धर्म कर्म: पढने-सुनने से आगे जाकर, गोस्वामी जी रचित महान ग्रन्थ का प्रैक्टिकल करवाने वाले, उसमें उल्लेखित दिव्य चीजों, परालौकिक स्थानों तक ले जाने वाले, सन्तमत के विस्तारक, साधना के बुनियादी सूत्र बताने वाले, इस समय के पूरे समरथ सन्त सतगुरु दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि प्रेमियों हम आप सन्तमत के लोग हैं। सन्तमत सबसे ऊंचा मत है। बाकी जितने भी मत है, यह सब नीचे के, काल के मत के हैं लेकिन अपने लोग दयाल मत के हैं। दयाल का ज्यादा पावर होता है। कहते हैं- मारने वाले से बचाने वाले का हक ज्यादा होता है। समय-समय पर शक्तियां इस धरती पर आई है। काल भगवान के इस देश में, काल भगवान ने ही भेजा ताकि व्यवस्था उनकी बनी रह जाए। क्योंकि कर्मों का विधान जब बना तो कर्मों के चक्कर में सब आ गए तो कर्मों की सजा मिलती है। सब लोग अगर नरक ही जाने लग जाए तो नरकों में तो बहुत समय तक सजा मिलती है। कल्पों तक नरकों में कर्मों के अनुसार रहना पड़ता है। इतने समय यदि जीव उसमें पड़े रह जाएँ तो उनकी सब ब्यबस्था बिगड़ जाएगी। इसलिए धर्म का मूल बनाये रखने के लिए शक्तियों को भेजा।

ध्यान कैसे करना होता है

ध्यान‌ का मतलब देखना होता है। एक साथ दो लोगों को कैसे देख सकते हो कि इधर-उधर, दाय-बाएं दोनों तरफ (एक साथ) देखो? जिसको देखोगे, वही दिखाई पड़ेगा। जब उसकी तरफ से ध्यान को हटाओगे तब दूसरे को देख पाओगे। अगल-बगल में ही खड़े हैं लेकिन दोनों लोगों की आंखों में (एक साथ) आप कैसे देख पाओगे, एक-एक को ही तो देखोगे। तो आपको दुनिया की तरफ से ध्यान हटाना पड़ेगा, ध्यान एकाग्र करना पड़ेगा, दृष्टि से एक जगह पर देखना पड़ेगा तब कर्मों का पर्दा हटेगा। क्योंकि जो प्रारब्ध कर्म, संचित कर्म, क्रियामान कर्म है, वो कर्म अगर जमा रहेंगे; संचित कर्म वो जो पूर्व जन्मों के रह गए, जो इस समय आंख, पैर, हाथ, कान से करते हो वो क्रियामान कर्म और प्रारब्ध कर्म वो जिनको भोगने के लिए आपको भेजा गया है, तो यह कर्म जब कटते, हटते हैं तब सफाई होती है। और तभी वह सुराख जिसमें से जीवात्मा निकलकर के ऊपर की तरफ जाती है, वह साफ होता है। जिसको दिव्य दृष्टि, आत्म चक्षु ,शिव नेत्र कहा गया, (वो खुलता है)। अब वह कर्म जल्दी कैसे कटेंगे? इसके लिए सन्तों ने उपाय, तरीका बता दिया। आंखों के बीच से जो रास्ता गया गया, वहां पूरे शरीर से जीवात्मा की पावर को खींचकर के लाओ। जीवात्मा सिर के ऊपर, शिखर पर बैठी हुई है। उसका प्रकाश पूरे शरीर में पैर के अंगूठे तक फैला हुआ है। इसका मतलब इधर से ध्यान को हटाओ और पूरी शक्ति को भौओं के बीच में लेकर आओ।

ध्यान में दूर देखने के लिए क्यों कहा जाता है

जब आप आंख बंद करोगे और ध्यान लगाओगे तो ऊपर की तरफ दूर जब देखोगे तो जैसे हवाई जहाज पहले नीचे चलता है, आगे बढ़ता है फिर उसके बाद ऊपर आगे उड़ता है तब ऊपर की चीज दिखाई पड़ती है। पहले जमीन की चीज दिखाई पड़ती है और उसके बाद जैसे-जैसे ऊपर बढ़ता जाता है तैसे-तैसे दूर ऊपर की चीज दिखाई पड़ने लग जाती है। ध्यान में एकदम से ऊपर तो देख नहीं सकते हो और यह सहज योग, सरल साधना है। तो इसमें तो आंखें दर्द, सर दर्द करने लगेगा जब आप एकदम से ऊपर देखने लगोगे। इसीलिए इसमें सीधे देखने के लिए बताया गया। जैसे आंख बंद करो तो सीधा दूर देखो। सीधा देखते-देखते ही आकाश दिखाई पड़ जाएगा। अभी तो सिर ऊपर करके आकाश देखते है लेकिन इसमें धूंध और बादल है। इसके ऊपर आकाश है। तो उस आकाश को चिदाकाश कहते हैं। चिदाकाश को देखते-देखते ही अंदर में एक ज्योति दिखाई पड़ती है जिसको अग्र ज्योति कहते हैं। ज्योति यानी प्रकाश, रोशनी, अग्रज्योति को देखते रहो। तो इनके लोक में साधक पहुंचता है तो सब ब्रह्मा रूप में ही दिखाई पड़ते हैं। गोस्वामी जी ने कहा है कोटिन चतुरानन गौरीशा। यह एक-दो नहीं है। इनके लोक में खचाखच जीवात्मायें भरी हुई है। जैसे यहां मृत्यु लोक में आदमी ही आदमी है, ऐसे ही वहां पर खचाखच जीवात्मायें भरी हुई है। वह सब एक रूप में ही दिखाई पड़ती हैं। जब यह दरबार में अपनी कुर्सी पर बैठते हैं तब यह दिखाई पड़ते हैं। तो वह ब्रह्मा है। सरस्वती, गायत्री आदि ब्रह्मा की सेवा करती रहती है। ब्रह्मा ही सृष्टि के रचयिता है।

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