाने, उसके दर्शन के लिए आंख से दो बूंद आंसू कब निकल जाएं और इस पर वह रीझ जाए। धन दौलत रुपया पैसे से नहीं होगा। उसके पास क्या कमी है? देने वाला जिससे आप मांगते हो, उसको आप कैसे खुश करोगे? रुपया पैसे से खुश नहीं हो सकता है। यह धन-संपत्ति मान-सम्मान किसकी दी हुई है? गुरु की दी हुई है। गुरु महाराज की दया से हमको-आपको मिला है। यह उनकी दया से मिला है। हम यह चीज उनको दे करके कैसे खुश कर सकते हैं? हम तो दो आंसू उनके लिए, उन्हीं को पाने के लिए, आंसू बहा करके उनको पा सकते हैं। जिस दिन आंख से दो बूंद आंसू निकला, उसी दिन से दयालु हो जाएगा, दया कर देगा इसलिए घाट मत छोड़ना।

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