धर्म कर्म; निजधामवासी बाबा जयगुरुदेव जी के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी, बड़ी चीज दे सकने में सक्षम, सर्वव्यापी, परमार्थ के लिए आये हुए इस समय के पूरे समरथ सन्त सतगुरु, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त महाराज जी ने अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि गुरु महाराज ने बताया कि मैं एक बार कोलकाता गया था। तो ठहरने के स्थान के पास पार्क में बेंच पर जाकर बैठ गया। वहां एक आदमी घास काट रहा था। घास जब उसने काट लिया, बोझा बांध दिया, पसीने से तर हो गया था। पेड़ के नीचे छाया में बैठ गया और अपने गमछे (कपड़े) से हवा करने लगा। हवा करते-करते उसको नींद आने लगी। तो उसी अंगोझे को बिछाकर हाथ रख कर बड़ी गहरी नींद में सो गया। तब तक एक सेठ आया और जहाँ गुरु महाराज बैठे थे, उसी बेंच पर बैठा। सेठ, गुरु महाराज को पहचान नहीं पाया और बोला ये कितनी गहरी मस्ती की नींद में सो रहा है, हम लोगों को तो नींद आती ही नहीं है। कभी-कभी तो नींद की गोली खानी पड़ती है। गुरु महाराज कुछ नहीं बोले। तब तक वह (घास काटने वाला) नींद ले चुका था। उठा, लगा अगोछा बांधने, बोझा सिर पर उठाने, तब गुरु महाराज ने उसको बुलाया, आया। पूछा कि घास का क्या करोगे? कहा, ले जाएंगे, बेचेंगे और आटा दाल खरीदेगे, बच्चों को खिलाएंगे, परवरिश करेंगे। तो पूछा यह बताओ सुखी कौन है? उसने कहा सुखी तो वह है जो अच्छा कपड़ा पहनते, अच्छे घर में रहते, अच्छा खाना खाते, अच्छी गाड़ी घोड़े पर चलते हैं, सुखी तो वह है। फिर गुरु महाराज ने सेठ जी से पूछा आप बताओ सुखी कौन है? आप सुखी हो या यह घास काटने वाला सुखी है? घास काटने वाले को तो इशारा कर दिया, वह चला गया। तब गुरु महाराज अपनी पगड़ी सिर पर रख लिए तो सेठ पहचान गया, कहा क्या आप ही बाबा जयगुरुदेव हो? बोले हां। तो बोला, महाराज कुछ उपदेश करो, कुछ बताओ। बोले, नानक दुखिया सब संसार। यह देखो, दुखों का ही संसार है। यहां कोई सुखी नहीं है। जिसके पास है, वह भी रो रहा है और जिसके पास नहीं है, वह तो रो ही रहा है। यहां तो सुख नाम की चीज नहीं है। सुख को ही तो उसने खत्म कर दिया। विषयों में क्षणिक सुख है। क्षणिक सुख में सुख नहीं होता है। क्षणिक आंनद, आनंद नहीं होता है। वह तो सपने की तरह से होता है। यह दुनिया ही स्वपनवत है। कहा गया है- सत्य हरि भजन, जगत सब सपना। सत्य क्या है? हर किसी के लिये प्रभु का भजन।
दुनिया के झकोले से बचे रहोगे
जो बड़ी चीज दे सकता है, उससे छोटी चीज क्यों मांगते हो? ऐसे ही अंतर में यह प्रार्थना करनी चाहिए कि हम आपको मांगते हैं। आप हमको अपना लो। आप हमारे हृदय में बसे रहो। आप हमारे मस्तक पर हमेशा सवार रहो। तो जब गुरु सामने रहेंगे तो हर तरफ से बचे रहेंगे। देखो प्रेमियों! अगर यही भाव आप ले आओ कि हम जो करते हैं, उसको हमारे अंतर्यामी गुरु, जो शब्द रूप में हमारे अंदर में बसे हुए हैं, वह सब देखते हैं, जो हम बोलते हैं, वह सब सुनते हैं, जो करते हैं, वह सब देखते हैं- यही अगर भाव बना रहे तो आप दुनिया के झकोले से बचे रहोगे। जैसे देखो, लू चलती है, कोई जानकार बता दिया, कान गले में कपडा लपेटे रहो तो लू का असर नहीं आएगा। ठंडी के समय में हवा जब चलेगी तब गले, कान को ढके रखोगे, जहां से ठंडी का असर अंदर प्रवेश होता है, तो ठंडी का असर नहीं होगा। ऐसे ही जब यह बराबर याद रहेगा तब आप तकलीफों से बचे रहोगे।
राज द्वारे साध जन, तीन चीज को जाए, क्या माया, क्या मीठा क्या मान
राजाओं के यहां ऋषि, मुनि या सिद्ध पुरुष क्यों जाता था? अच्छा खाना, सम्मान और जाते समय दक्षिणा मिलती थी। तो सन्तों को तो किसी चीज की जरूरत नहीं रहती है। यह तो कुछ पा भी जाते हैं। कोई इनको दे देता है तो उन्हीं के लिए खर्च कर देते हैं। ऐसा काम कर देते हैं कि उनके काम आवे। आगे चलकर के उनके बाल-बच्चों के काम आवे, ऐसा काम करते हैं। क्योंकि परमार्थ के कारने संतन धरा शरीर, वृक्ष कबहूँ न फल भके, नदी न संचय नीर। जैसे पेड़ अपना फल स्वयं नहीं खाता, नदी अपना पानी स्वयं नहीं पीती, ऐसे ही यह सन्त हुआ करते हैं। यह दूसरों के लिए, परमार्थ के लिए ही आया करते हैं।