धर्म-कर्म: इस समय के पूरे समरथ सन्त सतगुरु, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने बताया कि इस समय पर बीमारियां घर-घर में दिखाई पड़ रही है। घर-घर में लड़ाई-झगड़ा, ईर्ष्या-द्वेष, रुपया-पैसा कमाते हैं बरकत नहीं होती है। अगर कोई चैलेंज कर दो तो यहीं (सतसंग में आई भारी भीड़ में से) बता भी सकता हूं, 10-20-50 को बता दूंगा कि उनके घर में रोज झगड़ा होता है, कोई न कोई बीमार ही रहता है, आए दिन घर में समस्याएं बनी रहती है। आपको सुख शांति का पहला पाठ यही बता दें कि जिनके-जिनके यहां भी तकलीफें हो, आप लोग जयगुरुदेव नाम की ध्वनी बोलना शुरू कर दो। पूरे परिवार को इकट्ठा करके बुलवाना शुरू कर दो, जो कर्मों की सजा भोग रहे हो, ये तकलीफें धीरे-धीरे दूर होती चली जाएगी और अगर शाकाहारी नशा मुक्त होकर के पूरा परिवार बोलोगे, बैठ करके करोगे तो जल्दी-जल्दी कर्म कट जाएंगे और ज्यादा फायदा दिख जाएगा।

ठंडी रोटी किसे कहते हैं:-

बहुत से लोग धन के पीछे ब्याह कर देते हैं, लड़के के स्वभाव, उसके बारे में अध्ययन नहीं करते हैं जबकि करना चाहिए। शादी हो गई। एक दिन मां कहीं जा रही थी, पुत्रवधू से कहा देख यह बड़ा मनुहार कराता है। कई बार कहना पड़ता है तब यह खाने जाता है। यह बड़ा नखरा करता है। तो तू इसको प्यार से समझा करके ले आना और जैसा मैं बनाकर खिलाती हूं, उसी तरह से खिला देना। तो पुत्रवधू ने वैसा ही किया, बनाई गरम-गरम रोटी, दो-तीन बार गई, वह नखरा करता हुआ आया, बैठा, थाली परोसा तब पुत्रवधू ने भी यही कहा- खा लो, ठंडी रोटी खा लो। तब बेटा बिगड़ा, कहा, मां भी गरम रोटी देती लेकिन कहती थी कि ठंडी रोटी खा ले। अब तू भी वही कहती है। मैं नहीं खाऊंगा। उठकर चला गया। बहुत हाथ-पैर जोड़ा, मनुहार किया, नहीं आया खाने। मां जब लौटकर आई, हाल-चाल पूछा, बोली वो नहीं खाए। बताया भी नहीं की क्यों नहीं खा रहे। तब मां बेटे से पूछी, क्यों नहीं खाया? बेटा बोला- जो तुम कहती हो, वह भी यही कहती है। तुम तो हमारी मां हो, वह हमारी औरत है। मां ने कहा, देख, मैं गरम खिला कर ठन्डे के लिए क्यों कहती हूं, सुन, तू बाप की कमाई खा रहा है तो वह है ठंडी रोटी। और तू खुद मेहनत करके पसीना बहा करके बदन में गर्मी पैदा करके लाता तो उसकी बनी रोटी के लिए कहती गरम रोटी खा लो बेटा। हृदय से अंदर से मैं बोलती कि यह लो खा लो। अभी तो मैं कर्तव्य का पालन कर रही हूं, तुमको मैं खिला रही हूं कि तुम मेरे बेटा हो। कितने भी बड़े उमर दराज हो लेकिन मेरे लिए तो छोटे ही रहोगे, वही बबलू, पप्पू ही रहोगे। तब उसको अकल आई। फिर वह मेहनत करने लगा। तो ठंडी रोटी खाने का ही लोग लक्ष्य बना लेते हैं तो उनके हाथ में क्या आता है यही कौड़ी-छदान (यानी जीवन व्यर्थ जाता है)।

दु:ख तकलीफ रहेगी तो भगवान भी अच्छे नहीं लगेंगे:-

तकलीफ दुःख जब तक रहेगा तब तक तो भगवान को भी लाकर खड़ा कर दिया जाए तो भगवान भी आपको अच्छे नहीं लगेंगे। कोई बीमार है और कहो देखो यह भगवान आए हैं, यह खड़े हैं, यह फोटो मूर्ति देखो, भगवान को याद करो। तब देखेगा, ऐसे आंख बंद कर लेगा। कहो राम-राम बोलो, भगवान का नाम लो तब आंख बंद करके बोलेगा राम-राम फिर आँख बंद कर देगा क्योंकि दुखी है, क्योंकि दु:ख में सुमिरन नहीं हो पता है, दु:ख में याद नहीं हो पता है। तो दुख दूर होना सबसे पहले जरूरी होता है। यह जयगुरुदेव नाम दु:खहर्ता नाम है। इसलिए जयगुरुदेव नाम बराबर बोलते रहना और याद रखना सब लोग। और जयगुरुदेव नामध्वनी बोलोगे तो उसका तो अलग ही फायदा दिखेगा। ऐसे ही चलते-फिरते, उठते-बैठते जयगुरुदेव नाम को आप सब लोग बोलते रहना।

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