धर्म कर्म: इस समय के पूरे समरथ सन्त सतगुरु दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि हमेशा इस धरती पर सन्त रहते हैं। सन्त कभी गुप्त रूप में रहते हैं तो कभी प्रकट रूप में रहते हैं। गुप्त रूप में जो संत उस समय की जो अवतरित शक्तियां होती है। उस समय के जो संत होते हैं। वह उनको पहचानते हैं। कहां है? कौन है? क्या है। (मुझे) गुरु महाराज के पास रहने का 40सों साल मौका मिला। जब गुरु महाराज के पास (मैं) पहुंचा था तब कुछ नहीं जानता था कि सन्तमत क्या होता है, गुरु क्या होता है। पढ़ाई-लिखाई कर रहा था उस समय पर तो बस वही दिखाई पड़ रहा था कि बढ़िया नौकरी, बढ़िया कोई काम मिल जाएगा, नाम हो जाएगा, काम कर लेंगे, पैसा कमा लेंगे, गृहस्थी बढ़ा लेंगे, यही सब दिमाग में रहता था, जो आमतौर से बच्चों के रहता है। लेकिन गुरु महाराज ने खींचा। गुरु सन्त अपने जीवों को खींचते हैं। वह समझते हैं, कौन, कैसा, क्या है। गुरु महाराज ने शरण दिया। बहुत कुछ सिखाया, पढ़ाया, अपने बच्चों की तरह से पाले-पोसे, तकलीफ हुई तो इलाज करवाया, खाने-पीने का ध्यान रखते थे कि खाया या नहीं खाया। इतना ध्यान रखा कि कोई अपने बच्चे का क्या ध्यान रखेगा। और जब गुरु के पास रहना सीख गया, गुरु की कुछ दया हुई तो चिट्टी लिख करके भेजते थे कि इनको उमाकान्त तिवारी को मैं भेज रहा हूं, समझ लो, मैं ही आ गया हूं। तो गुरु महाराज जब खाली बैठे थे तो बहुत सारी बात बताते रहते थे।
तो हम साथ में पीछे-पीछे लगाए रहते थे तो हम ही से बात करते थे। तो बताया गुरु महाराज ने कि (पुरानी बात है) हम लोग (दादा गुरु जिनको कहते हैं, उनके साथ) जा रहे थे। उस समय पर लोग पैदल चलते थे। तो आराम करने के लिए पेड़ के नीचे बैठ गए। थोड़ी दूर चलने के बाद अगर आदमी आराम कर ले तो थकावट कम हो जाती है। वहीं पर एक किसान खेत की जुताई कर रहे थे। दादा गुरु ने जो गुरु महाराज के (साथ के) लोग रहे थे, उन लोगों से कहा, की देखो यह पूरे हैं। इनका आना-जाना उस देश का है, जहां से जीवात्मा आई है, जो सबके पिता, बाप है, जिनका जन्म मरण नहीं होता है, जो मृत्यु लोक में नहीं आते हैं, वह सबके पिता है। साहब सबका बाप है, बेटा काहू का नहीं बेटा होकर जो जन्मे, वह तो साहब नाहीं। वह तो पावर भेजता है मनुष्य शरीर में, वह खुद नहीं आता है। अब गुरु महाराज के साथ एक आदमी थे। उनका विश्वास नहीं हुआ। फिर वहां से यह सब लोग चल पड़े। उसी समय पर उन्होंने अपना हल खोल दिया, हल कंधे पर रखा और बैलों को लेकर चले गए, घर पास में ही था। तो गुरु महाराज, दादा गुरु सब आगे बढ़ गए। और वह (व्यक्ति) उनकी तरफ चले गए कि उनसे पूछे कि आप पूरे हो, अधूरे हो, या ऐसी कोई जो भी उनके अंदर इच्छा रही होगी। तो वह देखते ही बोले, मेरे पास क्यों आ गया? अरे वह पूरे हैं, जिनके साथ तू जा रहा है, जो तेरे को मिले हैं। उनको आदेश है, तेरे को संभालने के लिए। तेरे को वह संभालेंगे, जिनके साथ तू जा रहा है। जा, तू यही पूछने आया है कि मैं पूरा हूं या अधूरा हूं। जो तेरे गुरु ने कहा, वही सत्य है। जा, मैं भेज रहा हूं वहां। ऐसे ही छिप कर रहते हैं लेकिन जिसको आदेश होता है, उससे काम होता है। इसलिए कहा गया है वक्त के मास्टर के पास बच्चे को पढ़ने के लिए भेजना, वक्त की डॉक्टर, वैद्य के पास इलाज के लिए जाना, समय एक गुरु को अपनाना पड़ता है, समय के नाम से ही उद्धार होता है।
सतसंग में क्या बताया जाता है
सतसंग में कोई बहुत नई चीज नहीं बताई जाती है। जो महात्मा महापुरुष कह करके गए, वही बातें दोहराई, याद दिलाई जाती है। बार-बार किसी को कोई चीज याद दिला दिया जाए तो वह बात रट जाती है। सतसंग जब नहीं मिलता है तो आदमी भूल जाता है। और फिर भूला, लौट करके आया और गृहस्थी को सेट करने लग गया तब फिर फंस गया। गृहस्थी आज तक किसी की सेट हुई? किसी की भी नहीं हुई। और जितना इसको सेट करने में आदमी लगता है, उतनी ही यह उलझती जाती है। और इस कदर आदमी इसमें फंस जाता है जैसे बंदर पतले मुंह वाली सुराही में रखे चने के लालच में बंद मुट्ठी न खोलता हुआ फंस जाता है। कहा गया है- मरकट सम तुम बने अनाड़ी, मुट्ठी दीन्हा घड़े पसारी।