धर्म कर्म: देवी-देवताओं द्वारा पूजा-पाठ कबूल न करने, बल्कि सजा देने का मूल कारण और उससे बचने के उपाय बता कर कुदरती प्रकोप से बचाने वाले, इस समय के त्रिकालदर्शी पूरे समरथ सन्त सतगुरु, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि दुर्योधन पापी का अन्न खाने से भीष्म पितामह जैसी योगी की बुद्धि खराब हो सकती है तो जब लोग जानवरों का मांस खाएंगे, अंडा, मछली खाएंगे जिसमें जीव है तो बुद्धि कहां से सही रहेगी? मांसाहार की वजह से अपराध भ्रष्टाचार बढ़ता चला जा रहा। उसके बढ़ने से यह सब नशे की आदतें, शराब का प्रचलन भी बढ़ता चला जा रहा है। नशे की हालत में कोई कुछ कर सकता है? न बच्चों की देखरेख, न किसी की सेवा, न भगवान को याद कर सकता है। सतसंग में यही सीख लेने की जरूरत है कि ऐसे किसी नशे का सेवन न किया जाए जिससे बुद्धि खराब हो जाए, अपनी मां बहन, अपनी औरत की तरह से दिखाई पड़ने लग जाए।
भूकंप गर्मी ओला पत्थर किस कारण से आ रहा है
मांसाहार से क्रोध बढ़ता है, खून गर्म हो जाता है। इतना पूजा अनुष्ठान लोग कर रहे हैं लेकिन कुबूल नहीं हो रहा। एक समय ऐसा था जब जल पृथ्वी अग्नि वायु आकाश सब देवता खुश रहते थे तो जरुरत भर की हवा, बारिश, गर्मी, जाड़ा होता था, भूकंप आदि नहीं आते थे। इंसानों ने जबसे प्रकृति के नियम का तोड़ा, देवताओं को नाराज किया तबसे परेशानियां, आंधी आफत आने लग गई। जिस शरीर से इनको फूल पत्ती, धूप, अगरबत्ती, हवन, प्रसाद चढ़ाते हैं, वह शरीर ही शराब मांस पी-खा कर गंदा कर दिया तो वह कैसे पूजा पाठ कबूल करेगा। देवता खुश नहीं होते, नाराज होकर कहर ढाने लगते हैं।
सतयुग को आप जानते ही कहां हो
इस वर्ष लोगों ने गर्मी ज्यादा महसूस किया। अभी आपने क्या देखा है। जैसे पेड़ पौधे कुम्हलाते हैं ऐसे कुम्हला-कुम्हला करके लोग मरेंगे। अखबार में खबर आई कि गर्मी से लगभग 500 आदमी अरब काबा में, भारत में भी तमाम लोग मर गए। यह तो गर्मी अभी कुछ नहीं है। अभी देखना इस साल बरसात, ठंडी भी पिछले सालों कि अपेक्षा काफी होगी। पहले कुदरत एक-एक के जरुरत भर ठंडी-गर्मी के लिए रेगुलेटर लगा देती थी। पढ़ा कहां है आपने सतयुग का इतिहास? सतयुग को कहां जानते हो? जरूरतभर की सर्दी, गर्मी, बारिश होती थी। तब लोगों की नीयत सही थी, प्रभु को सच्चे दिल, निस्वार्थ भाव से लोग याद करते थे। जो सबको देने वाला है, उससे सौदेबाजी की क्या जरूरत है? जैसा भाव, वैसी भक्ति, तैसा फल। गंदी चीजें छोड़ो जिससे बुद्धि सही रहे, जिससे चरित्रहीनता न आवे, प्रकृति घर परिवार देश के नियम के खिलाफ आदमी काम न करे।