धर्म कर्म: निरंतर देश-विदेश में घूम-घूम कर जयगुरुदेव नाम की अलख जगाने वाले, हाथ पकड़ने पर न छोड़ने वाले, पूरे समरथ सन्त सतगुरु, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त महाराज जी ने अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि महात्माओं का काम क्या होता है? चलते-फिरते रहना। उससे जीवों का बड़ा भला होता है। क्योंकि जो पूरे सन्त होते हैं, उनके स्पर्श का, दर्शन का भी लोगों को लाभ मिल जाता है। उनको रोटी खिलाने का, पानी पिलाने का लोगों को अवसर मिल जाता है। कर्म इससे कटते हैं। कर्मों का लेना-देना होता है वो चुकता है और परमार्थ का रास्ता भी मिल जाता है। रमता जोगी बहता पानी। रमता जोगी यानी साधु, महात्मा, जोगी, सन्यासी जब चलते रहते हैं तब इनमें कमी, दोष नहीं आता है। बहता पानी जब रुक जाता है तभी उसमें सड़न-गलन, बदबू, कीड़े-मकोड़े पैदा होते हैं। पानी का बहाव अगर होता रहता है, तो पानी में गंदगी नहीं आती है और वही बहता पानी, गंदे पानी को भी साफ कर दिया करता है। इसी तरह से जब सन्यासी चलते रहते हैं, लोगों की गंदगी धोते रहते हैं। सन्तों ने इस बात को कहा है- धोबिया वह मर जाएगा, चादर लीजिए धोये, चादर लीजिए धोये, भाई वो बहुत पुरानी, चल सतगुरु के घाट, बहे जहाँ निर्मल पानी। उनके अंदर निर्मल पानी (दया) की धार रहती है, वह सब कर्मों को साफ करती रहती है।

महात्मा प्रेम का सम्मान करते हैं

महात्मा के यहां तो सब समान होते हैं। महात्मा प्रेम का सम्मान करते हैं। प्रेमी को ज्यादा तवज्जो देते हैं। वो प्रेम के भूखे होते हैं। उनको तो धन की कोई भूख या किसी पर्सनालिटी, शरीर की भूख नहीं होती है। कहा गया है- सन्त न भूखा तेरे धन का, उनके तो धन है नाम रतन का। और अगर कोई झोली में डाल भी देता है तो, तेरे धन से कुछ काम करावे, भूखे-धूखे को खिलवावे। यानी वह जिसका होता है, उसी पर खर्च कर देते हैं। अक्सर यह देखा गया कि मान-प्रतिष्ठा धनी-मानी लोग सम्मान के भूखे होते हैं। लेकिन इतना सम्मान, उनको प्यार के साथ नहीं देते हैं कि वह तो फिर अपने अहंकार में चूर रहे, अहंकार में आ जाए।

भाव से ही भक्ति होती है

शिष्य तो हाथ पकड़ता, छोड़ता रहता है लेकिन गुरु जब हाथ पकड़ लेते हैं तब छोड़ते नहीं हैं। सतसंग में बहुत तरह के लोग आते हैं। जब इस तरह के सतसंग में नामदान लोगों को मिलता है, तो सबके भाव एक जैसे नहीं रहते हैं। तो जिसके जैसे भाव होते हैं, उस तरह से उससे प्रेम करते हैं। भाव से ही भक्ति होती है। समझ जाते हैं। गुरु क्या होते हैं? जब हाथ पकड लेते हैं कि इसको हम नहीं छोड़ेंगे और फिर उसको पार किया करते हैं। उंगली तो पकडते हैं, लेकिन जीव काल और माया के बाजार में भूल भ्रम में पड़ जाते हैं। फिर इसको (गुरु को) छोड़ देते हैं तब उनको भटकना पड़ता है। भटक करके, घूम करके फिर (वापस गुरु के पास) जीव आते हैं। जैसे बाप अपने बेटे को मेला घूमाने के लिए ले जाता है। बेटा, बाप की उंगली पकड़े रहता है। बाप घुमाता, दिखता है। बच्चे को कोई अच्छी चीज समझ में आ गई तो उसे उठाने लगता है, उंगली छूट जाती है और भीड़ में बाप-बेटा अलग हो जाते हैं। बेटा इधर-उधर खूब भटकता है, रोता है, तकलीफ झेलता है फिर जब खोजबीन होती है, तब वह मिलता है। अगर बाप का हाथ पकड़े रहेगा तो बाप मेला भी दिखाएगा, मिठाई भी खिलाएगा, सामान भी खरीद देगा, जो उसके हित फायदे का होगा, वह चीज उसको दिलाएगा और फिर वापस घर भी ले आएगा। कहने का मतलब ये कि जब समरथ गुरु का हाथ पकड़ते हैं तब गुरु उनको वहां (अपने निज घर) तक पहुंचा कर ही दम लेते हैं।

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