धर्म कर्म: अपनी आत्म कल्याण के लक्ष्य को सर्वोपरि बनाने की प्रेरणा देने वाले, जिनकी दया से किसी भी चीज कि कोई कमी नहीं रहती है ऐसे पूरे समर्थ सन्त सतगुरु, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि अगर इस मृत्यु लोक में चौरासी का लक्ष्य अगर बनाओगे तो फिर उसी में चला जाना पड़ेगा। अगर आप यह सोचोगे कि एक पैर इधर से उधर रख देने में मुक्ति मोक्ष मिलेगा और समर्थ गुरु हमको मिल गए हैं, पार कर देंगे, ऐसा अगर लक्ष्य बनाओगे तो पार हो जाओगे। गुरु की दया हो जाएगी तो किसी भी चीज की कोई कमी नहीं रहेगी। इस बात को दिल-दिमाग में जितने भी कार्यकर्ता हो, आप रख लो। आपको किसी बात का अहंकार है कि हम अपने बल बुद्धि विद्या पर आगे बढ़ेंगे तो यही सबसे बड़ा भ्रम और भूल है।
गुरु महाराज जी ने कितनों की गरीबी दूर की
देखो प्रेमियो! एक बार मनुष्य शरीर पाने का मौका आपको मिला है और शब्द भेदी गुरु मिल गए हैं। ग्रहस्थ आश्रम में रहकर ही शब्द को पकड़ करके सुख-शांति पाने का रास्ता, सरल साधना बता दिया गया है। ऐसा वातावरण बनाया जिसमें जो गरीब थे, उनकी गरीबी दूर हुई, ऐसा उपाय बता दिया जो परेशानियां में फंसे हुए थे, उनकी परेशानियां कम हो गई। जो उनसे दूर रहे, उनके लिए भी उन्होंने सोचा। महात्मा किसी एक के लिए नहीं, सबके लिए आते हैं।
कर्मों के अनुसार 14 वर्ष तक जंगलों में भटकना पड़ा
जब से इस दुनिया संसार में कर्मों का विधान बना तब से जीव फंस गया। कर्मों से कोई बचा नहीं। जो भी मनुष्य शरीर में रहा, उसको बराबर कर्मों की सजा मिलती रही। कर्मों की सजा की वजह से ही, जिनको आज भगवान मानते हैं लोग वो राम भगवान भी 14 वर्ष तक जंगल में रहे, इधर-उधर भटके। राम-सीता विवाह टालने का गुरुओं ने बहुत प्रयास किया लेकिन कर्म गति टारे नहीं टरे। आपको यही नहीं पता कि बुरा कर्म बन कैसे जाता है, जानकारी नहीं हो पाती है, आपको सतसंग, प्रेमी गुरु भक्त नहीं मिलते हैं, दुनियादारों में ही रहते हो। ऐसे प्रेमी अगर मिलते हैं तो उनकी बातों में आ जाते हो जो दुनियादारों से भी ज्यादा दुनियादार हैं, इसलिए आपको जानकारी नहीं हो पाती है कि क्या अच्छा है, क्या बुरा है। तब कर्मों की सजा मिलने लगती है। जबसे कर्म बने, तबसे जीव कर्म भोग में फंस गया। बच्चा रोता चिल्लाता है, गलती ही कर दिया। जब उसको तकलीफ होती है तो गुहार आवाज किससे लगाता है? पिता से। ऐसे ही प्रभु तक जब आवाज पहुंचती है तो किसी न किसी (सन्त) को अपनी ताकत देकर भेज दिया करते हैं। वह आता है, सबके हित का काम करता है।
इस समय 90% लोग दु:खी हैं
इस समय बहुत लोग दुखी हैं। गुरु महाराज जब मौजूद थे तब तो थोड़ा कम था। अब तो मैं जहां कहीं भी जाता हूं, दुखियारों की लाइन ही लगी रहती है। 90% लाइन अपनी समस्या कहने वालों की ही लाइन लगी रहती है। गुरु महाराज ने कहा- एके साधे सब सधे, सब साधे सब जाय। एक ऐसी अगर व्यवस्था बन जाए जिससे सब काम बन जाए तो वह रास्ता क्यों न निकाला जाए। जब धरती आसमान दुनिया बनी तब सबसे पहले सतयुग था। जल पृथ्वी अग्नि, आकाश आदि सब देवता खुश थे। समय पर जाड़ा गर्मी बरसात होती थी। किसान एक बार खेत को जोत करके बुवाई करके चले आते थे, 27 बार काटते थे। जब जरूरत पड़ती थी, बादल बरस जाते थे। कोई कोढ़ी अपाहिज लंगड़ा लूला नहीं होता था क्योंकि लोगों के कर्म अच्छे थे। जब कर्म अच्छे थे तो कर्मों की सजा नहीं मिलती थी।