धर्मकर्म: निजधामवासी बाबा जयगुरुदेव जी के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी, जयगुरुदेव नाम ध्वनि के रूप में आत्म कल्याण को बहुत सरल करने वाले, पूरे सन्त, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने बताया कि, ये भ्रम और भूल का देश है तो इसमें आदमी भ्रम में पड़ ही जाता है। यहां सतसंग तो सुनता है, रहता है, भजन ध्यान सुमिरन भी करता है लेकिन यहां से जाने के बाद फिर भजन, ध्यान, सुमिरन, सेवा, सतसंग में आना-जाना भूल जाता है। तो इससे क्या होता है? सुनने से रिन्यू (याद) हो जाता है, आदत बन जाती है। तो नामदान सुनना, सुमिरन ध्यान भजन को बार-बार सुनना और समझना- ये फायदेमंद ही होता है। गुरु महाराज कहा करते थे कि अपने को हमेशा नया समझो। जब अपने को आदमी हमेशा नया समझता है तो सीखने की इच्छा रखता है। और जब ये सोच लेता है कि हम सब खूब जानते हैं तब नई चीज की जानकारी (इच्छा) उसकी नहीं रह जाती है। तमाम शोध (रिसर्च) चलते रहते हैं जैसे पहाड़ के पार जाने के लिए 6 घंटे के सफ़र का पगडण्डी रास्ता है और शोध करके नया छोटा 3 घंटे के सफ़र का रास्ता बना दिया तो जानकारी होने पर वोही सफर आसान हो जाए। ऐसे ही इस (अध्यात्मिक साधना की) क्रिया में भी सुधार लाया जाता है, इसमें भी सरल किया जाता है। पहले गुरु महाराज कहते थे कि तीन घंटा बैठकर के भजन करना पड़ेगा, वही लोग नामदान लें। इकरारनामा भरवाते थे। लेकिन वही गुरु महाराज जो पहले कमरे के अंदर से लोगों को निकाल देते थे की तुमको नामदान अभी नहीं मिलेगा, वही गुरु महाराज समय के अनुसार (खुले) मंच से नामदान देने लग गए। वही गुरु महाराज (भजन का) समय कम कर दिए। बहुत पहले एक नई जगह पर गुरु महाराज के एक कार्यक्रम में बच्चे, नौजवान नये लोग बहुत आए थे, बहुत से लोग खड़े-खड़े सतसंग सुने। गुरू महाराज बोले, तुम खड़े-खड़े ही कान में उंगली लगा लो, खड़े-खड़े ही आंख बंद कर लो। अभी तुम खाली आंख बंद करके 5 मिनट ध्यान लगाना कहना, या प्रभु हमको सद्बुद्धि दो तो तुमको सद्बुद्धि आ जाएगी। तुम अगर नामदान नहीं भी लेना चाहते हो, एकदम नई जगह थी, तो यही कहना कि प्रभु हमको सद्बुद्धि दो तो आसान किया। तो धीरे-धीरे धीरे ये सब आसान होता चला जा रहा है।

यह धरती सन्तों से कभी खाली नहीं रही है

इस धरती पर हमेशा सन्त रहे। सन्तों के बगैर ये धरती खाली नहीं रही और सन्तों ने उपदेश बराबर दिया है। जब जैसे जरूरत रही, उस तरह का उपदेश दिया। और वो पहले ही दूसरे को भेज देता है। वो ऐसे ही रहते हैं। कहां रहते हैं, किसी को खबर नहीं रहती है। लेकिन जब मौजूदा सन्तों के जाने का समय आ जाता है तब वो उनको खींच लेते हैं। ऐसे उनके संस्कार बनते हैं, ऐसा कारण बनता है कि उनके पास पहुंच जाते हैं और वो उनको वो इल्म दे देते हैं। तो ये चीज बराबर चली आ रही है। जब तक ये धरती रहेगी, ये कभी खत्म नहीं हुई और न खत्म होगी।

अभी प्रभु भजन करने का मौका दे रहा है

तो अब इनको अभी रहना है। इसलिए कि वो प्रभु, मनुष्यों को मौका दे रहा है। प्रभु, जिसके ये जीव हैं, यहां आ करके फंस गए हैं। तो उनको जीने का, रहने का, सुनने का, भजन करने-कराने का मौका, अपने भेजे हुए सन्तों के द्वारा वो प्रभु दे रहा है। तो प्रभु की मौज को यह टाल नहीं सकते हैं।

 

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