धर्म-कर्म : चाहे सुनने में थोड़ा कड़क लगे लेकिन सत्य बोलकर सबका भला करने वाले, कूप मंडूक या लकीर के फ़क़ीर न बनने की बात समझाने वाले, गूढ़ रहस्यों से पर्दा उठाने वाले, आँखों देखी बात करने वाले, किताबों से आगे जाकर प्रैक्टिकल करवाने वाले, इस समय के पूरे समरथ सन्त सतगुरु, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने बताया कि, गीता रामायण वेद पढ़ते हैं। आजकल वेद न कोई पढ़ता, न कोई जानता है। लेकिन जो सरल भाषा में किताबें लिखी हुई है जैसे रामचरितमानस है लोग उसे पढ़ते हैं। लिखा तो गोस्वामी महाराज ने सबसे पहले घट रामायण। घट रामायण किसको कहते हैं? जो अंदर घट में होता रहता है। चौबीस घंटे जो दृश्य दिखाई पड़ता रहता है, मानस में जो राम का चरित्र हो रहा है, उन्होंने उसको लिखा। लेकिन उस समय उनका बड़ा विरोध हुआ। पहले के समय खान-पान, चाल-चलन, विचार-भावनाएं तो लोगों की बहुत अच्छी थी लेकिन सोच समझ उतनी नहीं थी। क्योंकि सतसंग मिलता नहीं था। सन्तों की, इतनी पहुंच वालों की कमी थी। इसलिए उनको हर चीज की जानकारी नहीं हो पाती थी, तो लोग लकीर के फकीर बने हुए थे। जब कोई ऊपर (के लोकों) की चीजों को, जो चीज यहां नहीं दिखाई पड़ती है, उसे जब बताने लगता है तो लोगों को विश्वास नहीं होता है और लोग उसको पागल कहने लगते हैं, बैर कर लेते हैं। जब बैर करने लग गए तो उन्होंने कहा, हम चले जाएं तो कितने लोगों को समझा पाएंगे? आज की तरह से मीडिया तो था नहीं कि तुरंत प्रचार हो जाए। तो उन्होंने सोचा इसको अब बंद कर दो, ऐसे ही रख दो और सरल भाषा में इनको किस्सा-कहानी सुना समझा करके बताओ।
राम चरित मानस के शुरुवाती भाग में बहलाने के लिए राम का किस्सा-कहानी लिखी और आखरी कांडों में आध्यात्मिक का वर्णन किया जिसे लोग समझ नहीं पाते:-
जैसे माताएं खिलौना, टॉफी देकर, किस्सा कहानी सुना कर बच्चों का मन उधर स्कूल जाने, गिनती पहाड़े में लगाती हैं, ऐसे ही समझ लो उन्होंने किस्सा कहानी बनाया। किसका? राम का, जो मर्यादा पुरुषोत्तम थे, उनके एक कहानी बनाई कि वहां पैदा हुए, गुरु के आश्रम पर पढ़ने के लिए गए, वहां से सीख कर आये, राजगद्दी पर ठोकर मार कर के जंगल में गए, फिर बंदर-भालू को इकट्ठा किया, फिर रावण का विनाश कर वापस अयोध्या आए। तो यह सब शुरू में उन्होंने किस्सा कहानी बनाया। है तो सब आदर्शआत्मक वो। यदि कोई राम के इतिहास को पढ़ कर के राम के अनुसार अगर चलने लग जाए तो हम तो उसको पक्का भक्त मानेंगे। राम के नाम पर कमाई करके, ठगी करके, धोखा देकर के जब लोग अपना स्वार्थ सिद्ध करने लगते हैं तब वो लोगों के लिए नुकसानदेह, जान का खतरा पैदा करने वाला, जानलेवा हो जाता है। लेकिन उनके आदर्शों पर चल करके उस तरह से काम किया जाए, कराया जाए तो अभी लाभ मिल जाएगा। इस तरह से उन्होंने किस्सा कहानी बनाकर के, लोगों का मन उधर लगा कर के फिर उन्होंने अपने आखिरी कांडों में अध्यात्म का वर्णन कर दिया। अब वह अध्यात्म सबको समझ में तो आता नहीं है।
जिसने खुद नहीं देखा वो क्या बताएगा, लोग किताबों में ही उलझे रह गए:-
जैसे अंधे को कहो कि देखो यह भगवान खड़े हैं तो उसको क्या दिखाई पड़ेगा? कहा है- अंधा गुरु और बहरा चेला, दोनों नर्क में ठेलम-ठेला। तो वह तो कभी कह ही नहीं सकता है कि भगवान को देखा जा सकता है। जैसे ठंडी में कई दिनों बाद धूप निकलीय, पक्षियों ने कहा क्या बढ़िया गर्मी बढ़िया धूप निकली है तो पास बैठा चमगादड़ बोला कहां है सूरज, हमको तो कहीं दिखाई नहीं पड़ रहा है। कुछ ने कहा अरे और किसी से पूछ लो। बोला हम अपने गुरु से पूछेंगे। गुरु के पास गया। पूछा गुरुजी सूरज निकला है? बोला बेवकूफ सूरज नाम की कोई चीज ही नहीं है। हमारे खानदान में किसी ने सूरज को नहीं देखा है। तो उसका गुरु कौन था? उल्लू। कहने का मतलब है कि जो खुद नहीं समझ पाता है, जिसने खुद ने उन चीजों को नहीं देखा (वो क्या बताएगा)। लिखा है- देखेउँ बहु ब्रह्मांड निकाया, अति विचित्र तहँ लोक अनेका। गोस्वामी जी ने सब देखा। (लेकिन अब जिसने) उस ब्रह्मांड को नहीं देखा, वहां के दृश्य नहीं देखे, वह क्या बताएगा? वह तो यही कहेगा कि यह कल्पना है, यह सही नहीं है। लोग किताबों में ही उलझे रह गए। सिख लोग कहते हैं कि ये ग्रन्थ ही गुरु है। उसे न समझ पाने की वजह से पढ़ते चले जा रहे हैं सोचते हैं कि कि इसी से हमारा उद्धार कल्याण हो जायेगा। ऐसे नहीं हो सकता है। उसमें तो लिखा है कि जब सन्त जगत में आवें तो उनको खोजो, उनके दर्शन और सेवा करो, चरणों में पड़े रहो, उनसे सीखो, उनकी दया दुआ लो, तब तुम्हारा उद्धार कल्याण होगा। तो धार्मिक भावना तो रहती है लेकिन न समझ पाने की वजह से भटकाव हो जाता है।